विद्यार्थियों ने पानी बचाने और लोगों को जागरूक करने की शपथ ली

मेवाड़ में ‘जल संचयन व संरक्षण’ पर जनचेतना कार्यशाला आयोजित
-जल संकट को लेकर वक्ताओं ने प्रकट की चिंता
गाजियाबाद। वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस और जिला प्रशासन ने संयुक्त रूप से ‘जल संचयन व संरक्षण’ विषय पर जनचेतना कार्यशाला आयोजित की। मेवाड़ आडिटोरियम में आयोजित इस कार्यशाला में विद्यार्थियों ने जल संकट, जल संचयन व उसके संरक्षण पर प्रकाश डाला। विषय से सम्बंधित प्रश्नोत्तर सत्र में विद्यार्थियों ने खूब रुचि दिखाई। कार्यशाला में बच्चों को जल संचयन व संरक्षण की शपथ भी दिलाई गई। सह जिला विद्यालय निरीक्षक ज्योति दीक्षित ने बताया कि भारत के पास दुनिया में मौजूद पानी का केवल पांच प्रतिशत हिस्सा ही है। इसमें से तीन प्रतिशत भाग ही पीने योग्य है। लगातार पीने के पानी का संकट गहराता जा रहा है। इसके प्रति नई पीढ़ी को जागरूक होना होगा और अपने आसपास के इलाकों के लोगों में भी जल चेतना लानी होगी। मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डाॅ. अलका अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में आज स्वच्छ पानी व्यर्थ बहाया जा रहा है। पक्के फर्श होने के कारण पानी जमीन के अंदर नहीं जा रहा, जो पानी जमीन के पेट में डाला जा रहा है, वह बहुत प्रदूषित और पीने योग्य नहीं है। इस प्रदूषित जल से गंभीर बीमारियां पैदा हो रही हैं। पीने का साफ पानी बचाकर रखना मुश्किल हो गया है। समय की मांग है कि पानी बचाया जाये। विद्यार्थी इसके लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कार्यशाला में अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी रजनीश पांडेय, जिला प्रोबेशन अधिकारी विकास चंद्र, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी राजेश श्रीवास, पंचायती राज विभाग के जिला कंसलटेंट मोहम्मद फारुख, जिला परियोजना निदेशक अनिल कुमार त्रिपाठी आदि ने अपने विचार व्यक्त किये। आभार व्यक्त करते हुए मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डाॅ. अशोक कुमार गदिया ने सभी विद्यार्थियों को जल संचयन व संरक्षण की शपथ दिलाई। उन्होंने कहा कि विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इसके लिये अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों का संवर्द्धन हो पाये। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भण्डारण का आकलन २१४ बिलियन घन मी. (बीसीएम) के रूप में किया गया है जिसमें से १६० बीसीएम की पुनः प्राप्ति हो सकती है। इस समस्या का एक समाधान जल संचयन है। पशुओं के पीने के पानी की उपलब्धता, फसलों की सिंचाई के विकल्प के रूप में जल संचयन प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है। जल संचयन प्रणाली उन स्थानों के लिए उचित है, जहां प्रतिवर्ष न्यूनतम २०० मिमी वर्षा होती हो। कार्यशाला में रिमझिम भटनागर, रितिका, रिमली, कार्तिकी आदि छात्राओं ने जल संचयन पर प्रकाश डाला। कार्यशाला का सफल संचालन पूनम शर्मा ने किया।

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