कथा संवाद में आकांक्षा पारे ने कहा कहानी हमें विरोध में खड़ा होने का साहस देती है
कथा के बहाने वंदना, काशिव, रिंकल, मनु, अर्चना, बीना ने की नारी मन की पड़ताल
भविष्य की चुनौतियों और जटिलताओं से मुक्ति का मार्ग दिखाती है कहानी : आलोक यादव
गाजियाबाद. महानगर में शनिवार को महिला दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कथा संवाद में महिला कथाकारों की रचनाएं मील का पत्थर साबित हुई। आयोजन को संबोधित करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष आलोक यादव ने कहा कि गल्प, कथा, किस्सा, कहानी मानव सभ्यता की पुरातन विरासतों में से एक हैं। कथा कहानी आज भी समाज में गहरे तक पैठ बनाए है। विश्व कथालोक अपने आप में किसी खजाने से कम नहीं है। जिसमें “कथा संवाद” जैसे आयोजन श्रीविधि कर रहे हैं। श्री यादव ने कहा कि “कथा संवाद” में सुनी गई कहानियां पूरे समाज का बयान हैं। मौजूदा दौर में साहित्य के साथ जहां विभिन्न प्रयोग हो रहे हैं वहां इस तरह की कार्यशाला नए रचनाकारों को गढ़ने के साथ कहन का सलीका भी सिखाती हैं। ऐसे मंचों पर नए रचनाकारों का आना बेहतर भविष्य की ओर संकेत करता है। 
नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित मीडिया 360 लिटरेरी फाउंडेशन के “कथा संवाद” में बतौर अध्यक्ष बोलते हुए श्री यादव ने कहा कि यह जरूरी नहीं कि कहानी हर बार समाज का आईना ही नजर आए। यह भविष्य की चुनौतियों को भी सामने रख सकती है और सामाजिक जटिलताओं से मुक्ति का मार्ग भी दिखाती है। मुख्य अतिथि और चर्चित कथाकार आकांक्षा पारे काशिव ने कहा कि कहानियां केवल समाज के लिए नहीं लिखी जा सकतीं। कहानी हमें विरोध में खड़े होने का साहस देती है। यही साहस आदमी का सबसे बड़ा अस्त्र है। मौजूदा दौर में लोगों में से साहस का लोप हो रहा है। उन्होंने अपनी प्रयोगधर्मी कहानी “आगरा, मन्नत और साहस” का भी पाठ किया। आकांक्षा पारे की कहानी पर बोलते हुए सुभाष चंदर ने कहा कि यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि प्रयोगधर्मिता के बावजूद कहानी में कहानीपन को जिंदा कैसे रखा जाता है? यथास्थितिवादी प्रतीकों के माध्यम से लिखी यह कहानी तमाम झंझावात के साथ अपने मुकाम तक पहुंचती है। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि वंदना जोशी ने “बदलता शब्दकोश” कहानी के माध्यम से मध्यमवर्गीय दंपत्ति के वैवाहिक जीवन के द्वंद व विरोधाभास का अनूठा चित्रण पेश किया। उनकी कहानी को सशक्त रचना बताते हुए आकांक्षा पारे ने कहा कि या तो हमें ऐसी कहानियां लिखनी बंद कर देनी चाहिएं या समाज को इन कहानियों के साथ खड़े होने का साहस दिखाना चाहिए। दोहरे, तिहरे चरित्र को खारिज करने की दिशा में यह कहानी एक सार्थक कदम है। मनु लक्ष्मी मिश्रा की कहानी “चल बिटिया घर आपने” के कथानक और शैली ने पुनः चौंकाया। युवा हस्ताक्षर टेकचंद को उनके कथा विषय “नकाब ओढ़ लीजिए” पर समालोचकों ने यथावत टिप्स दिए। रिंकल शर्मा की दो धर्म व दो संस्कृतियों के इर्द-गिर्द घूमती “निबाह न हो पाएगा” कहानी के प्लॉट पर लोगों ने जमकर विमर्श किया। संवाद की शुरूआत डॉ. बीना शर्मा की कहानी “घर” से हुई। सुभाष अखिल की कहानी “तुम मेरा सरनेम” और अर्चना शर्मा की कहानी “इंतज़ार” की भी खूब सराहना हुई। कार्यक्रम का संचालन रिंकल शर्मा ने किया। विमर्श में शिवराज सिंह, गोविंद गुलशन, आलोक यात्री, तूलिका सेठ, अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव, वागीश शर्मा, सुशील शर्मा, एडवोकेट वी. के. गुप्ता, डॉ. ज्ञान प्रकाश गर्ग, कुलदीप, राकेश सेठ, अमित कुमार, गजेंद्र चौधरी, दीपा गर्ग, प्रतीक, वैभव शर्मा, दर्शना अर्जुन विजेता, अखिलेश प्रताप सिंह, मनीषा, भारती, दीपांशु कौशिक व तनु सहित बड़ी संख्या में लोगों ने भागीदारी की।
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