लेख-
सबसे पहले हमें यह जानना आवश्यक है कि वास्तविक सुख क्या है? अगर हम ये कहें कि आन्तरिक सुख ही वास्तविक सुख है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं और आन्तरिक सुख की प्राप्ति के रास्ते बाह्य सुख के रास्ते से सर्वथा भिन्न हैं। आन्तरिक सुख का प्रमुख स्रोत पदार्थ, साधन, सुविधाएं नहीं बल्कि आत्मा है। आनंद का निर्झर अन्दर ही बहता है। बाहर सुखों की तलाश करना, समय नष्ट करना ही है। भोग विलास सुविधाएं आन्तरिक सुख नहीं प्रदान कर सकते। आन्तरिक सुख प्राप्त करने के लिये अध्यात्म का रास्ता अपनाना पड़ता है। अध्यात्म के रास्ते पर चलकर व्यक्ति इस दुख भरे संसार में रहकर भी सुख की प्राप्ति कर सकता है। अच्छी पुस्तकों को पढ़कर उचित ज्ञान प्राप्त करना बहुत आवश्यक है।
जिस तरह से दिन और रात होते हैं, प्रकाश व अन्धकार होता है, भूत और भविष्य होता है, उसी तरह से बाह्य जीवन एवं आंतरिक जीवन भी होता है। बाह्य जीवन वह है जो पदार्थ एवं भौतिक साधनों से सुख की अनुभूति करता है और आन्तरिक मन को सुख की अनुभूति अध्यात्म से होती है। जिसकी वजह से आन्तरिक मन पवित्र एवं शुद्ध होता है। आन्तरिक मन को स्थिर व शुद्ध करने का सिर्फ एक ही उपाय है और वह आध्यात्मिकता के आधार पर पाया हुआ सुख। जो सांसारिक सुखों में लिप्त होकर सच्चे सुख को प्राप्त करना चाहता है वह उसका भ्रम है और वह इस मार्ग पर चलकर कभी सच्चा सुख प्राप्त नहीं कर पाएगा। अगर उसे कुछ समय के लिये सुख की प्राप्ति हो भी जायेगी तो थोड़ा-सा भी कष्ट या संकट आने पर वह बिखर जाएगा और गम में डूब जाएगा। उससे सामना करने या उस दुख से बाहर आने के लिये वह संघर्ष नहीं कर पाएगा। लेकिन अगर मनुष्य अध्यात्मिक सुख की प्राप्ति करता है तो वह विषम परिस्थितियों में भी सहज रहेगा और निर्लिप्त भाव से उसको सहन कर जाएगा और कीचड़ में कमल की भांति उनसे अलग ही रहेगा। वास्तविक सुख को आत्मसन्तोष, आत्म विकास, आत्म कल्याण द्वारा परिभाषित किया जा सकता है और अध्यात्म जिससे इसकी प्राप्ति होती है उसमें परहित, परोपकार, परामर्श आदि को संलग्न किया जा सकता है। स्वार्थ में अन्धे होकर दूसरों का हक छीनना, अन्याय करना, निंदा, घृणा आदि कार्य करना ही नारकीय जीवन है। जो अज्ञानवश इस रास्ते पर चल पड़ता है, वह अपना लोक व परलोक दोंनो ही बिगाड़ लेता है। अध्यात्म को अपनाकर व्यक्ति को अपना आचरण दोषरहित व निर्मल रखना चाहिए। उसे बेकार के लोभ, मोह-माया व स्वार्थ में नहीं पड़ना चाहिए। जो व्यक्ति उचित आचरण करते हैं उनके लिये धन सिर्फ एक साधन मात्र है। उसका उपयोग वे भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति में नहीं करते बल्कि उससे वे परहित व दूसरों का कल्याण करते हैं।
अध्यात्म से अभिभूत व्यक्ति धन जैसी चंचला में कोई आसक्ति नहीं रखते हैं। मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य आनंद प्राप्ति है लेकिन आनंद कैसे प्राप्त किया जाए उसके विभिन्न रास्ते हैं परन्तु मनुष्य को अपने विवेक से काम लेकर सदैव ऐसे मार्ग का चयन करना चाहिए जहाँ उसे आनंद प्राप्ति के लिये वास्तविक व आन्तरिक सुख की प्राप्ति हो सके। हालांकि उसका रास्ता थोड़ा कठिन अवश्य है। वह त्याग मांगता है। लेकिन ऐसे त्याग में क्या बुराई जो आपका ये जीवन और अगला जीवन दोनो ही सुधार दे। अध्यात्म के मार्ग पर चलकर मन की मलिनता, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, लोभ, मोह, माया जैसे विकारों को दूर किया जा सकता है और इन विकारों के दूर होते ही मन पवित्र हो जाता है। वह सच्चे सुख की प्राप्ति कर लेता है। फिर उसे जीवन का कोई भी कष्ट असहनीय नहीं लगता और वह सन्तुष्टि के साथ अपना जीवन यापन करता है।
-डॉ. अलका अग्रवाल
(लेखिका मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशक हैं।)