मतदान से ही दूर होगा देश का संक्रमणकाल-सारस्वत
मेवाड़ में ‘वर्तमान चुनाव की सार्थकता’ विषय पर विचार संगोष्ठी आयोजित
गाजियाबाद। ‘हमारा देश संक्रमणकाल से गुज़र रहा है। ऐसे में शैक्षिक संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। वे तय करें कि कैसे देश को बचाना है। कैसा मतदान किसके पक्ष में कराना है। कैसे भावी पीढ़ी को देश के विकास के लिए तैयार करना है।’ ये विचार वरिष्ठ लेखक गिरीश सारस्वत ने वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट के विवेकानंद सभागार में बतौर मुख्य वक्ता कहे। वह मासिक विचार संगोष्ठी में ‘वर्तमान चुनाव की सार्थकता’ विषय पर लोगों को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शिक्षक नौजवान पीढ़ी को बताये कि कैसे करियर का चुनाव करना चाहिए, कैसे देश के विकास में मतदान करना चाहिए। अगर नौजवान पीढ़ी की सोच सही है तो दिशा सही होगी। दिशा सही होगी तो मतदान सही दिशा में होगा। मतदान सही दिशा में होगा तो हमारे देश का विकास भी श्रेष्ठ स्तर पर ही होगा। उन्होंने कहा कि विद्या से विनय मिलता है। विनय से धन की प्राप्ति होती है। धन से सम्बंध व सम्पर्क फलते-फूलते हैं। इनसे देश व समाज के नवनिर्माण की परिकल्पना साकार होती है। इसलिए मताधिकार का प्रयोग सोच-समझकर करना ही उत्तम होगा। मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डाॅ. अशोक कुमार गदिया ने कहा कि लोकतंत्र में मतदाता लोक है और तंत्र सत्ता में बैठे लोग। ये लोग हमारे द्वारा चुने जाते हैं और हमारे व देश के विकास के लिए काम करते हैं। अगर सेवकों के काम सही हैं तो उन्हें प्रोत्साहित कीजिये, अगर गलत हैं तो टोकिये। जब हम उन्हें टोकना शुरू कर देंगे तभी से देश सही राह पर चलने लगेगा। उन्होंने ‘प्रजातंत्र का महापर्व’ विषय पर अपनी एक विचारवान कविता के माध्यम से आज के राजतंत्र व लोकशाही का सच्चा खाका खींचा और उसे बदलने की मुहिम शुरू करने का सभी से आह्वान किया। इससे पूर्व डाॅ. गदिया व संस्थान की निदेशिका डाॅ. अलका अग्रवाल ने मुख्य वक्ता गिरीश सारस्वत को शाॅल व प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया। मेवाड़ परिवार के सदस्यों व विद्यार्थियों ने मुख्य वक्ता से टिकटों के आवंटन, नोटा, लोकतंत्र का महापर्व दो या चार दिन मनाने जैसे प्रश्नों के जवाब मांगे। गिरीश सारस्वत ने सभी प्रश्नों के उचित जवाब दिये। सफल संचालन अमित पाराशर ने किया। 
News Reporter

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