प्रभाष परम्परा न्यास एवं मेवाड़ विवि की वर्चुअल विचार संगोष्ठी आयोजित
गाजियाबाद। ‘जल प्रकृति है, वस्तु नहीं। इसलिए जल का व्यापार अवैध है। सरकार को चाहिए कि एक सख्त कानून बनाकर जल को प्रत्येक मनुष्य के लिए मुहैया कराया जाए।’ यह बात सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं अर्थशास्त्री कैलाश चंद्र गोधुका ने कही। वह प्रभाष परम्परा न्यास एवं मेवाड़ विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित मासिक वर्चुअल विचार संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जल की मालिक प्रकृति है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, मनुष्य इसके मालिक हो सकते हैं, सरकार नहीं। सरकार केवल ट्रस्टी की भूमिका निभा सकती है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए प्रत्येक को जल मुहैया कराये। इसके बदले में सर्विस टैक्स ले। जल का व्यवसायीकरण न करे। इसे रोके। कैलाश चंद्र ने बताया कि पहले गांवों में बावड़ियां, कुंए, हैंडपम्प, ट्यूबवेल और पानी के स्टैंड पोस्ट हुआ करते थे। जिसके माध्यम से प्रत्येक को जल मुफ्त में उपलब्ध कराया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था सिरे से गायब हो गयी है। अब जल बेचा जाने लगा है। यह व्यवस्था भविष्य में एक बड़े खतरे का संकेत है। इसके लिए हमें जागरूक होना होगा।मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अशोक कुमार गदिया ने अपने अघ्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि हम अपनी समस्या का निर्माण स्वयं कर रहे हैं। विकास के नाम पर हम प्रकृति प्रदत्त पानी का दुरुपयोग कर रहे हैं। हम जमीन से मीठा पानी खींचकर सीधे समुद्र के पेट में डाल रहे हैं। यह अनावश्यक जल दोहन तत्काल रोकना होगा। जो पानी की पहले व्यवस्था थी, उसे हम स्वयं ही ध्वस्त कर रहे हैं। अब जलस्तर जमीन से 500 मीटर नीचे तक चला गया है। यहां तक कि गांवों में होने वाली शादियों में भी पानी के टैंकर शहर से मंगाने पड़ रहे हैं। यह भयावह स्थिति है। सरकार के अलावा समाज के प्रत्येक व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि जल संरक्षण करें। पीने के पानी का दुरुपयोग न करें। इसके लिए सरकार को कोई ठोस योजना बनानी होगी। विचार संगोष्ठी में मेवाड़ परिवार के अलावा प्रभाष परम्परा न्यास के सभी सदस्य मौजूद थे। संचालन पत्रकार मनोज कुमार मिश्र ने किया।