सेना या दमन से नहीं निकलेगा कश्मीर समस्या का हल

मेवाड़ की ‘कश्मीर’ पर वर्चुअल विचार संगोष्ठी आयोजित
गाजियाबाद। ‘सेना या दमन के माध्यम से इसका कोई समाधान नहीं हो सकता। पाकिस्तान और भारत के बीच सौहार्द्रपूर्ण सम्बंध बने बिना भी कश्मीर मुद्दा हल होना संभव नहीं हैं। फिर भी कश्मीर में शान्ति के लिए सबसे जरूरी है वहाँ के विभिन्न पक्षों से लगातार बातचीत और धारा 370 को लेकर और एक सहमति की स्थिति बनाते हुए देश के दीगर हिस्सों में इसे लेकर लोगों को सही पक्ष बताया जाए और कट्टरपंथी ताकतों को इसे नफरत फैलाने के औजार की तरह उपयोग करने से रोका जाए। जितनी जरूरत उसके एक स्थाई राजनैतिक हल को ढूँढे़ जाने की है, उतनी ही जरूरत वहाँ के आहत स्वाभिमान पर मरहम लगाने की भी है।
मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन एवं कश्मीर पुस्तक के लेखक डॉ. अशोक कुमार गदिया ने वर्चुअल विचार संगोष्ठी में यह विचार व्यक्त किये। संगोष्ठी मेवाड़ यूनिवर्सिटी और प्रभाष परम्परा न्यास की ओर से आयोजित की गई। बतौर मुख्य वक्ता डॉ. गदिया ने कहा कि कश्मीर में रोजगार के नए और पर्याप्त साधन उपलब्ध कराने के लिए पारम्परिक शिल्पों के विकास से लेकर आधुनिक उद्योग-धंधे लगाने की संभावना तलाशी जानी चाहिए। राष्ट्रीय हित और सुरक्षा के साथ-साथ कश्मीर को एक समृद्ध राज्य बनाये जाने की जरूरत है। भारत के शेष भागों से कश्मीर का संवाद स्थापित करने के लिए युवाओं एवं छात्रों को लगातार देश के अलग-अलग हिस्सों के युवाओं से मिलने के मौके उपलब्ध कराना दोनों पक्षों की अनेक गलतफहमियों को दूर कराने का एक प्रभावी जरिया हो सकता है। इसके साथ-साथ देश के स्कूलों और कॉलेजों में कश्मीर के इतिहास, वहाँ की समावेशी परम्परा और वर्ष 1947 के पहले तथा बाद की ऐतिहासिक परिस्थितियों से परिचित कराया जाना बेहद आवश्यक है। यह कश्मीरी स्कूलों में भी पढ़ाया जाना उतना ही जरूरी है कि कश्मीरी संस्कृति किस तरह हर तरह के कट्टरपंथ के खिलाफ रही है। वहाँ की ऋषि-सूफी परम्परा को फिर से जिंदा करके ही वहाबी इस्लाम के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है। एक और बड़ी जरूरत विस्थापित कश्मीरी पंडितों और कश्मीरी मुसलमानों के बीच संवाद शुरू कराने की है। उन्होंने केन्द्र सरकार को सुझाव दिया कि कश्मीरी पंडितों को एक मुहरे की तरह इस्तेमाल करने की जगह कम से कम उन कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में फिर बसाने के लिए एक सकारात्मक पहल की जरूरत है, जो लौटना चाहते हैं।
विचार संगोष्ठी की अध्यक्षता मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल ने की। उन्होंने डॉ. गदिया के विचारों और सुझावों का स्वागत करते हुए इसे जनोपयोगी करार दिया। कुशल संचालन वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र समेत मेवाड़ परिवार के तमाम सदस्य मौजूद रहे।

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