-डॉ. अशोक कुमार गदिया-
आज मैं आपके समक्ष एक नई चुनौती का ज़िक्र कर रहा हूँ। मित्रो! संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 15 नवंबर 2022 को दुनिया ने 800 करोड़ की जनसंख्या का आंकड़ा पार कर लिया था। वर्ल्डामीटर के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया की आबादी 806 करोड़ से ज़्यादा है। वर्ल्ड पापुलर रिव्यू के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 तक 2.38 बिलियन यानी 238 करोड़ ईसाई धर्म को मानने वाले लोग हैं। जबकि 191 करोड़ इस्लाम धर्म के फालोअर्स हैं। हिन्दू धर्म को 116 करोड़ लोग मानते हैं। बौद्ध 50.7 करोड़ हैं। अन्य धर्मों की संख्या 6.1 करोड़ और यहूदी 1.46 करोड़ हैं। ईसाई 157 देशों में रह रहे हैं। मुसलमान 57 देशों में हैं एवं़ हिन्दू भारत, मॉरीशस एवं नेपाल में निवास करते हैं। भारत में अभी लगभग 85ः हिन्दू हैं। यदि आज विश्व में कहीं साम्प्रदायिक हिंसा होती है और हिन्दुओं को अपनी पूजा पद्धति या जाति के नाम से भगाया या प्रताड़ित किया जाता है तो वह स्वाभाविक रूप से भारत आएगा। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि भारत हिन्दू धर्म को मानने वालों के लिए हर तरह सुरक्षित स्थान होना चाहिए। यह संयुक्त राष्ट्रसंघ एवं सभी विश्व समुदाय की ज़िम्मेदारी हो जाती है। वर्तमान में विश्व में जो धार्मिक कट्टरता एवं धार्मिक असहिष्णुता देखने को मिल रही है, उससे सबको सावधान होने की आवश्यकता है। आज विश्व की कई शक्तियां धार्मिक उन्माद फैलाकर उन देशों की अर्थव्यवस्था, कानून व्यवस्था, नैतिकता, सहिष्णुता, आपसी भाईचारा, शिष्टाचार, सम्मान एवं मानवीयता को समाप्त कर युवा पीढ़ी को पशु बनाने पर तुली हुई है। यह आग जो वह लगा रहे हैं इससे एक दिन वह स्वयं तबाह होंगे पर तब तक विश्व समुदाय का बड़ा नुकसान कर देंगे। इस पर भारत को आगे बढ़कर विश्व समुदाय को जागरूक करने जैसा भागीरथ प्रयास करना होगा। दूसरी बड़ी समस्या भारत एवं भारत के पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में रह रहे मुसलमानों की है। इनमें 99 प्रतिशत मुसलमान चौथी पीढ़ी में हिन्दू थे। यानि कि ये धर्मान्तरित मुसलमान हैं। इनकी भाषा, संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल, शक्ल-सूरत सब हिन्दुओं जैसी ही है। कालान्तर में कुछ कारणवश अपना सम्प्रदाय बदलकर इन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया। अब इनमें से कुछ लोग हिन्दुओं से बड़ी नफरत करते है।ं उन्हें क़ाफिर कहते हैं और मौका मिलने पर पुरुषां की हत्या एवं महिलाओं के साथ दुराचार एवं अमानवीय कृत्य करने पर उतारू रहते हैं। जो मुसलमान इन घृणित कार्यों में शामिल नहीं होते वे या तो इनका समर्थन करते हैं या चुप रहते हैं। हिन्दुओं की सम्पत्ति को लूटना, नष्ट करना इनकी प्राथमिकता रहती है। ये लोग यह मानते हैं कि भारत हिन्दू देश है। अतः इसके टुकड़े होने चाहिएं। किसी भी तरह इस भू-भाग पर हमारा राज्य होना चाहिए, जिसे यह गजवाये हिन्द कहते हैं। हमारे देश में जिस क्षेत्र में इन मुसलमानों की संख्या ज़्यादा होती है वहां का हिन्दू परेशान एवं प्रताड़ित रहता है। हताश होकर वहां से पलायन करने पर मजबूर होता है। हमारे देश के पड़ोसी मुल्कों में तो यह खुलेआम होता है। आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि वर्ष 1947 में जब भारत और पाकिस्तान अलग हुए थे, तब पाकिस्तान में 20 प्रतिशत हिन्दू थे और भारत में 20 प्रतिशत मुसलमान थे। लेकिन अब पाकिस्तान में सिर्फ 2 प्रतिशत हिन्दू बचे हैं। वे कहाँ चले गये? बांग्लादेश में हिन्दू जनसंख्या आज मात्र 9 प्रतिशत रह गई है, जबकि 1947 में यह 30 प्रतिशत थी। यह देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के दावे को झुठलाता है। अफगास्तिन के लोकतांत्रिक गणराज्य के पतन तक, देश में कई हजार हिन्दू रहते थे, लेकिन आज उनकी संख्या सिर्फ़ 1000 के आसपास रह गई है। बाक़ी ज़्यादातर लोग भारत, यूरोपीय संघ, उत्तरी अमेरिका या अन्य जगहों पर जाकर बस गए हैं। अफगानी हिन्दू और अफगानी सिख अक्सर पूजा स्थल साझा करते हैं। जिसे कोई झुठला नहीं सकता। वर्तमान में बांग्लादेश में हुईं वीभत्स घटनाएं इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। सोचने का विषय यह है कि ऐसा क्यों होता है। जबकि इस्लाम को मानने वाले अन्य देश भी हैं। जो कट्टर इस्लाम को मानते हैं, जैसे-सऊदी अरब, दुबई, टर्की, कतर….आदि। उनमें तो हिन्दुओं के साथ ऐसा नहीं होता। इनके मूल कारणों को जानकर इन पर काम करना होगा। इस समस्या के समाधान के दो पक्ष हैं, एक कानूनी पक्ष एवं दूसरा सामाजिक पक्ष। आखि़र कब तक किसी इतने बड़े वर्ग को अमानवीय एवं असामाजिक होने की खुली छूट दी जा सकती है। यह अमानवीय कृत्य एवं कुत्सित मानसिकता का अन्त हमें ही करना होगा। भारत के सभी नौजवानों को चाहे वे हिन्दू हैं या मुसलमान, आगे बढ़ना होगा। हमें हिन्दू एवं मुसलमान की खाई को पाटना होगा। इनमें व्याप्त पूर्वाग्रह एवं गलतफहमियां दूर करनी हांगी। आपसी मतभेद, घृणा एवं मानसिक ग्रन्थियां दूर करनी होंगी। यदि समझदारी से, जागरूकता से, संवाद से हो सकती है तो ठीक, उससे नहीं तो कानून का सहारा लेकर ताक़त से करनी होगी। इसमें मुसलमानों की पारिवारिक शिक्षा, उनका परिवेश, उनके मदरसों एवं कठमुल्लाओं की शिक्षा उनकी जमातों एवं धर्मगुरुओं के भेष में आने वाले साम्राज्यवादी मुल्लाओं को हर कीमत पर काबू करना होगा। इसका सबसे आसान तरीका है इन मुसलमान युवाओं को शिक्षित और प्रशिक्षित कर राष्ट्र की मुख्यधारा में लाया जाए। इनका परिवेश बदला जाए। मध्यकालीन मानसिकता से बाहर निकाला जाए। इस पर समाज एवं शिक्षण संस्थाओं को अत्यधिक कार्य करने की आवश्यकता है।
(लेखक मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन हैं।)