मानवता के लिये समर्पित कालजयी व्यक्तित्व

श्री गुरुनानक देव जयंती पर विशेष

जो जनमानस को सांसारिक मोह माया से मुक्त कर परमात्मा के मार्ग पर चलने को आया हो, उसे कोई किसी बंधन में कैसे बाँध सकता है। वह तो भगवान का भक्त होता है। ऐसे भगवद् भक्त को सांसारिक बंधनों से क्या वास्ता। हम बात कर रहे हैं सिक्खों के पहले गुरु श्री गुरुनानक देव जी की। उनके आदर्श आज भी हमें निरंतर प्रेरित करते हैं और हमारे जीवन को नया मार्ग दिखाते हैं। एक दिन श्री गुरुनानक देव नदी में स्नान करने गये, जब वे नहाकर बाहर निकले तो वहीं किनारे पर आसन जमाकर ध्यान करने लगे। ध्यान करते-करते उन्हें एक अनोखे प्रकाश की अनुभूति हुई। उन्हें ऐसा लगा जैसे ये कोई साधारण प्रकाश नहीं है, इस प्रकाश में उन्होंने परमात्मा का अनुभव किया। परमात्मा ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा ‘‘नानक मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ। तुम सारे विश्व का भ्रमण करो, संसार में जाओ और लोगांे को सत्य का मार्ग दिखाओ। मैंने इस कार्य के लिये तुम्हें चुना है, जिसपर तुम कृपा करोगे उसपर मेरी भी कृपा होगी। इतना सुनकर नानक देव ने उनके चरणों में सिर झुकाया और समाधि से बाहर आ गये। तब उनके मुख से सहसा ये शब्द निकले-मैं किसी हिन्दू को नहीं देखता, किसी मुसलमान को नहीं देखता, मैं केवल मनुष्यों को देखता हूँ। ऐसा महसूस हुआ जैसे कि श्री गुरुनानक देव में साक्षात् परमात्मा का निवास हो गया है और वे भी परमात्मा ही हो गये हैं। जो परमात्मा स्वरूप हो जाये फिर उसकी दृष्टि जाति, धर्म, सम्प्रदाय को नहीं देखती। उसकी दृष्टि में तो पूरा बह्माण्ड ही परमात्मास्वरूप होता है। वह सबका और सब उसके हो जाते हैं। तब अपने-पराये का कोई भेद उसमें नहीं रह जाता है। समाधि में परमात्मा के प्रकाश को पाते ही श्री गुरुनानक देव भी परमात्मा का ही रूप हो गये, वे सबके और सब उनके हो गये। परमात्मा से मिले आदेश का पालन करने के लिये वे तत्पर हो गये। उनकी ये दशा देखकर उनके घर वाले चिंतित हो गये और उन्हें सांसारिक बंधनों में बांधने के लिये उनको विवाह के लिये बाध्य करने लगे, उन्होंने विवाह भी किया, उनके सन्तानें भी हुईं, लेकिन फिर भी उन्हें रह-रहकर परमात्मा का आदेश याद आता और वे अपने कर्तव्य-पथ पर चलने के लिये आतुर हो जाते। एक दिन उन्होंने निश्चय किया कि वे जनमानस की सेवा करेंगे और उन्होंने घर परिवार त्यागकर जंगल का रूख किया। भला जो जनमानस की सेवा करने आया है उसे ये सांसारिक बंधन कहाँ बांध पाते। वे सारे समय घर से बाहर घूमते, साधु-सन्तों की सेवा करते और जनमानस को सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते।
जब उनका सारा समय भगवद् भक्ति और सन्तों की सेवा में बीतने लगा तो घर वालों को एक बार पुनः चिन्ता हुई। घरवालों ने उन्हें घर के कामों में व्यस्त रहने की सलाह दी परन्तु श्री गुरुनानक देव तो अपना मन पहले ही परमात्मा को दे चुके थे। लोग उन्हें पागल और दीवाना कहने लगे लेकिन वे तो परमात्मा के अलावा किसी को जानते ही नहीं थे वे सिर्फ ईश्वर की आज्ञा का पालन करते थे और कहते कि कोई किसी का ध्यान नहीं रख सकता, न पुत्र के रूप में और न ही सन्तान के रूप में, सबका ध्यान सिर्फ वह परमात्मा ही रखता है। वो अपने पिता से भी कहते थे आप मेरे पिता है पर आपसे बड़े परमपिता है जो इस संसार के पिता है और मैं सिर्फ उनकी आज्ञा का पालन करता हूँ और मेरा जन्म सिर्फ मानव जाति की सेवा के लिये हुआ है। नानक देव सारे बंधन तोड़कर परमात्मा के निर्देश पर मानवता की सेवा को चल पड़े। वे आजीवन मानवता की सेवा में लगे रहे और जगत भ्रमण करते रहे और जगत पूज्य बन गये। उन्होंने पूरे विश्व में अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया इसलिए उनके जन्मदिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक जो मानव जाति के लिये कार्य किये। वे किसी धर्म, सम्प्रदाय से सम्बन्धित नहीं थे, इसलिए वे सिर्फ सिखों के गुरु के रूप में नहीं पूजे जाते बल्कि वे एक विश्व गुरु के रूप में पूजे जाते हैं।

-डॉ. अलका अग्रवाल
निदेशक, मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस
ग़ाज़ियाबाद

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