संक्षिप्त परिचय
- डॉ. सुरिन्दर कौर नीलम. पति-सरदार गुरकमल सिंह जगदेव. शिक्षा-एम ए.दर्शनशास्त्र और हिंदी, पीएच. डी, बेचलर ऑफ जर्नलिज्म. प्रकाशन- काव्य संग्रह “नीलकमल”, अनेक काव्य संकलनों में कविताएं और लघुकथाएं देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित. सम्मान-मुख्य रूप से, लोक सेवा समिति द्वारा “झारखंड रत्न”, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ सम्मान, झारखंड सरकार द्वारा साहित्य सम्मान, दूरदर्शन रांची द्वारा सम्मान, बच्चन पाठक शशिकर सम्मान, कविवर वृजेंद्र मोहन स्मृति सम्मान, काव्य रंगोली द्वारा अरूणिमा सम्मान, झारखंड साहित्य, संस्कृति मंच द्वारा सम्मान, दिल्ली की आगमन संस्था द्वारा सम्मान, दिल्ली की प्रेरणा दर्पण द्वारा सम्मान, प्रभात खबर रांची द्वारा सम्मान. संप्रति-पूर्व विभागाध्यक्षा दर्शनशास्र. पता- सीडी 755, सेक्टर 2 साईट 5 एच ई सी कालोनी पोस्ट-धुर्वा रांची 834004, झारखंड
घर
जब घर होते थे मिट्टी के कच्चे
तो रिश्ते होते थे सीमेंट से भी पक्के
लीपा जाता था आँगन
संस्कारों के गोबर- माटी से
लटकाई जाती थीं द्वार देहरी पर
मर्यादाओं की झालरें
बंधी रहतीं थीं परंपराएं
बुजुर्गों के खूंटों से..
बड़ा मुश्किल था
उन रिश्तों को खिलौना बना देना…
अब घर बन रहे हैं पत्थरों से पक्के
तो रिश्ते होते जा रहे हैं
रेत जैसे कच्चे
ज़रा सी बात पर गिर जाते हैं तमतमाकर
इन पक्के घरों में
काँच की आलमारियों में सजाए गए
रंगीन रिश्ते…
आधुनिकता की बाल्कॉनियों के
निर्लज्ज गमलों में पाल रहे हैं
वृद्धाश्रम की कंटीली बेलें
ये नये दौर के मशीनी रिश्ते…
जब घर होते थे जमीन पर
तो रिश्तों के ठहाके लहराते थे हवाओं में
नि:स्वार्थ धूप की आँच में
संवेदनाओं की बर्फ पिघलती
तो रस बरसाते थे रिश्ते…
आज घर बन रहे हैं हवा में
तो रिश्ते धँसते जा रहे हैं धरा में
ऊँची- ऊँची छतों पर से
दिखाई नहीं देते
ये जमीन पर गिरे पड़े तड़पते रिश्ते…
घर छोटे थे तो
बड़े-बड़े दिलों में रहते थे रिश्ते
आज घर बड़े हैं तो
बनावटी दिलों में
सोच-समझकर धड़कते हैं ये खुदगर्ज रिश्ते
चिकने फर्श पर यूँ फिसलते हैं
कि संभलते नहीं रिश्ते
अपने-अपने कमरों में बंद होकर
धीरे-धीरे दीवार होते जा रहे रिश्ते….