यशोदा सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल, कौशांबी, गाजियाबाद में नेत्र रोग विभाग ने विश्व काला मोतिया सप्ताह मनाया। इस मौके पर यशोदा सुपर स्पेशलिटी हाॅस्पिटल के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं सर्जन डाॅ नरेंद्र सिंह ने बताया कि भारत में काला मोतिया स्थायी नेत्रहीनता के मुख्य कारणों में से एक अहम कारण है। उन्होंने बताया कि मधुमेह, रक्तचाप, एलर्जी और चमड़ी के रोग दवाइयों में स्टीरायड का प्रयोग काला मोतिया को प्रभावित कर सकता है। इस बीमारी के लक्षणों में असाधारण सिरदर्द या आंखों में दर्द, पढ़ने वाले चश्मों का नंबर बार-बार बदलना, प्रकाश के आस-पास रंगदार गोले दिखना, आंखों में दर्द और लाली के साथ दृष्टि की अचानक हानि और दृष्टि के क्षेत्र का सीमित होना शामिल है। उन्होंने कहा कि ऐसे किसी भी लक्षण के सामने आने पर अपनी आंखों का दबाव (प्रैशर) जरूर चेक करवाएं। डाॅ नरेंद्र ने कहा कि यदि आपको शुगर, ब्लड प्रेशर हो या आप एलर्जी, दमा, चमड़ी रोगों आदि के लिए स्टीरायड का प्रयोग करते हांे तो आप काला मोतिया से प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे लक्षण अथवा चिह्न दिखाई दें तो नजदीक के नेत्र रोग विशेषज्ञ से जांच करवाएं, जिससे समय पर काला मोतिया की पहचान करके इलाज किया जा सके। डाॅ. नरेंद्र ने कहा कि हर साल ब्लड प्रेशर की जांच कम से कम एक बार जरूर करवानी चाहिए। इसी प्रकार आंखों की जांच जरूरी है। जिन परिवार की हिस्ट्री में ग्लूकोमा हो गया, उनको सजग रहना चाहिए। इनको साल में दो बार जांच करानी चाहिए, क्योंकि ग्लूकोमा का लक्षण प्राथमिक स्टेज पर पता नहीं चलता है। बीमारी बढ़ने पर आॅप्टिकल नस खराब होने की आशंका रहती है। लापरवाही से नस पूरी तरह खराब होने पर उसका उपचार करना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में आंखों की रोशनी जा सकती है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर लोग चश्मे वाली दुकान पर आंखों की जांच करवाकर नये चश्मे का नम्बर लेते हैं, लेकिन आंखों के प्रेशर की जांच नहीं करवाते हैं, जिससे ग्लूकोमा के लक्षण का पता नहीं चलता है। नेत्र रोग के विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच करवाने के बाद नहीं चश्मा का नम्बर लेना चाहिए।