रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिकों को ‘मिशन शक्ति’ की सफलता और भारत को अंतरिक्ष शक्ति बनाने पर यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, कौशांबी, गाजियाबाद के एमडी एवं वरिष्ठ समाजसेवी डाॅ. पीएन अरोड़ा ने बधाई दी है। डाॅ. अरोड़ा ने कहा कि 27 मार्च को हमने यह दिखा दिया है कि हम कुछ ही सेंटीमीटर की सटीकता के साथ लंबी दूरी के उपग्रहों पर प्रहार कर सकते हैं। महज 180 सेकंड में एंटी सेटेलाइट वेपन का प्रयोग कर सेटेलाइट को मार गिराकर वैज्ञानिकों ने भारत को डिफेन्स सिस्टम में अग्रणी एवं आत्मनिर्भर बना दिया है, विश्व में अमेरिका, रूस एवं चीन के बाद भारत अब चैथी अंतरिक्ष शक्ति बन गया है। डाॅ. अरोड़ा ने कहा कि यह अपनी क्षमताओं के प्रदर्शन का सवाल है। आप जब भी क्षमताओं को प्रदर्शन करते हैं तो आपको उसका लाभ मिलता है। आज इसका फायदा यह है कि हमने दुनिया को बता दिया है कि भारत के पास स्पेस में सैटलाइट को इंटरसेप्ट करने की क्षमता है, इसलिए अंतरिक्ष में कोई जुर्रत न करे। न तो आपके दोस्त और न ही आपके दुश्मन आपसे अंतरिक्ष में टकराएंगे। यह हमारे उस बयान की तरह है कि हम परमाणु ताकत का इस्तेमाल सिर्फ शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए करेंगे। साथ ही डाॅ. अरोड़ा ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि यह परीक्षण हथियारों को कोई होड़ नहीं है। एंटी-सैटलाइट गतिविधि एक प्रतिरोधात्मक (डेटरेंट) क्षमता है और डेटरेंस क्षमताओं से किसी भी तरह की हथियारों की होड़ नहीं शुरू होती। लोगों को पता चल चुका है कि परमाणु हथियार सिर्फ प्रतिरोधात्मक क्षमताओं के लिए ही ठीक हैं। उन्होंने कहा कि 1958 में डीआरडीओ की स्थापना से देश की सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में किये गये प्रयासों और उपलब्धियों के लिये हम 130 करोड़ भारतीयों को व समुन्दर पार रह रहे भारतीयों का गर्व से सीना चैड़ा हो गया है। डीआरडीओ के लिए यह एक तकनीकी सफलता है, एक अति महत्वपूर्ण तकनीकी कामयाबी जो वास्तव में अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी छलांग है। कहना होगा कि उपग्रह-रोधी मिसाइल के सफल परीक्षण के साथ भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान ने बुलंदियों का एक और नया आयाम तय किया है। आज अंतरिक्ष में भारत के अनेक उपग्रह तैनात हैं, जो दूरसंचार, आपदा प्रबंधन, मौसम, कृषि और नेविगेशन आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। खासकर लंबी दूरी की बलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट करने और रणनीतिक मिसाइलों की बेहतर शुद्धता के लिहाज से यह तकनीक काफी अहम है। खास बात यह है कि भारत का यह मिशन पूरी तरह से स्वदेशी था और अंतरिक्ष क्रायक्रम को जारी रखने के लिए इस तरह के अनुसंधान प्रशिक्षणों को जरूरी माना जाता है एवं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की उन्होंने इस कार्यक्रम को हरी झंडी देने के लिए सराहना की। उपग्रह-रोधी मिसाइल सिस्टम का उद्देश्य शत्रु के उपग्रहों को नष्ट करने के अलावा शत्रु देश के अपनी फौज से संचार संपर्क को बाधित करना भी है। इससे शत्रु को अपनी फौजों की तैनाती और मिसाइलों के बारे में सूचनाएं प्राप्त करने से भी रोका जा सकेगा। चीन द्वारा वर्ष 2007 में किए गए एंटी-सेटेलाइट मिसाइल टेस्ट के बाद भारत ने इस क्षेत्र में सक्रियता दिखाई और अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाए। तत्कालीन यूपीए सरकार ने उस समय कहा था कि एंटी-सेटेलाइट मिसाइल की चीन की क्षमता भारत के लिए एक गंभीर खतरा है और हम अपनी अलग टेक्नोलाॅजी विकसित करने के लिए कदम उठा रहे हैं। तत्कालीन रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार वीके सारस्वत ने कहा था कि बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के तहत हमारे पास वह सारी तकनीक है, जिसके सहारे उपग्रहों की रक्षा करने या भविष्य की अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए सिस्टम खड़ा किया जा सकता है।