करतार सिंह सराभा का जन्म पंजाब के सराभा ग्राम के एक जाट परिवार में हुआ। स्वतंत्रता की जंग में अपने प्राणों की आहूति देने वाले शायद वह सबसे छोटी उम्र के क्रान्तिकारी थे। मात्र 19 वर्ष की अवस्था में लाहौर की जेल में आपको फाँसी दे दी गई थी। करतार सिंह सराभा ने 10वीं तक की पढ़ाई अपने गाँव में ही की। उसके बाद की पढ़ाई करने के लिये वे अमेरिका चले गये। वे हवाई जहाज बनाना व चलाना सीखना चाहते थे। अतः वे पढ़ाई छोड़कर करखाने में भर्ती हो गये। अमेरिका एयरपोर्ट पर हुए दुर्व्यवहार से वह बहुत आहत हुए, जब उन्हें यह कहा गया कि वे एक गुलाम देश के नागरिक हैं तो इन शब्दों ने उनके मन पर गहरा असर छोड़ा। उन्हांेने सोचा जब भारत के समृद्ध लोगों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है तो भारत तो एक गरीब देश है और वहाँ की गरीब जनता के साथ कैसा व्यवहार होगा। यह सोचकर वह बहुत दुखी हो गये और उनके मन में तभी अपने देश को आजाद करवाने की भावना ने जन्म लिया और वे अमेरिका की बार्केली यूनिवर्सिटी में नालंदा क्लब ऑफ इंण्डियन स्टूडेन्ट्स नाम के प्लेटफार्म से जुड़ गये। वर्ष 1912 में पौलेण्ड में भारतीयों का एक सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में सोहन सिंह मकना, हरनाम सिंह और लाला हरदयाल जैसे क्रांतिकारियों ने भाग लिया। वहाँ उन लोगों के भाषणों से प्रभावित होकर उन्होंने भारत की आज़ादी को ही अपना मकसद बना लिया। वह लाला हरदयाल और अन्य क्रांतिकारियों के साथ जगह-जगह भाषण देने लगे।
वर्ष 1913 में जो अमेरिका मेें रहने वाले भारतीय थे, उन्होंने गदर पार्टी की स्थापना की। कहा जाता है कि इस गदर पार्टी की स्थापना करतार सिंह और वीर सावरकर के विचारों से ही प्रभावित थी। करतार सिंह सराभा की अपील पर 8000 के करीब भारतीय विदेशों से भारत की ओर चल पड़े। करतार सिंह श्रीलंका के रास्ते भारत पहुँचे और छिपकर क्रांति के लिये काम करने लगे। गदर पार्टी के साथ लोगों को जोड़ने लगे, क्रांति के लिये हथियारों का इंतजाम करने के साथ-साथ उन्होंने बम भी बनाये। गदर पार्टी के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने की सोची। इसकी खबर अंग्रेजों को लग गई और उन्होंने क्रांतिकारियों को पकड़ना शुरू कर दिया। लोग भागने लगे लेकिन करतार सिंह सराभा कहीं नहीं गये और अभियान के लिये कार्य करते रहे। सैनिकों को जागरूक करने के लिये जाते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अंग्रेज सरकार ने उन्हें फाँसी की सजा सुनाई। करतार सिंह सराभा इतनी कम उम्र में अपनी फाँसी से नहीं घबराये। उन्होंने अपना अन्तिम संदेश दिया और शहीद होने से पहले कहा कि अगर कोई पुनर्जन्म का सिद्धान्त है तो मैं भगवान से यही प्रार्थना करूँगा कि जब तक मेरा देश आजाद न हो मैं भारत की स्वतंत्रता में अपना जीवन न्यौछावर करता रहूँ। 16 नवम्बर, 1915 को करतार सिंह ने मात्र 19 साल की उम्र में हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूम लिया। भगत सिंह करतार को अपना गुरू मानते थे। वे करतार की तस्वीर हमेशा अपनी जेब में रखते थे। ‘नौजवान भारत सभा’ नामक युवा संगठन की हर जनसभा में करतार सिंह के चित्र को मंच पर रखकर उन्हें पुष्पांजलि दी जाती थी। करतार सिंह सराभा ने देश की आज़ादी के लिये हँसते-हँसते अपनी जान दे दी। इस आजादी को हमें सम्भाल कर रखना चाहिए।
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लेखिका
डॉ. अलका अग्रवाल
निदेशिका, मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस
गाजियाबाद