कई बार हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आती हैं। हालांकि हम इन्हें एलर्जी या फिर फंगल इंफेक्शन की निशानी मान लेते हैं और संपूर्ण जांच कराने के बजाय नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। शरीर पर निकलने वाली ये छोटी-छोटी फुंसियां आगे चलकर हर्पीस का लक्षण बन सकती हैं। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर पर छोटे-छोटे पानी से भरे दाने निकल आते हैं जो बाद में शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाते हैं और दिनोंदिन साइज में बढ़ते रहते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक, यह बीमारी 40 साल के बाद अधिक होती है। हर्पीस वेरिसेला जोस्टर वायरस के कारण होती है। चूंकि यह एक संक्रामक बीमारी है इसलिए इसमें अत्यधिक सावधानी बरतना काफी जरूरी होता है। वैसे तो यह बीमारी 40 की उम्र के बाद किसी भी व्यक्ति को और कभी भी हो सकती है, लेकिन माना जाता है कि इसका वायरस उस व्यक्ति को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है जिसे पहले चिकन पॉक्स हो चुका है। अगर चिकन पॉक्स का वायरस यानी वेरिसेला जोस्टर वायरस पहले से ही शरीर में मौजूद है तो हर्पीस की बीमारी हो सकती है।
हर्पीस के प्रकार और लक्षण- हर्पीस दो तरह का होता है-1 यानी हर्पीस टाइप 1 या ओरल हर्पीस,-2 यानी जिनाइटल हर्पीस या हर्पीस टाइप 2। बात करें इस बीमारी के लक्षणों की, तो कई लोगों में महीनों तक तो इसके लक्षण नजर ही नहीं आते हैं। इसीलिए यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है। वहीं कुछ लोगों में 10 दिनों के अंदर ही हर्पीस अपना रूप दिखाना शुरू कर देता है। हर्पीस की स्थिति में प्राइवेट पार्ट और शरीर के अन्य हिस्सों में पानी भरे दाने निकल आते हैं। जैसे ही ये थोड़े बड़े होते हैं, फूट जाते हैं और जब यही पानी शरीर के अन्य हिस्से में लगता है तो वहां भी संक्रमण फैल जाता है। पूरे शरीर में दर्द और खुजली होती है। मुंह के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में घाव हो जाते हैं। हमेशा बुखार रहता है और लिंफ नोड्स काफी बड़ी हो जाती हैं। शरीर पर जगह-जगह लाल रंग के चकते उभर आते हैं। इन दानों के निकलने के पहले रोगी को दर्द होना शुरू हो जाता है। दर्द होने के कुछ दिनों के बाद उस जगह की त्वचा पर लाल-लाल फुंसियां निकलनी शुरू हो जाती हैं। धीरे-धीरे इन दानों में पानी भर जाता है। इसके अलावा जोड़ों में दर्द, सिरदर्द और थकान भी होने लगती है। फुंसियों में दर्द होना इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। कई रोगियों में यह दर्द काफी तेज होता है।
हर्पीस के कारण- जब हर्पीस का वायरस किसी संक्रमित व्यक्ति की त्वचा की सतह पर मौजूद होता है तो वह उस व्यक्ति के संपर्क में आने वाले अन्य व्यक्ति में प्राइवेट पार्ट, एनस या फिर मुंह के जरिए आसानी से फैल सकता है। हालांकि यह भी समझने की जरूरत है कि संक्रमित व्यक्ति द्वारा वॉशबेसिन, टेबल या किसी चीज को छुए जाने से यह इंफेक्शन नहीं फैलता। असुरक्षित यौन संबंधों और एनल सेक्स की वजह से भी हर्पीस की बीमारी हो जाती है। अगर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ ओरल सेक्स किया जाए जिसके मुंह में घाव हैं तो भी यह बीमारी गिरफ्त में ले सकती है। इसके अलावा सेक्स टॉयज शेयर करने और किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संपर्क से भी हर्पीस हो जाता है।
बारिश के मौसम और सर्दियों में हर्पीस का अधिक खतरा- हर्पीस का वायरस हर समय वातावरण में मौजूद रहता है। सर्दियों और बरसात में इसके केस ज्यादा देखने को मिलते हैं। यह बीमारी शरीर के किसी भी अंग पर देखने को मिल सकती है। कई बार लोग इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। अगर समय रहते हुए ध्यान नहीं दिया जाए तो इसका इंफेक्शन आंख और नाक की तरफ बढ़ने लगता है। आमतौर पर इसके इंफेक्शन की शुरुआत सबसे ज्यादा चेहरे और चेस्ट पर देखने को मिलती है। एक बार किसी मरीज को यह इंफेक्शन लगने के बाद पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता है। बार-बार इसके लक्षण उभरने पर इसे केवल ठीक ही किया जा सकता है।
हर्पीस का इलाज- इसके इलाज के लिए कुछ घरेलू तरीके भी अपनाए जा सकते हैं, जैसे कि हल्के गरम पानी में थोड़ा सा नमक डालकर नहाने से फायदा मिलता है। प्रभावित हिस्से पर पेट्रोलियम जैली लगाने से भी राहत मिलती है। इसके अलावा जब तक हर्पीस के लक्षण पूरी तरह से खत्म न हो जाएं तब तक यौन संबंध या किसी भी प्रकार की यौन क्रिया में शामिल न हों। हालांकि घरेलू इलाज के साथ-साथ डॉक्टरी इलाज जरूर कराएं, नहीं तो स्थिति गंभीर हो सकती है। हर्पीस के इलाज के लिए ऐंटी-वायरस मेडिसिन एसाइक्लोविर दवाई रोगी को दी जाती है ताकि उसके शरीर में उपस्थित वायरस नष्ट हो जाए। इसके अलावा फैमसाइक्लोविर और वैलासाइक्लोविर दवाइयां भी रोगी को दी जा सकती हैं। इन दवाइयों के साथ रोगी को सपोर्टिव ट्रीटमेंट भी दिया जाता है।
हर्पीस से बचाव- हर्पीस का वायरस किसी व्यक्ति को अपनी चपेट में न ले इसके लिए कुछ सावधानियां और बचाव करने की जरूरत है। जैसे कि सुरक्षित यौन संबंध बनाएं। सेक्स के दौरान कॉन्डम का इस्तेमाल करें। संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बचाने से बचें और अगर मुंह में घाव हो तो किस या ओरल सेक्स न करें। इसके अलावा एक से अधिक सेक्शुअल पार्टनर होने से भी हर्पीस का वायरस अटैक कर सकता है। साभार