काव्य की अनेक विधाओं में अपनी कालजयी रचनाओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले डॉ. कुंअर बेचैन जी का हिंदी साहित्य जगत हमेशा ऋणी रहेगा। केवल साहित्यकार ही नहीं बल्कि हर वक्ता,नेता की कथनी और करनी का आंकलन दुनिया वाले करते ही हैं। यानी साहित्यकार/ लेखक/वक्ता अपने कथन का अपने स्वयं के आचरण में भी अनुसरण करता है या नहीं यह भी देखा जाता है। इस विषय मे दो अलग-अलग विचारधाराएं हैं। एक मत के अनुसार साहित्यकार के कृतित्व यानी रचनाओं का ही आंकलन करना चाहिए, उसके व्यक्तित्व का नहीं। क्योंकि अंततः उसकी रचनाएं ही शेष रहेंगी अतः उसके निजी जीवन से क्या मतलब। दूसरे मतानुसार किसी भी रचनाकार /वक्ता/ नेता के खुद का आचरण भी दृष्टव्य है कि वो जो प्रेरक और अच्छी अच्छी बातें कह रहा है, स्वयं भी उनका अनुपालन करता है या नहीं। दोनों ही मत अपने-अपने स्थान पर सही प्रतीत होते हैं। लेकिन जिस काल खंड में हम जी रहे होते हैं, तो उस समय के किसी भी साहित्यकार/वक्ता/ नेता के कथ्य और उसके आचरण का आंकलन हमारा समाज और उसके पाठक/श्रोता/ दर्शक करते ही हैं। विलक्षण काव्य प्रतिभा के धनी डॉ कुंअर बेचैन साहब के सान्निध्य में मंचों पर अनेक बार काव्य-पाठ करने का शरफ़ मुझे भी हासिल है। उनके साथ मैंने अनेक काव्य-यात्राएं की हैं। पुस्तक-लोकार्पण कार्यक्रमों,सम्मान समारोहों, साहित्य विचार गोष्ठियों में भी उनके विचार सुने हैं। डॉ कुंअर बेचैन जी के कृतित्व पर टीका टिप्पणी या समीक्षा करने की न तो मेरी योग्यता है,और न ही हैसियत। फिर भी क्योंकि मुझ पर उनका स्नेहाशीष रहा है, इसलिए भावांजलि स्वरूप,स्वयं के सुधार के लिए उनके व्यक्तित्व और व्यवहार के कुछ उन पहलुओं का ज़िक्र करना चाहूंगा जिनका मैं हमेशा कायल रहा। ‘निष्कपट’ और ‘निश्छल’ जैसे शब्दों का साक्षात अनुवाद,और सरलता व सहजता की प्रतिमूर्ति थे डॉ कुंअर बेचैन साहब। न केवल मंच पर, बल्कि दैनिक जीवन में भी मैंने उन्हें कभी अग्रेसिव नहीं देखा,हमेशा एक मृदुल मुस्कान उनके होठों पर रहती थी। मंच पर हर कवि/शायर को न केवल ध्यान से सुनना, बल्कि भरपूर दाद भी देना उनका स्वभाव था। उनकी एक विशेषता जो मैंने किसी भी कवि/शायर में नहीं देखी, कि काव्य पाठ करने वाले हर कवि की रचना की उत्कृष्ट पंक्तियों को वहीं मंच पर एक कागज़ पर नोट करते रहते थे। मंच पर मैंने उहें कभी भी कुंठित या हीन भावना से ग्रस्त नहीं देखा। मंचीय उठापटक के इस व्यावसायिक दौर में पैसों के लिए आयोजकों से सौदेबाजी नहीं करने वाले डॉ कुंअर बेचैन साहब को किसी भी कवि /शायर की निंदा तो दूर, आलोचना भी करते हुए भी नहीं देखा, सुना गया।
ऐसी महान विभूति की स्मृति शेष को विनम्र श्रद्धांजलि
– दीक्षित दनकौरी
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