धाय माँ ने सुभाष को नाम दिया था राजा। यह उनका नाम बिल्कुल सार्थक था। राजा जैसा स्वाभिमान, समुद्र जैसी गम्भीरता, चट्टान जैसे मजबूत इरादे, दूसरों का दुःख-दर्द समझने वाला सहृदय, और इन सबसे बढ़कर देश पर मर मिटने का जज़्बा। ये ही गुण उन्हें नेता बनाते थे। इसलिये उनका नाम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पड़ा। देश को आज़ाद कराने का उनका अपना तरीका था। इसलिये उन्होंने गाँधीजी का साथ छोड़कर, हिटलर और मुसोलिनी से मिलकर आज़ाद हिन्द फौज बनाई। उनका मानना था आज़ादी पाने के लिये अंग्रेजों र्की इंट से ईंट बजानी होगी। उनका सन्देश अपने भारतवासियों को स्वाभिमान और स्वतंत्रता दिलाने का था। उन्हें लगता था कोई भी भारतवासी अंग्रेजों के सामने सिर न उठाये। आज़ादी को हासिल करने के अलग-अलग तरीकों की वजह से उनमें और गाँधीजी में थोड़ा मतभेद था –
1ण् गाँधीजी पर देश की जनता का पूरा भरोसा था, लेकिन उनके नेतृत्व को लेकर मतभेद था।
2ण् गाँधीजी अंग्रेजों की कूटनीति के शिकंजे में कस गये हैं और यह देश भी जनता के साथ विश्वासघात है। ब्रिटिश सरकार कभी भी देश की जनता के साथ धोखा कर सकती है।
3ण् गाँधीजी राजनेता के रूप में पूरी तरह असफल रहे हैं, सविनय अपना आंदोलन को स्थगित करना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
4ण् गाँधीजी देश के महान नेता हैं, अगर मैं उनके विश्वास को न जीत पाया तो यह मेरा दुर्भाग्य होगा। इसलिए गाँधीजी ने भी कहा ‘सुभाष को किसी बंधन में नही बांधा जा सकता। मेरी तरह वह भी उदार है, लेकिन अगर वह अहिंसात्मक संघर्ष का नेतृत्व करता है तो आप सब मुझे उसके पीछे चलता हुआ पायेंग, अगर मैं आगे निकल भी गया वो मेरे पदचिह्नों पर चलता नज़र आयेगा।
डॉ. अलका अग्रवाल
निदेशिका,
मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस
वसुंधरा, ग़ाज़ियाबाद