गांधी जी के हिन्द स्वराज से दूर होगी बेरोजगारी

दो अक्तूबर गांधी जयंती पर विशेष-
लेखक-डॉ. अशोक कुमार गदिया
देश की वर्तमान समस्याओं में से ‘बेरोजगारी’ की समस्या सबसे बड़ी समस्या है। देश का हर दूसरा युवा ‘बेरोजगारी’ की समस्या से ग्रसित है। ‘बेरोजगारी’ की समस्या से सरकार, समाज एवं घर-परिवार सभी परेशान हैं और कोई हल नहीं निकाल पा रहे हैं। देश के बेरोजगारी के ताजा आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर काफी बढ़ी है। नौकरियों में कमी आई है। सीएमआईई यानी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनमी के मुताबिक जुलाई माह में रोजगार छह लाख तक कम हुए हैं। जून माह में 12.57 करोड़ शहरी रोजगार की तुलना में जुलाई में यह संख्या 12.51 करोड़ रह गई। भारत में दिसंबर 2021 तक 53 मिलियन यानी 5.3 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। इनमें से 35 मिलियन यानी 3.5 करोड़ लोग तो वे हैं जो सक्रियता के साथ रोजगार की तलाश में हैं। मतलब ये लोग मेहनत करके रोजगार की तलाश में हैं और इन्हें जल्द से जल्द रोजगार की आवश्यकता है। इसमें से 8 मिलियन संख्या महिलाओं की है। वहीं, 17 मिलियन यानी 1.7 करोड़ लोग वे हैं जिन्हें काम चाहिए मगर वे सक्रिय होकर अभी जॉब नहीं ढूंढ रहे हैं। इसमें महिलाओं की संख्या 9 मिलियन है। अगर भारत ग्लोबल एम्पलॉयमेंट रेट स्टेंडर्ड तक पहुंचना चाहे तो भारत को 187.5 मिलियन लोगों को रोजगार देना होगा। ‘बेरोजगारी’ की समस्या से ग्रसित हर युवा में एवं परिवार में कुण्ठा, निराशा, लाचारी और गुस्सा तेजी से फैल रहा है, जिससे युवाओं का आत्मविश्वास डगमगा रहा है। जब आत्मविश्वास डगमगाता है तो समाज में हिंसा, आतंक, बदहवासी, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, जातिवाद, नशाखोरी और आत्महत्या आदि दोष स्वाभाविक रूप से व्याप्त होने लगते हैं।
समस्या की ओर गहराई में जायेंगे तो पता चलता है कि ‘बेरोजगारी’ अपनी जगह विकराल रूप लिए बैठी है। दूसरी तरफ हर क्षेत्र में चाहे वह गांवों में कृषि क्षेत्र हो या छोटे शहरों में छोटे एवं मझोले उद्योग हों या फिर बड़े उद्योग हों, वहाँ पर योग्य, भरपूर मेहनत और कुशलता से काम करने वाला युवा नहीं मिल रहा है। बड़ा विचित्र दुर्योग है कि एक तरफ लाखों-करोड़ों बेरोजगारों की फौज है, दूसरी तरफ योग्य एवं कुशल कार्यकर्ताओं की नितान्त कमी है। इसकी और गहराई में जाएं तो पता चलता है कि आज का युवा हाथ का काम नहीं करना चाहता है। सभी ऑफिस में बैठकर लैपटॉप एवं मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करते हुए आलीशान एयर कण्डीशन्ड ऑफिस या घर में बैठकर काम करना चाहते हैं। हमारी युवतियाँ घर बसाकर घर-परिवार की जिम्मेदारी नहीं निभाना चाहती हैं। वे भी सफेदपोश काम ही करना चाहती हैं। यह धारणा आम है, चाहे वह शहर हो या गांव। यह वाइट कॉलर काम करने के लिए भी उनमें वांछित दक्षता का नितांत अभाव है।
इस विरोधाभास से ‘बेरोजगारी’ की समस्या ने विकराल रूप ले लिया है। यदि इसकी और गहराई में जाएंगे तो पाएंगे कि हमारी शिक्षा व्यवस्था एवं सामाजिक मनोवृत्ति इसके लिए जिम्मेदार है। समाज में अनावश्यक रूप से हाथ के काम, कृषि, लघु उद्योगों, साफ-सफाई, रखरखाव, मरम्मत, कुटीर उद्योग आदि महत्वपूर्ण कार्यों को कम सम्मान दिया गया, जबकि ऑफिस के कार्यों को ज्यादा सम्मान दिया और उसका मेहनताना भी ज्यादा दिया गया। इससे इस विषमता ने भयंकर रूप धारण कर लिया। अब इन हाथ के कामों को करने के लिए बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ठेकेदार बन गईं। इन्होंने इतने दाम वसूलने शुरू कर दिए कि आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है।
इस दुर्योग ने फिर बिचौलियों को जन्म दे दिया, जिससे गरीब आदमी को तो कम पैसा मिला, परंतु बीच के दलालों ने पैसा खाना शुरू कर दिया। बात वहीं आ गयी कि गरीब, गरीब ही रह गया बल्कि और गरीब हो गया। उल्टे समस्या ज्यों की त्यों रह गई। उसके मन का असंतोष एवं आत्मग्लानि बढ़ती चली गई।
इस समस्या से निजात पाने के उपाय
1-स्कूल से लेकर कॉलेज एवं विश्वविद्यालय तक हाथ के कामों को सिखाया जाए और उनके प्रति सम्मान का भाव पैदा किया जाए।
2-शारीरिक श्रम का मूल्य मानसिक श्रम से ज्यादा रखा जाए, जिससे हाथ के कामों के प्रति युवा आकर्षित हो, इसे अच्छा काम समझे और इसको करते हुए गर्व महसूस करे।
3-छोटे उद्योग, कुटीर उद्योग, घरेलू, सुरक्षा गार्ड, मरम्मत, रखरखाव आदि कार्यों को कार्पोरेट सेक्टर से बाहर करना चाहिए।
4-इन कामों को व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से या व्यक्तियों के समूह के रूप में करें, जिसे हम सहकारी समिति बनाकर भी कर सकते हैं।
5-बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में हमें अधिक से अधिक लोगों को उपयोग में लाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
6-विश्वभर में यह जनमत बनना चाहिए कि मशीनीकरण न्यूनतम हो और मानव का उपयोग अधिकतम हो। थोड़ी कार्यकुशलता कम भी होगी तो भी यदि अधिक से अधिक व्यक्ति बड़े एवं छोटे रोजगार से जुड़ेंगे तो यह कदम मानवता के हित में होगा।
जब हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं तो स्वाभाविक रूप से महात्मा गांधी का ‘‘हिन्द-स्वराज’’ याद आता है। अतः हमें मानवता के कल्याण के लिए पुनः गांधी के विचारों की ओर ही लौटना होगा। सरकारी स्तर पर नई शिक्षा नीति-2020 का यदि अक्षरशः पालन किया जाए तो इस समस्या को काफी हद तक दूर किया जा सकता है।

समाप्त

(लेखक मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस
गाजियाबाद के चेयरमैन हैं।)

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