– रचना गोयल –
किसान देश की बहुत बड़ी ताकत है हम सब जो भी अन्न ग्रहण करते है वह ये किसान ही पूरे साल मेहनत कर के उगाते है | देश मे 14 करोड़ किसान परिवार है जो 130 करोड़ आबादी के लिए अन्न उपजा रहें है ऐसे मे किसान को देश का `अन्नदाता` कहना गलत नहीं होगा | इन अन्नदाताओं के साथ सरकार की संवेदना इतनी कम दिख रही है अन्यथा सरकार अब तक आंदोलन समाप्त करवा कर किसानों को प्रसन्न कर घर भिजवा देती | यह सत्य है देश ने सुधार के नाम पर अचानक थोपी गयी नोटबंदी को झेला जिसके भयानक परिणाम देखने को मिले थे | लाखों नौकरियां और सैकड़ों जिंदगियां खत्म हो गईं थी | इससे भी गरीब एवं मध्यमवर्गीय प्रभावित हुए थे वहीं पूंजीपतियों की पूंजी और बढ़ गयी थी | जीएसटी को भारत की आर्थिक आजादी के रूप में दिखाया गया | जीएसटी भी अचानक आधी रात में आ गया था | उसके बाद कोरोना से लड़ने के नाम पर पूरे देश में चार घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन किया गया | 21 दिन की कोरोना से लड़ाई बताई गई लेकिन कोरोना तो आज भी खत्म नहीं हुआ परंतु हजारों प्रवासी मजदूरों की जिंदगियां देश की सड़कों पर खत्म हो गईं | लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं | इन सब बातों को मद्देनजर रखते हुए हम कह सकते है हर बदलाव को सुधार नहीं कहा जा सकता है | इसी तरह अब तीन नए कृषि कानून किसानों पर थोपे जा रहे है जिसका किसान पुरजोर विरोध कर रहे है | केन्द्र सरकार सितंबर महीने में 3 नए कृषि विधेयक ले आई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे अब कानून बन चुके हैं | किसानों का कहना है कि इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा | सरकार कह रही है इससे किसान का फायदा ही फायदा है परंतु किसान कह रहे है इससे उनका ही नहीं देश की जनता का भी नुकसान होने वाला है | आइये जानते है यह तीन कृषि कानून क्या है? और यदि इन तीनों क़ानूनों को नहीं रद्द नहीं किया गया तो भारतीय परिवेश मे ज़मीनी हक़ीक़त क्या होने वाली है ? पहला विवादित कृषि कानून है ”कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक, 2020”. इसमें सरकार कह रही है कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ा रही है | किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे | निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर हो जाएँगें | बिलकुल गलत इसके विपरीत सत्य यह है कि कोई भी खरीदार दो पैसे मूल्य कम करवाने में ही रहता है चाहे वह निजी ख़रीदार हो अथवा कॉर्पोरेट, वही बेचते समय चार पैसे ज्यादा कमाने की सोचता है यही ज़मीनी हकीकत है | दो बाजार की इस परिकल्पना से किसान को सिर्फ तब फायदा हो सकता है जब MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य का उचित मूल्य फिक्स कर दिया जाए | इसीलिए किसान MSP का कानून बनाने को कह रहे है जिससे उन्हे मार्केट का ज्ञान पहले से हो और कोई भी कॉर्पोरेट उनकी फसल कम मे खरीद कर न जाने पाये | यदि चला भी जाए तो किसान को एमएसपी जितने रुपयों की मांग कर के वसूल कर पाने का प्रावधान हो | मंडी के बाहर के मार्केट का कानून नहीं बल्कि छूट देनी चाहिए जबकि एमएसपी का कानून | मंडी के बाहर भी कौन कितना अनाज ले गया उसको सरकार को दर्ज़ कराने का नियम भी होना चाहिए | जिससे चोर बाजारी एवं काला बाज़ारी पर भी नियंत्रण हो सके | मतलब मंडी के बाहर कि बिक्री का रिकॉर्ड भी सरकार के पास होना चाहिए यह पूरे देश के अनाज का मामला है | दूसरा कानून है- ”कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020”. इस कानून में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है | इसे साधारण बोल चाल की भाषा में `कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग` कहते है | किसान की जमीन को एक निश्चित राशि पर कोई पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा | इससे तो किसान को बंधुआ मजदूर बनवाने की शुरुवात है | वही यदि कुछ विवाद हुआ तो उनको हाथ पर हाथ धर के अपने घरों मे बैठना पड़ सकता है | इसपर प्रधानमंत्री जी कहते है कि वह जमीन का कांट्रैक्ट देने की बात नहीं कर रहे बल्कि नए कानून में क्रॉप का कांट्रैक्ट फसल उगने से पहले ही देने का प्रावधान है जो किसानों के हित में है | जो फसल अभी उगी ही नहीं जिसके सिर्फ उगने की संभावना है उसके लिए किसान यदि किसी से भी पैसा ले लेता है या कांट्रैक्ट करता है तो वह दबाव मे आ जाएगा | उसके कर्जे मे आ जाने की संभावना बढ़ जाती है | मोदी जी को बता दें , फसल उगना सिर्फ मेहनत , जमीन एवं बीज़ पर ही निर्भर नहीं होता वरन प्रकृति पर भी निर्भर होता है | ऐसे में एडवांस कांट्रैक्ट के तहत किसी से पैसा लेना सरकार के बनाए कानून के तहत किसानों के लिए किस तरह हितकर हुआ ? इससे भीतर मे बड़े कॉर्पोरेट का हित जरूर नज़र आ रहा है| किसान बिलकुल सही कह रहे है उन्हे यह कानून नहीं चाहिये | किसान “मीठा जहर“ कभी “काले कानून“ भी कह रहे है फिर भी सरकार थोपने मे क्यूँ लगी हुई है ? इतना ही नहीं इस कानून के चलते किसान की भावात्मक वैल्यू पर भी आघात लग रहा है | किसान अपनी ज़मीन को माँ और फसल को सोना मानता है वह बड़ी मेहनत से फसल उगाता है जिसकी उसे खुशी मिलती है | इसी के चलते एक और हकीकत निकल कर आएगी जिससे किसान परिवारों मे पारिवारिक विवाद तक की नौबत तक आ सकती है | कहीं-कहीं एक भाई अपने परिवार की पुस्तैनी ज़मीन पर किसानी से परिवार चलाता है जबकि बाकी भाई नौकरियों पर निकल चुके होते है | ऐसी स्थिति मे बाकी भाई किसान भाई को कांट्रैक्ट पर खेती करवाने का दबाव डाल कर अपना हिस्सा मांग सकते है | यह जमीनी हकीकत अभी से ही देखने को मिल रही है जो किसान इस कानून का समर्थन कर रहे है वह किसानी से गुज़र बसर नहीं कर रहे बल्कि किसान परिवार से ताल्लुक रखते है | वही कहीं-कहीं परिवार में कोई भी खेती नहीं कर रहा और जमीन खाली पड़ी हुई है | ऐसी जमीन के मालिकों के लिए कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग एक वरदान साबित हो सकती है | ऐसी जमीन पर सरकार को कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग की इज़ाजत दे देनी चाहिए |
तीसरा कानून है , आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020 | यह कानून भी खतरनाक है | अब कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी | उपज जमा करने के लिए निजी ख़रीदारों को छूट होगी | यह तो सीधा सीधा कॉर्पोरेट और निजी ख़रीदारों के गोदामों के लिए बनाया कानून है , किसान का दूर दूर तक कोई हित नहीं वरन देश का भी नुकसान है | इसको भी कानून का दर्जा नहीं छूट देनी चाहिए | वह भी तब जब एमएसपी का कानून बना दिया जाए और मंडी के बाहर खरीदा अनाज सरकार के रिकॉर्ड मे दर्ज़ हो | जिससे अनाज की कमी होने की स्थिति मे भी सरकार कॉर्पोरेटस को ऊंचे दाम पर बेचने के लिए रोक लगा सके | यह इलेक्ट्रोनिक आइटम्स का मामला नहीं बल्कि देश के अनाज का मामला है जिसे प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है | अप्राकृतिक रूप से बड़ी से बड़ी कंपनी में उपजाया ही नहीं जा सकता |
उपरोक्त तीनों कानूनों के भीतर मे जाकर ज़मीनी हक़ीक़त समझने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि हर बदलाव सुधार नहीं होता | किसानों का तीनों कानूनों को रद्द करवा देने एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी को कानून बना देने की मांग करने का आंदोलन जायज़ है | सरकार को जल्द ही किसानों की मांगे मान कर आंदोलन समाप्त करवा देना चाहिए |
*****जय हिन्द ****