चेतना वशिष्ठ की तीन भावपूर्ण कविताएँ

1-समन्‍दर की लहरें

 ये समन्‍दर की लहरें कुछ कहती हैं हमसे

चलो इनको समझे कुछ सीखें और पाएं

उफनती उमड़ती ये समन्‍दर की लहरें

अनेकों तूफानों को समेटे ये लहरें

किनारों तक आतीं तुरंत लौट जातीं

दुगने आवेग से दोबारा है आती

हर बार नई उम्‍मीद अपने अंदर है पानी

असंख्‍य शंखों सीपों को अंदर समाए

मानों मन के भावों को अंदर छिपाए

कभी भी न थमती कभी न ठहरती

हमें भी न थमने को मानों ये कहती

समन्‍दर किनारा उनका मंजिल बना है

हर बार जिसे पाना मानो उनका ठना है

इन्‍हें देखकर मानो लगता है ऐसे

हमें मंजिल पाने को कहती हो जैसे

इनकी तरह न रुके न थके हम

मंजिल छूने की हर कोशिश करें हम

लहरों की तरह हम बढ़ते ही जाएं

मंजिल पाने से पहले न थम पाएं

ये समन्‍दर की लहरें कुछ कहती हैं हमारे

चलो इनको समझे कुछ सीखें और पाएं

 

2-फूलों की सी खुशनुमा जिन्‍दगी

फूलों की सी खुशनुमा जब जिन्‍दगी होती है

गमों का चादर लपेटे जिन्‍दगी तब दूर ही सोती है

फूलों के रंग जब जिन्‍दगी में खिलते हैं

अंधेरों के काले ये साए तब जिन्‍दगी से

कहीं दूर ही दिखते हैं

फूलों की खुशबू जब जिन्‍दगी में

बिखर जाती है

कांटो की चुभन जिन्‍दगी में

तब महसूस न हो पाती है

फूलों के पराग जब जिन्‍दगी में

बिखर जाते हैं

उदासी के राग जिन्‍दगी में

कभी न भाते हैं

मुस्‍कुराती कलियां जिन्‍दगी में

जब खिल जाती है

अंधेरी गलियां जिन्‍दगीमें

नज़र न आती हैं

फूलों की सी खुशनुमा जब

जिन्‍दगी होती है

रंग-बिरंगे फूलों की महक

सदा जिन्‍दगी में रहती है

फूलों की सी…

 

3-परीक्षा की उलझन

 Exams के मारे ये बच्‍चे बेचारे

खेलकूद इंटरनेट से हो गए हैं किनारे

किताबों से करनी पड़ रही है मगजमारी

Whats app न कर पाना बन गई है लाचारी

क्‍या सोशल क्‍या साइंस क्‍या अंग्रेज़ी क्‍या गणित

प्रश्‍न होते हैं इनके ढे़र सारे अनगिनित

कभी सिलेबस कभी स्‍कूल कभी है ट्यूशन की टैंशन

किससे करें ये अपनी परेशानियों को mention

दिन भर पढ़ते हैं देर तक पढ़ते हैं

Exams के प्रश्‍न फिर भी इनको अनजाने से लगते हैं

Movies, mall, shopping सब कुछ कर दिया है sacrifice.

नंबर अच्‍छे लाने हैं हर कोई  देता यही advise

Parents की पूरी होगी क्‍या हमसे

यही सोचकर Expectations करते हैं मन से

पर इनकी तैयारी प्रश्‍न पत्र की है मारी

कभी दो सरल कभी पड़े इन पर भारी

अभी तो Exams का बोझ सिर पर बना है

आगे Result का डर अगला सिर पर खड़ा है।

इसी सोच में डूबे रहते हैं सारे

Exams के मारे ये बच्‍चे बेचारे…

 

-चेतना वशिष्ठ
सहायक निदेशक
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय
नई दिल्ली

 

       

 

 

 

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