मेवाड़ ने ‘आजादी के अनाम योद्धा’ विषय पर आयोजित की विचार संगोष्ठी
चार सालों के कड़े संघर्ष ने दिलाई
हमारे देश का आज़ादी-अरविन्द मोहन
गाजियाबाद। वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मोहन ने कहा कि महात्मा गांधी के अथक प्रयासों ने भारतवासियों में एकजुट होने का जज्बा पैदा किया, जिसकी बदौलत अंग्रेजों को भारत छोड़कर भागना पड़ा। वर्ष 1944 से 1947 तक के सामूहिक संघर्ष ने ही देश में विजय पताका फहराई। इसके पीछे उन अनाम योद्धाओं का बलिदान है, जिसे इतिहास में दर्ज नहीं किया गया। वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस की ओर से ‘आजादी के अनाम योद्धा’ विषय पर आयोजित आनलाइन विचार संगोष्ठी में उन्होंने यह विचार व्यक्त किये। विचार संगोष्ठी प्रभाष परम्परा न्यास और मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित की गई। अरविन्द मोहन ने अपने विचारों में आगे कहा कि 1931 से 1947 तक गांधी जी अपनी लीडरशिप से निराश हो गए थे लेकिन भारत के अनाम सैनिकों पर गांधी के विचारों का असर काफी गहरे तक उतर चुका था। 1942 से हालात काफी बिगड़ चुके थे। भारतीयों में देश को स्वतंत्र कराने की ज्योति ज्वाला का रूप ले चुकी थी। मुल्क में बेचैनी बढ़ने लगी थी। मुल्क के अंदर और बाहर परिवर्तन आ रहा था। देश को आजाद कराने के लिए अनाम योद्धाओं ने तत्परता तो दिखाई ही, साधुओं, भिखारियों, वेश्याओं, हरिजनों तक ने भी दिल खोलकर चंदा दिया। रजवाड़ों ने काफी मदद की। सैनिकों की बगावत रंग लाई और देश आजाद हुआ। यह कह सकते हैं कि देश के लोगों की ताकत ने गांधी जी से रिश्ता निभाया और कड़ा संघर्ष कर अपना अधिकार अंग्रेजों से छीना। मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ. अशोक कुमार गदिया ने कहा कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ आंदोलनों में से एक भारत का स्वतंत्रता आंदोलन है और महात्मा गांधी इस आंदोलन के अंतिम योद्धा थे। 1957 से 1947 तक 90 साल के कालखंड में लाखों लोगों ने देश को आजाद कराने में अपनी कुर्बानियां दीं। 1857 में हिन्दू-मुस्लिम दोनों साथ दुश्मन से लड़े। जलियां वाला बाग कांड ने आंदोलन को क्रांतिकारी रूप दे दिया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने भारत से बाहर अन्य देशों में लोगों को जोड़ने का काम किया। सेना बनाई। महिला रेजीमेंट खड़ी की। रंगून के भाषण ने गजब ही कर दिया। 1942 के असहयोग आंदोलन की चिंगारी देश के गांव-गांव तक फैल गई। जिसने हिंसक रूप लिया। नगालैंड और मणिपुर सीमाओं पर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ युद्ध हुआ। असंख्य कुर्बानियां दी गईं। क्रांतिकारियों, समाजसेवियों, आम जनता के सहयोग, गांधी और सुभाष के अथक प्रयासों से हमें आजादी हासिल हुई। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का स्वप्न जो देखा था, उसे पूरा करना बाकी है। हमारी लर्ड़ा अभी खत्म नहीं हुई, जारी है। हमें शिक्षा, रोजगार और विकास चाहिए तो संवैधानिक, राजनैतिक और सामाजिक रूप से एकजुट होना पड़ेगा। विचार संगोष्ठी में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष पद्मश्री राम बहादुर राय ने भी अपने विचार व्यक्त किये तो विषय की उपयोगिता को आज के संदर्भ में बहुत सार्थक व समीचीन बताया। अंत में मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डॉ. अलका अग्रवाल ने सभी का आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी में मेवाड़ परिवार और प्रभाष परम्परा न्यास के सभी सदस्य उपस्थित रहे। संचालन वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने किया।

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