सुकवि राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’ की कविताएँ

नाम- राजकुमार अरोड़ा


उपनाम–गाइड. जन्मस्थान-भिवानी. उम्र- 63 वर्ष. निवास स्थान-982, सेक्टर 2, बहादुरगढ़(हरियाणा). मो०9034365672. व्यवसाय- फ़रवरी 2017 में पी एन बी से सेवानिवृत्त. शिक्षा- एम० ए० (हिन्दी). साहित्यिक उपलब्धियाँ-1974 -1977 कॉलेज पत्रिका’प्रवीर’का छात्र सम्पादन। 1978 -1981 तक पाक्षिक ‘बहादुरगढ़ पत्रिका’का सम्पादन व प्रकाशन. अनियमितकालीन पत्रिका’निशान्त’का प्रकाशन. पांच संकलन प्रकशित. जनवरी 2017 में काव्य संग्रह”मुठ्ठी भर एहसास”. एक मुक्तक संग्रह प्रकाशनाधीन. पिछले पचास वर्षों से स्थानीय, राज्य, राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में अनवरत रचना प्रकाशन. कवि सम्मेलन व काव्य गोष्ठियों में निरन्तर सहभागिता। दो पत्रों में वर्ष भर से लगातार एक रचना रोज़ प्रकाशित होने का गौरव प्राप्त। Dtvlive, राजभर टी वी, साहित्य के फलक पर,काव्य धारा व अन्य कई u tube चैनल पर लगभग 45 प्रस्तुति। अभी कुछ दिन पूर्व ही अपना u tube चैनल-rchmap tv शुरू किया ,जिसमें 14 वीडियो अपलोड,और साथ साथ होते रहेंगे।

सुकवि राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’ की कविताएँ

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जिन्दगी गीत है, संगीत है, कविता है,ग़ज़ल है। इसको फूल समझना है भूल, धारा समझेंगे तो सारा सुख वसूल। जो समझे इसे जंग यह सदा 
उसके संग, कोई कहे उमंग तो कोई कहे कटी पतंग। किसी के लिये बहती नदिया, कोई समझे गम का दरिया, कोई करे इसका दमन कोई थामे इसका दामन। जब तक साँसों की डोर बंधी, तबतक साथ निभाना है, मगर से वैर क्यों करें, जब जल में ही रहना है। सत्य की डगर पर शुभ कर्म करते हुए जिन्दगी की इस कड़वी सच्चाई  से भरपूर चुनौती से रूबरू तो होना ही है, जिन्दगी का यही फलसफ़ा समझाती
मेरी रचना–
*जीने की कसक अभी भी रह गई*
जिंदगी से लड़ने की जिद में मैं जदो जहद करता रहा।
जिंदगी आखिर है क्या, यह समझने की कोशिश में लगा रहा।।
जिंन्दगी को दांव पे लगाया तो मेरे जहन में बस यही आया।
दर्द जिसको पीना आ गया, समझो उसको जीना आ गया।।
जिंदगी के हर मोड़ पर,मै जिंदगी से मिलता रहा।
जिंदगी मुझको मिली,मिल कर बहुत कुछ कह गई।।
मुझको जियो,जी भर कर जियो,जिओ तो ऐसे जियो।
बाद में जिंदगी भी कह उठे, जीने की कसक अभी भी रह गई।।
जिंदगी एक मीठा फल है,कड़वा भी हो सकता है   
कड़वाहट में भी मिले मिठास ,यह चखने का फर्क हो सकता है ।।
चखते परखते हैं जिन्दगी को जितना,जिन्दगी उतनी औऱ निखरती है।
जिन्दगी बनी जिंदादिली, जिंदादिल की अपने आप संवरती है।।
जीना है तो जीने के लिये, तुम्हें ज़ीना चाहिये।
ज़ीना गर मिल जाये,तो आदमी पा जाता है ऊँचाइयां।।
ऊँचाइयों पर ठहर गया जो आदमी,आदमी है वो ठहरा हुआ।
जिन्दगी है बस उसी की,जिन्दगी का उस पर पहरा हुआ।।
जिंदगी में हर वक्त अच्छे लोगों की तलाश में क्यों रहते हो 
हर कोई तुम्हारे लिए अच्छा करे ,बस इस आस में क्यों रहते हो ।
खुद अच्छे बन जाओ, अच्छे बन ,हर किसी के काम आओ ।
तुमसे मिल किसी की तलाश होगी पूरी, बस यही स्वयं को समझाओ।।
खुश रहना कितना मुश्किल है, क्यों कि यह जिंदगी बड़ी ग़मगीन है।
हर हाल में खुश रह कर ,जिंदगी लगती कितनी हसीन है ।।
जब हम खुश है,खुशहाल है, तो यह जिन्दगी बेहतर है।
पर जब हमसे दूसरे ख़ुश है, तब यही जिंदगी बेहतरीन है ।।
यूँ तो हम हर सूरत, हर हाल में खुश रह कर भी मुस्कराते हैं ।
गम के गद्दों पर ,खुशी के फूलों की चादर सजा देते हैं । 
हम को तो आदत ही हो गई है, भीड़ में भी अकेले रहने की ।
यह बात अलग है कि, अकेले रह कर भी भीड़ जुटा लेते हैं ।।
साँस लेता हूँ,तो ज़ख्मों पर मरहम सी लगती है।
जिन्दगी तू ही बता,तू मेरी क्या लगती है।।
कभी अपनी,कभी बेगानी,कभी पूरी,
कभी अधूरी लगती है।
तू मुझे अपना बना ले,
देख तेरी मेरी,फिर कैसे छनती है।
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