सिर्फ़ प्यार से प्यार की चिट्ठी प्यार के घर तक पहुँचेगी,

ग़ज़ल

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बस्ती-बस्ती, गलियों-गलियों बारी-बारी नफ़रत के,

भेष बदलकर घुस आये हैं अत्याचारी नफ़रत के।

प्रेम-सन्देसा बाँच रहे हो मन के पंछी सुन तो लो,

बचके रहना घूम रहे हैं बाज़ शिकारी नफ़रत के।

खेल-तमाशा दिखा-दिखाकर तुमको बस बहलायेंगे,

ये इंसान नहीं हैं, ये हैं सिर्फ़ मदारी नफ़रत के।

सच कहता हूँ इस दुनिया में सिर्फ़ मुहब्बत जीतेगी,

रौब-दाब चाहे जितने भी आज हों भारी नफ़रत के।

सिर्फ़ प्यार से प्यार की चिट्ठी प्यार के घर तक पहुँचेगी,

रोक सको तो रोक लो करके नोटिस जारी नफ़रत के।

दफ़्तर के लोगों में आख़िर भेदभाव तो आएगा,

कुर्सी पर बैठे हैं जमकर देख प्रभारी नफ़रत के।

ताश के पत्तों जैसे हम हैं, हमको बाँटा जाएगा,

फेंट रहे हैं मिलकर हमको सभी जुआरी नफ़रत के।
-चेतन आनंद
  22.08.22
News Reporter

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