मेवाड़ में विचार संगोष्ठी आयोजित
गाजियाबाद। सेंटर फॉर पालिसी स्टडीज चेन्नई और दिल्ली के निदेशक जितेन्द्र बजाज ने बताया कि पहले के गांव स्वशासी हुआ करते थे। उनके अपने अलग नियम-कायदे होते थे। उन्हें सरकारें संचालित नहीं करती थीं बल्कि गांवों के माध्यम से सरकारें संचालित होती थीं। उन्होंने कहा कि अगर गांवों को खुशहाल बनाना है तो उन्हें स्वशासी बनाना होगा। प्रभाष परम्परा न्यास, प्रज्ञा संस्थान और मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की ओर से आयोजित विचार संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता जितेन्द्र बजाज ने ये विचार व्यक्त किये। वह ‘भारत का एक स्वशासी गांव’ विषय पर बोल रहे थे। दक्षिण में कांचीपुरम के गांव उल्लावुर का उदाहरण देते हुए उन्होंने इस गांव के इतिहास-भूगोल पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि खेती, अन्न उत्पादन, मंदिर और पानी के मामले में उल्लावुर बहुत समृद्ध गांव है। आज से करीब तीन सौ साल पहले इस गांव के 83 घर बहुत साधन सम्पन्न हुआ करते थे। पल्लव काल के कवियों की कविताओं में उल्लावुर की समृद्धि की दास्तान पढ़ने को मिलती है। सरकार को इस गांव के इतिहास से सीखते हुए भारत के सभी गांवों को स्वशासी बनाना चाहिए। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने अपने वक्तव्य में कहा कि गांधी जी ने अपने हिन्द स्वराज में जिन गांवों का उल्लेख किया है, वे सभी स्वशासी गांव हैं। गांधी जी का स्वप्न था कि गांवों को स्वशासी बनाया जाए। देश की खुशहाली का रास्ता गांवों से होकर ही जाता है। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अशोक कुमार गदिया ने कहा कि देश के गांवों को आत्मनिर्भर बनाना होगा। अंग्रेजों ने हमारे स्वशासी गांवों को ध्वस्त किया और जिला कलक्टर के अधीन उनकी स्वायत्ता कर दी। यह गांवों को लूटने की एक साजिश थी। जिसे अब चुनौती के रूप में स्वीकारते हुए सरकार को गांवों की व्यवस्था को बदलना होगा। गांवों को सरकार नहीं बल्कि सरकार को गांव संचालित करें। अगर गांव राज्य और देश की सरकार पर आश्रित रहे तो गांव कमजोर हो जाएंगे। विचार संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार नीलम गुप्ता समेत मेवाड़ परिवार के सदस्य और विद्यार्थी उपस्थित रहे। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल ने सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त किया। संचालन भार वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने संभाला।