सुपरिचित कवयित्री मोनिका शुक्ला की दो मनोरम कविताएँ

1-भूल जाओगे 

भूल जाओगे 
क्या तुम मुझे
मेरी बातों को
मेरे प्रेम को 
स्नेह को……
सूखे पत्तों की तरह
उड़ा तो न दोगे
अपने आँगन से…..
सब कुछ तो रहेगा
तुम्हारे आस पास
घर द्वार
फूल पत्ते
गौरैया 
मेरे ढेर सारे बोल
पर … बहुतेरे अबोले
तो क्या …
तस्वीर बना कर
टांक लोगे
मेरा प्रेम 
या स्वप्न जैसे
बिसरा दोगे…..
सच बताओ !
अगर 
मैं जा रही हूं ऐसे 
जैसे कभी 
वापस ही न आऊँ 
तो क्या 
भूल पाओगे 
तुम मुझे !

2-तीस पार की कविता

एक स्त्री की 
आंखों में 
छुपे हैं
हज़ारों दिन
और छुपी हैं
…..…उतनी ही रातें
ख़ामोशी है 
पर अर्थ है उसका..
घना मौन है 
पर उच्चारित है …
अन्धकार में
दौड़ती रहती हैं
उन्माद भरी 
परछाईयां
कुछ परिचित
कुछ अपरिचित
स्मृतियों को 
साथ लेकर…
और फ़िर
धीरे धीरे 
मुखरित होती है
तीस पार की
एक सुहानी कविता

News Reporter

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