बिखरी-बिखरी ज़िंदगी….छुअनें लगतीं मौत-सी
                                                                                                -सोनिया वर्मा-
पूरी दुनिया संकट से जूझ रही है ,इस संकट ने  जनजीवन को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया है। यह एक ऐसी बीमारी है जो छींकने, खाँसने या छूने से फैलती है। इस महामारी से बचने का अभी तक कोई रास्ता नही नज़र आ रहा बस एक ही उपाय समझ आया कि लोगों को एक – दूसरे से दूरी बनाकर रखनी हैं।दूरी बनना इतना आसान नहीं हैं यह तब समझ आया जब सुरक्षा की दृष्टि से चाह कर भी ऐसा करने में लोग असमर्थ रहे।बचाव का एक मात्र रास्ता लॉकडाउन लगा। लॉकडाउन मतलब सभी लोग अपने घर में ही रहेंगे, अति आवश्यक हो तभी बाहर निकलने की छूट मिलेगी ।ऐसा मानिए की कर्फ्यू जैसी स्थिति हो जैसे।यह कोरोना नाम की महामारी कोई भेद नही करती हर तबके के लोगों को समान रूप से प्रभावित करती है। जीवन की आपाधापी में व्यस्त लोगों को अचानक मिला खाली  समय काटने लगा, वह इतने समय का क्या करें समझ नहीं पा रहे थे।रोजी-रोटी की तलाश में लगे लोगों को 24 घंटे कम पड़ते थे और आज अचानक 24 घंटा बहुत अधिक लगने लगा , काटे नहीं कट रहा समय। लॉकडाउन के समय को लोगों ने स्वविवेक से उपयोग किये।कुछ ने पसंद का काम किया ,कुछ ने कुछ सीखा और कुछ अपनी प्रतिभा के निख़ार में लग गये। इस समय में लेखन क्षेत्र से जुड़े लोगों ने भी खूब कमाल किया। लेखकों को अन्य रचनाओं को पढ़ने और अपने लेखन को तराशने का समय मिला। 510 दोहे 21 विषयों पर लिखना और  इसे एक पुस्तक का रूप देना।  कोई साधारण काम नहीं हैं और इस असाधारण काम को अंजाम देने वाले कवि जिनका ग़ज़ल के क्षेत्र में बहुत नाम है यह है आदरणीय चेतन आनंद जी। लॉकडाउन में इनकी दोहे की पुस्तक आई हैं “छुअनें लगतीं मौत- सी”।इससे पहले इनका  ग़ज़ल संग्रह  “अल्फ़ाज़ के पंछी” पुस्तक आई है। 
दोहे अपने स्वरूप और अपनी अंतर्वस्तु से ही नहीं जाने जाते | उनमें अभिव्यक्ति की सहजता, भावों की गहनता, मार्मिकता और सम्प्रेषण की त्वरा भी आवश्यक है | थोड़े में बहुत कह जाना दोहों की विशेषता है |दोहे की रचना करते समय पहले इसे गाकर लिख लेना चाहिए तत्पश्चात इसकी मात्राएँ जांचनी चाहिए ! इसमें गेयता का होना अनिवार्य है ! दोहे के तेइस प्रकार होते हैं | दोहो में परिवेश व स्थिति का प्रभाव भी होना स्वभाविक है। दोहे के नियम को दोहाकार चंद्रसेन विराट के दोहे से समझे तो वे कहते हैं कि
ग्यारह सम, तेरह विषम दोहा मात्रा भार।
विषम अन्त में हो रगण, गुरु-लघु सम के पार।। -चन्द्रसेन विराट
दोहे में दोहे के नियमों का पालन अतिआवश्यक है। एक कवि का मन थोड़ा अलग होता है वह हरेक  घटना या परिस्थिति को महसूस कर अपने शब्दों में व्यक्त करता है। एक अच्छे कवि के  भाव या विचार लोगों को अपने भाव या विचार लगने लगना ही कवि की सार्थकता  है। चेतन जी के  निम्न दोहे  पाठक को अपने भाव  लगते है।लॉकडाउन ने लोगों की घूमने- फिरने की आजादी छीन ली,मनुष्य कैदी  जैसा महसूस करने लगा ।पंछियों कि तरह पंख फैलाने की चाह और उन्नति की ओर अग्रसर रहने वाला मनुष्य खुद को कितना लाचार, बेबस और असहाय महसूस करने लगा…
पंछी नभ में उड़ रहे, रोज़ परों को खोल।
मानव पिंजरे में पड़ा, ग़लती रहा टटोल।।
पशु- पक्षी उन्मुक्त हैं,हर्षित भू-आकाश।
मानव घर में क़ैद है,बेबस और निराश।।
 कोरोना  अमीर, गरीब, देखकर  कम या अधिक प्रभाव नही डालता। यह महामारी समानता दिखाती है । यह वक़्त भेदभाव रहित रहने की और सबको साथ लेकर चलने की सीख ज़रूर सीखा देगा…..
नौकर, चाकर, पार्टियाँ, उत्सव, पिकनिक, कार।
लेकिन जीवन के लिए, यह सब है बेकार।।
हम सब 2020 को चाहकर भी नहीं भूल सकते। जो सक्षम थे वो तो गुजर -बसर कर लिये परन्तु लाचार और असक्षम लोगों को हर्ज़ाना भरना पड़ा ।महामारी का डर उपर से रोजीरोटी की चिंता।कुछ संभल गए और जो संभल नही पाए वो आत्महत्या जैसे कदम उठा लिए। पूरे परिवार को मार कर खुद को भी समाप्त करने ऐसी घटनाएं भी हुई।यह है कोरोना की भयावहता इसे इस दोहें में महसूस करेंगे आप…..
ज़िम्मेदारी पर पड़ी,कम वेतन की मार।
एक श्रमिक की मौत का,कारण बना उधार।।
हाथ मिला कर ,गले लगाकर अपनापन, प्यार और सोहार्द्र व्यक्त करने का एक तरीका है जो सदियों से चला आ रहा है। कभी किसी ने सोचा भी नहीं था कि मुँह ढँकना,एक दूजे से दूरी रखना इतना आवश्यक हो सकता है। महामारी कोरोना ने ऐसा करने पर विवश कर दिया और जो इसका पालन नही करता उस पर  कोरोनाग्रस्त होने का संकट मंडराता रहता है। इसका पालन करना लोगों को अकेला कर दे रहा है ।एक तरह से देखा जाए तो लोगों को एकांतवास में रहने की सीख देता है…..
मानव-मानव में हुआ, यह कैसा अलगाव।
सन्नाटे का हर तरफ,बस दिखता फैलाव।।
लॉकडाउन में मनुष्य अपने कृत्यों को अच्छी तरह परख सका है । कुछ माह के लॉकडाउन से वायु ,जल और धरा साफ -सुथरी हो गई। कोरोना ने जहाँ एक तरफ अपूर्णीय क्षति की है वहीं पर्यावरण रक्षा का सबक भी देता है जिसे कवि सभी को आत्मसात करने की सलाह दे रहे है ……
नीलगगन रोता बहुत, देख धरा का हाल।
पल-पल कहता हे प्रिया,खुद को ज़रा सँभाल।।
मीलों लम्बी प्यास है, पग-पग पसरी भूख।
साँस लगी है टूटने, रहे प्राण अब सूख।।
उपरोक्त दोहो को देखकर लगता है कि  कवि  लॉकडाउन  या कोरोना से प्रभावित दोहे ही पुस्तक में  हैं। निम्न दोहे को पढ़कर ऐसा सोचना आपको ग़लत लगेगा।यह सच है कि यह दोहे लॉकडाउन में लिखे गये है जहाँ एक तरह कोरोना की त्रासदी से मन परेशान है वहीं दूसरी ओर कवि मन अन्य कई विषयों पर भी अपने भाव व्यक्त करने से नही चुका…
हौसला एक मात्र हथियार है जिसके रहने पर बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना कर सकते है। हौसलानुमा हथियार हमें हमेशा अपने पास रखना चाहिए।
लाख दुश्वारियों के बावजूद एक दीपक राह रोशन करना नहीं भूलता।…..
गर्म तेल तन पर लिये, सिर पर रखकर आग।
डटकर तम के सामने,जलता रहा चिराग।।
कुछ लोग दीपक के समान होते है फर्ज़ निभाते -निभाते जी जान गंवा देते हैं।ऐसे बहुत कम लोग मिलेंगे पर ऐसे लोगों को  मूर्ख समझा जाता है।अधिकतर लोग जोड़-तोड़ से अपना काम करवा लेते है।कभी- कभी हैसियत और काम के अनुसार चढ़ावा भी चढ़ाना पड़ता है ऐसे लोगों को।कलयुग काल  चाटुकारिता का काल है इसमें चाटुकार ही फलेंगे और फूलेंगे….
मक्खन रोज़ लगाइए, मक्खन ही उपचार।
कामचोर का कर रहा,मक्खन बेड़ापार।।
आँसू मन की ज़ुबान  है खुशी-ग़म दोनो में आ जाते है। यह आँसू रोके नहीं रूक रूकते, लब मौन रहे तब आँसू सब कुछ कह देते है…..
दुख उमड़ा,तो हिल उठी,अन्तर्मन की झील।
आँखों में आकर हुई, आँसू में तब्दील।।
माँ के चरणों में स्वर्ग होता है।जो माँ की सेवा करता है उसे कोई कष्ट छू भी नहीं सकता।माँ प्रथम गुरु  होती है और हमारी रक्षक भी होती है। माँ से बढ़कर कुछ भी नहीं।….
माँ में ही गीता बसी, माँ में पाक कुरान।
भक्ति-शक्ति माँ में बसी,माँ में ही भगवान।।
कभी-कभी मात्रिक अनुशासन होने के उपरांत भी, दोहे की भाषा ऐसी होती है जो काव्य-सौन्दर्य नष्ट कर देती है। 
दोहे के बारे में स्वयं कवियों ने दोहे कहे हैं….
तुलसी कहते हैं-
मणिमय दोहा दीप जहँ, उर घट प्रगट प्रकास।
तहँ न मोह तम मय तमी, कलि कज्जली बिलास।।
रहीम के लिहाज से दोहा है-
दीरघ दोहा अरथ को, आखर थोड़े आंहि।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमटि-कूदि चलि जाँहि।।
संक्षिप्तता, स्पष्टता, सरलता, संप्रेषणीयता तथा गेयता- दोहे के गुण हैं। इन्हीं गुणों के कारण यह लोकप्रिय तथा उद्धरणीय है। संप्रेषणीयता और उद्धरणीयता एक-दूसरे से गहरे जुड़ी हैं- क्योंकि कोई बात जब आसानी से समझ में आ जाती है, तो वह उद्धृत भी की जाती है। जैसे- ग़ज़ल का कोई शेर!
ग़ज़ल का शेर कहने में कुछ छूट(मात्रा पतन) लेने का छूट है जैसै “कोई ” की मात्रा 12,21या22 ले सकते है परन्तु दोहो में यह वर्जित है।
चेतन जी के पास दोहे के विषय की विविधता है।भाषा ऐसी जो आम पाठकों को समझ में आ जाए ।
वर्ण्य विषय की दृष्टि से दोहे का फलक बहुत विस्तृत है। कोरोना में लोगों की मनोदशा, माँ ,वेतन ,मजदूर आदि विषय पर चेतन जी ने दोहे लिखें है। अपने छोटे से कलेवर में यह बड़ी-से-बड़ी बात न केवल समेटता है, बल्कि उसमें कुछ नीतिगत तत्व भी भरता है। तभी तो इसे गागर में सागर भरने वाला बताया गया है।छोटी -छोटी त्रुटियों को नज़र अंदाज़ करें तो पुस्तक की छपाई  अच्छी हुई है और नाम बिल्कुल समय के अनुरूप है ।कवर फोटो नाम की सार्थकता सिद्ध करता है इस पुस्तक के लिए चेतन जी को बहुत-बहुत शुभकामना।
पुस्तक- छुअनें लगतीं मौत-सी
रचनाकार- डॉ. चेतन आनंद
विधा- दोहा संग्रह
पृष्ठ संख्या- 112
मूल्य- ₹200.00
प्रकाशक-  देवप्रभा प्रकाशन
              फ्लैट नं.जी-50, ई-ब्लॉक
              गौड़ होम्स,गोविंदपुरम
               ग़ाज़ियाबाद-201013(उ.प्र)
संस्करण- प्रथम (2020-21)
News Reporter

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