पूर्ण पारदर्शिता और समान नियम-कानून से ही कश्मीर का प्राचीन गौरव पुनः मिलेगा-डॉ. गदिया

मेवाड़ और प्रभाष परम्परा न्यास की डिजिटल विचार संगोष्ठी आयोजित
प्रखर सांस्कृतिक चेतना का केन्द्र
रहा है कश्मीर-कुमार निर्मलेन्दु
गाजियाबाद। सुप्रसिद्ध लेखक और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी कुमार निर्मलेन्दु ने बताया कि कश्मीर प्रसन्न रहने और उत्सव मनाने वाले लोगों की धरती रही है। इसकी सांस्कृतिक चेतना बहुत प्रखर थी और कश्मीरियों को ललित कलाओं से बेहद लगाव था। लेकिन साजिशन इसके इतिहास और परम्परा पर विदेशी आक्रमण किये गये। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस और प्रभाष परम्परा न्यास द्वारा आयोजित मासिक डिजिटल विचार संगोष्ठी में उन्होंने बतौर मुख्य वक्ता यह बात बताई। ‘कश्मीर-इतिहास और परम्परा’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने बताया कि जम्बूद्वीप पर्वत पर जम्मू-कश्मीर स्थित है। मां शारदा का पहला प्राचीन मंदिर भी यहीं कश्मीर में है। छठी शताब्दी ईसवीं पूर्व से जम्मू-कश्मीर आर्यों का मूल स्थान रहा है। ऋषि-मुनियों की तपस्थली रहा है। शंकराचार्य सहित कितने ही प्रख्यात ऋषियों ने यहां कश्मीर में आकर कठोर तपस्याएं की हैं। लेकिन धीरे-धीरे हिन्दु राजाओं के कब्जे से इसे साजिशन छीना गया। मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अशोक कुमार गदिया ने बताया कि कश्मीर दुनिया का सबसे सुंदर और शांत स्थान रहा है। धीरे-धीरे विदेशी संस्कृति के आगमन एवं हमारी मूल संस्कृति में आये विकारों की वजह से कश्मीर का लगातार पतन होता गया। सबसे पहले राजा एवं राज दरबारियों में भ्रष्टाचार, दुराचार, व्यभिचार के कारण नैतिक पतन हुआ, फिर जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता और राजकीय दबाव ने बड़ी संख्या में आम लोगों का धर्म परिवर्तन कराया। इसके बाद कश्मीर के दुर्दिन आ गये। भीषण अकाल, बाढ़ एवं भुखमरी ने लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। यह सिलसिला करीब आठ सौ साल तक चला। जिसने शासक और जनता के बीच गहरी खाई पैदा कर दी। इससे आजादी का भाव लोगों में घर कर गया। आजादी का यह नारा आज भी कश्मीर की अवाम की जुबान पर कायम है। डॉ. गदिया ने कहा कि आज कश्मीर में ऐसे सुशासन की जरूरत है, जिसमें पूर्ण पारदर्शिता हो, नीतियां, नियम, कानून एवं विकास का समान अवसर हो, व्यापार, व्यवसाय एवं रोजगार के अधिक से अधिक मौके हों और कश्मीर की पुरातन संस्कृति, साम्प्रदायिक सद्भाव एवं कश्मीरियत की पुनसर््थापना हो। यही चुनौती आज की सरकार एवं भारतीय समाज के समक्ष है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि जागरूक समाज के लोग इस दिशा में आगे बढ़ेंगे तो कश्मीर का प्राचीन गौरव पुनः वापिस मिलेगा। अंत में विचार संगोष्ठी में उपस्थित सभी लोगों का मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल ने आभार व्यक्त किया। संचालन वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने किया।  

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