श्री किशन सरोज-मैं तुम्हें गाता रहूंगा

भावभीनी श्रद्धांजलि

 

धुंध में डूबे हुए इस चीड़ वन की,
गोद में यों ही नदी सोई रहे,
मैं तुम्हें गाता रहूंगा.
निरंतर गाते रहने के खवाहिशमंद, धुंधलकों में आस और उम्मीद की किरण का अलख जगाते, निरंतर प्रेम और प्यार की पावन, पुनीत, निःस्वार्थ भावनाओं की पाक अभिव्यक्ति के पक्षधर और मंच के सफल गायक कवि श्री किशन सरोज वर्तमान साहित्य में एक मील का पत्थर थे. बाबा नागार्जुन ने उनके लिए कहा-‘मधुर गीतों के रचनाकार हैं भाई किशन सरोज, युगधर्मिता जिनके शब्द शिल्प को नया आस्वाद देती है.’ (बना ना चित्र हवाओं का) वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर ‘अवाक कर देने वाले शब्द’ शीर्षक लेख में लिखते हैं-‘किशन सरोज की असली शक्ति यह है कि वे गीत को आदर के साथ ग्रहण करते हैं और न सिर्फ तुकबन्दियों में उलझते हैं और न शब्दों की बाजीगरी ही करते हैं. यह कहने के साथ ही ये भी मान लिया जाना चाहिए कि किशन सरोज उन दुर्लभ कवियों में से हैं जिनकी कविताएं सुनने में भी उतना ही आनंद देती हैं जितनी पढ़ने में.’(बना ना चित्र हवाओं का, पृ.14) किशन सरोज जी जब गीत रचते हैं तो उन गीतों में प्रेम का भाव भी भीतर तक छू जाता है यदि उनके प्रेमपरक गीतों की बात करें तो हम पाएंगे कि वे इतने प्यारे बन पड़े हैं कि अंतस को छू लेते हैं. इसलिए मशहूर शायर वसीम बरेलवी कहते हैं-‘किशन ने प्यार को नभ में तलाश करने के बजाय जमीनी पैकर में ढूंढा. तब ही तो उसका दर्द उसके गीतों में कभी आह, कभी कराह, कभी चीख बनता गया.उसकी काव्य-यात्रा जीवन से जुड़े अनगिनत रंगों की बजाय प्रेमरंग से आरंभ होती है और उसी पर समाप्त भी. मगर शायद इससे बढ़कर कोई और रंग-यात्रा हो भी नहीं सकती.’ (बना ना चित्र हवाओं का, पृ-18)
‘पहले तुमने मेरे गीत सुने, फिर उन्हें सराहा भी, धन्यवाद.
भरे भुवन में तुमने, डाली जब सजल दृष्टि,
झिलमिल झिलमिल माया नगरी की हुई सृष्टि,
मेरे दुःख को अपना दुःख समझा, और मुझे चाहा भी.
धन्यवाद.’
कवि किशन सरोज ने प्रेम के हर भाव को अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति दी. उनकी रचनाओं की विशिष्टता के चलते ही प्रख्यात साहित्यकार डॉ. कुँवर बेचैन कहते हैं-‘आत्माभिव्यक्ति, रागात्मकता, नाद और लय के सभी गुणों से सुसज्जित प्रतिष्ठित एवं प्रख्यात गीत कवि श्री किशन सरोज जी के गीत काव्य की परंपराओं में अपनी अलग पहचान बनाने के कारण विशिष्ट एवं अद्वितीय हैं.’
श्री किशन सरोज ने न केवल प्रेम में संयोग के चित्रण को बखूबी उकेरा है वरन वियोग श्रृंगारपरक गीतों में भी उनका कोई सानी नहीं. पौलेंड से डॉ. श्रीमती शारदा जौहरी अपने लेख ‘एक शापित यक्ष’ में लिखती हैं-‘हे आंतरिक रसानूभुतियों के सहजतम चितेरे! तुम्हारे गीतों में व्यथा जितनी गहरी है, अभिव्यक्ति उतनी ही सशक्त….सुकवि! किन चंदनी हवाओं ने तुम्हारे जीवन को सुवासित किया था. कौन थे वे हरसिंगार, जो सुधि-सुरभि बन झरते रहे? और अब रजनीगंधा पराए आंगन में खिलकर भी तुम्हारे सूनेपन को महका रही है. अथवा तुम स्वयं बाणबिन्धे हिरण से बंजारों जैसा मन लिए भटकने को व्याकुल हो, विवश हो. शायद कालिदास के अभिशापित यक्ष तुम ही थे, शायद घनानंद की पीड़ा अब पुनः तुम्हारे ही स्वर में मुखरित हो रही है. शायद रवींद्र के अंतर में समाई विरहणी ही तुम्हारी आत्मा है.’ कवि किशन सरोज ने पीड़ा को जो उदात्त रूप दिया वह दर्शनीय है. डॉ. उर्मिलेश भी कवि किशन सरोज की वेदना के स्वरों का इतिहास बताते हुए कहते हैं-‘गीतकार किशन सरोज प्रेम, वेदना, मानवीय संवेदना और प्रकृति जुड़ाव का कवि है. जिस तरह प्रेम जीवन में शाश्वत है उसी तरह कविता में भी फौरी तौर पर या परिस्थति के दबाव में हम भले ही आतंक, अलगाव, भ्रष्टाचार, राजनैतिक घटनाक्रमों पर लेखनी चला लें लेकिन अंततः हमें प्रेम की ओर ही लौटना होगा…वेदना उनके गीतों का दूसरा और महत्वपूर्ण आधार-तत्व है. शायद यह वेदना ही है जिसने के.एल.सक्सेना को किशन सरोज बनाया.’ (बना ना चित्र हवाओं का,पृ. 16) श्री किशन सरोज ने वियोग के हर पक्ष को खूबसूरती से उकेरा. प्रेमगीत लिखना सहज, सरल नहीं. इसीलिए श्री उदयप्रताप सिंह कहते हैं-‘गीत लिखना खासतौर पर प्रेमगीत लिखना तलवार की धार पर चलना है. आनंदातिरेक और मर्यादा के बीच की पतली धार बड़ी पैनी है. किशन सरोज के अन्य गीतों में भी मानवीय संवेदनाओं की व्यापक समझ है और उसकी सफल प्रस्तुति सहज शब्दों में, वह भी गेयता और लयात्मकता के साथ उनके गीतों को श्रेष्ठता प्रदान करते हैं.’ प्रेम की पीर का प्यारा उदाहरण देखें-
धर गए मेहंदी रचे दो हाथ, जल में दीप,
जन्म-जन्मों ताल-सा हिलता रहा मन,
बांचते हम रह गए अंतरकथा, स्वर्णकेशा,
गीत वधुओं की व्यथा,
ले गया चुनकर कमल कोई हठी युवराज,
देर तक शैवाल-सा हिलता रहा मन.’
डॉ. उर्मिलेश एक अन्य स्थान पर कहते हैं-‘चंद्रधर शर्मा गुलेरी की तरह किशन सरोज ने भले ही कम लिखा हो लेकिन जो लिखा है वह उन्हें अमरत्व देने के लिए काफी है. उनके एक-एक गीत पर कई कई चर्चित, प्रतिष्ठित गीतकारों के गीत-संकलन तराजू पर रखे जा सकते हैं. और कोई आश्चर्य नहीं कि पलड़ा किशन सरोज का ही भारी रहेगा.’ (बना ना चित्र हवाओं का, पृ 17)
कर दिए लो आज गंगा में प्रवाहित सब तुम्हारे पत्र,
तुम निश्चिंत रहना.
धुंध में डूबी घाटियों के इंद्रधनुष तुम,
छू गए नत भाल, पर्वत हो गया मन,
बूंद भर जल बन गया पूरा समंदर, पा तुम्हारा दुःख,
तथागत हो गया मन.
अश्रु जन्मा गीत-कमलों से सुवासित,
यह नदी होगी अपवित्र, तुम निश्चिंत रहना.
श्री किशन सरोज का हिन्दी गीत साहित्य को अमूल्य योगदान है और हिन्दी साहित्य इसके लिए सदैव श्री किशन सरोज जी का ऋणी रहेगा.

-डाॅ. अल्पना सुहासिनी
हिसार, हरियाणा

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