नाटक के जरिये किया पूंजीवादी व्यवस्था पर प्रहार
गाजियाबाद। वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस के सहयोग से प्रथम पथ थिएटर ने ‘बगिया बांछा राम की’ नाटक का खूबसूरत मंचन किया। जिसे देखकर आडिटोरियम में खचाखच भरे दर्शक लोटपोट हो गये तो बहुत कुछ सोचने को मजबूर भी हुए। यह नाटक वर्तमान सामंती-पूंजीवादी समाज में जनसाधारण की आर्थिक लूट व उसकी त्रासदी का जीवंत दस्तावेज है। नाटक के माध्यम से समाज में रह रहे गरीबों का पूंजीवादी समाज कैसे शोषण करता है, प्रदर्शित किया गया। लेखक ने इसमें बगिया समूचे हिंदुस्तान और बांछा उसे पाल-पोसकर गुलजार करने वाले प्रत्येक मेहनतकश को दर्शाया गया। बांछा राम एक किसान है। जवानी के पसीने से सींचकर उसने एक बगिया लगाई है। लेकिन आज अपने बुढ़ापे के बावजूद वह बड़े प्यार और लगाव से उसकी हिफाजत करता है। गांव का एक जमींदार छकौड़ी बगिया को हथियाने की लालसा लिए मरकर भूत बन गया। छकौड़ी का बेटा भी उसे हथियाना चाहता है। बांछा दिन-प्रतिदिन अशक्त होता गया। रोगों ने उसे घेर लिया। नौकोड़ी इस अवसर का फायदा उठाने के लिए बांछा को हर माह कुछ रुपये देने की बात करता है। उसके बदले बांछा से उसके मरने के बाद बगिया नौकोड़ी की जायदाद बन जाए, के बारे मे लिखित रूप में मांगता है। बीमारी व आर्थिक अभाव से त्रस्त बांछा इस पर राजी हो ही जाता है। नाटक में यही प्रदर्शित किया गया कि गरीबी की मार झेल रहे गरीब का पूंजीपति किस तरह शोषण कर फायदा उठाते रहे हैं। अंकुर सिंह ने बांछाराम, गुरमीत चावला ने छकौड़ी, अभिनय ने गोपी व कुहू सिन्हा ने पदमा के किरदार के रूप में बेहतर भूमिका निभाई। सुमित दुबे ने नौकोड़ी, विष्णु ग्रोवर ने मुख्तार, गुरप्रीत ने मालकिन, पदम ने छोटन, आशीष और शिवम ने ज्योतिषि, इमप्रीत ने डॉक्टर और दिव्यांशु ने चोर की भूमिका को बखूबी निभाया। नाटक में संकल्प श्रीवास्तव ने संगीत व गौरव ने प्रकाश व्यवस्था में अपनी भूमिका निभाई। कुशल निर्देशन सुपरिचित रंगकर्मी सुधीर राणा ने किया। अंत में मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डाॅ. अशोक कुमार गदिया व निदेशिका डाॅ. अलका अग्रवाल ने नाटक के कलाकारों को सम्मानित किया और नाटक की भूरि-भूरि प्रशंसा की।