कवयित्री निधि मुकेश भार्गव की दो कविताएँ
Onप्रेमाग्रह ये जिं़दगी जब उस मोड़ पर होगी जहाँ भरभरा कर गिरने का भय होगा, तुम मौजूद रहना उस वक्त, सम्हाल लेना मुझे, बढ़ा देना हाथ खींच लेना फिर से उस तरफ जहाँ निराशाओं को पीछे धकेलती हुई झूमती खिलखिलाती आशाएँ हों…