हमारा वातावरण अनेक जीवित व निर्जीव वस्तुओं से मिलकर बना है। सभी पेड़–पौधे,पशु–पक्षी,जल,वायु,मिट्टी इत्यादि मिलकर वातावरण का निर्माण करते हैं। हमें इसे स्वच्छ रखने का प्रयास करना चाहिए। हम कचरे का सही प्रकार से प्रबंध व निस्तारण करें। विश्व भर में हर साल कई टन कचरा निकलता है। कचरे को ठिकाने लगाना और उसे पर्यावरण अनुकूल सरल पदार्थों में परिवर्तित करना समस्त विश्व के लिए एक चुनौती बन गया है। फरीदाबाद के पास लगा कूड़े का अम्बार, दिल्ली के पास लगा अम्बार एक एसी समस्या को दिखाता है आखिर इसका करें तो करें क्या? वहां से निकलना मुश्किल, कई किलोमीटर तक फैलती दुर्गन्ध, कीटाणु आदि सभी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. हालाँकि मनुष्य अब काफी सचेत है फिर भी अभी काफी जागरूकता लाने की आवश्यकता है. कचरा दो प्रकार का होता है– जैविक एवं अजैविक। अत: जैविक एवं अजैविक दोनों प्रकार के कचरे का उचित प्रबंध करने के लिए अलग–अलग कूड़ेदान में डालने की व्यवस्था व आदत बनानी होगी। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार जैविक कचरे को हरे रंग के कूड़दान में तथा अजैविक कचरे को नीले रंग के कूड़दान में अलग–अलग एकत्र करना चाहिए। हरी पत्तियाँ पेड़ों की टहनियाँÊ बचा हुआ खाना सड़े हुए फल, सब्जियाँ, कागज, गत्ते, रसोईघर, खाद्य पदार्थों, बाग–बगीचों, कागजों आदि से उत्पन्न कचरा आदि जैविक कचरे की श्रेणी में आते हैं जिसको जमीन में दबा देने से उत्तम खाद बनती है। इस खाद को पेड़–पौधे उपजाने के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। जबकि टूटा काँच प्लास्टिक से बना सामान पॉलिथिन की थैलियाँ टीन के डिब्बे बल्ब व ट्यूब लाईट बैट्री आदि अजैविक कचरे की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार के कचरे का पुनर्चक्रणरीसाइकिल किया जाना चाहिए और पुनर्चक्रण से प्राप्त सामग्री से पुन:वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है। कचरे को खुले स्थान पर जलाने से हृदय रोग, टीबी, दमा, सिरदर्द, बच्चों के मानसिक विकास में बाधा, लीवर व फेफड़ों का कैंसर, किडनी खराब होना, आँखों का खराब होना आदि शारीरिक रोग उत्पन्न होते जा रहे हैं। इस प्रकार इसके निबटारे का एक ही उचित उपाय है– कचरे का पुनर्चक्रण। वैश्विकरण के रास्ते पर अग्रसर भारत में जहाँ एक तरफ कम्प्यूटर और मोबाइल फोन जैसे तकनीकी उपकरणों के उपयोग में वृद्धि हो रही है वहीं दूसरी ओर इलेक्ट्रानिक कचरेई–कचरा में बढ़ोत्तरी हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार ई–कचरे में मौजूद कैडमियन, क्रोमियमलेड और पारा जैसे घातक रसायनिक पदार्थ मनुष्य के प्रजनन तंत्र से लेकर एंडोक्राइन प्रणाली तक प्रभावित हो रहे हैं। इससे कैंसर जैसी बीमारियाँ होने का खतरा बढ़ गया है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए कूड़े को सही रंग के कूड़ेदान मे डाले व जैविक एवं अजैविक पदार्थ अलग करके ही अपने घर व् ऑफिस से निस्तारण करे तो विश्व की चुनौती का भी आसानी समाधान निकला जा सकता है.
डॉ. सविता उपाध्याय
गुरुग्राम