अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की काव्य गोष्ठी में 3 दर्जन कवियों ने बांधा समां
‘देश की जवानी की रवानी कौन लिखेगा’
गाजियाबाद। शास्त्री नगर के जीवन विहार में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् गाजियाबाद की मासिक काव्य गोष्ठी में लगभग तीन दर्जन कवि-कवयित्रियों ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में काव्य पाठ कर खूब समां बांधा। तीन घंटे तक चली इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता प्रख्यात कवि अनिल असीम ने की। परिषद् के संरक्षक बीएल बत्रा ‘अमित्र’ व अध्यक्ष मीरा शलभ की विशेष उपस्थिति रही।  दीप प्रज्ज्वलन के बाद कवयित्री रोमी माथुर ने मां शारदे की वंदना से गोष्ठी की विधिवत शुरुआत की। मीरा शलभ के गीतों ने गोष्ठी को एक नई दिशा दी। उनके गीत के बोल थे- डूबता नभ में कोई तारा दिखे तो, याद कर लेना मुझे ओ प्यार मेरे।’ कवि राजीव सिंघल ने ताजातरीन गजल पेश की। ‘ कुछ भी बदला नहीं जमाने में, घर ही बदला है कैदखाने में, सुनाकर सबकी खूब वाहवाही लूटी। कवि भूपेन्द्र त्यागी मित्र ने कहा कि ईलू-ईलू लिखते रहेंगे गर सारे कवि, देश की जवानी की रवानी कौन लिखेगा। मुन्नी और शीला की जवानी लिखते रहे तो बेटियों को चंडी व भवानी कौन लिखेगा। इन पंक्तियों में उन्होंने कवि सम्मेलनों के मंचों की वर्तमान हालत पर चिंता व्यक्त की। कवयित्री वंदना कुंअर की गजल की इन लाइनों ने विशेष ध्यान खींचा-‘ग़म भुलाकर दिल से हंसने और मुस्काने के दिन, आ गये हैं प्यार के गीतों को फिर गाने के दिन।’ सुपरिचित शायर अनिमेष शर्मा ने अपनी गजल से सभी को मंत्रमुग्ध किया। उनका कहना था-‘ गमों में जो नहीं डूबे, खुशी में डूब जाते हैं, मुहब्बत के समंदर भी नदी में डूब जाते हैं, अनाड़ी तैरते रहते हैं हर गिरदाब में हंसकर, वहीं तैराक होकर वापसी में डूब जाते हैं।’ डाॅ. राजीव पांडेय ने हिन्दी के विस्तार पर कविता सुनाकर सबका ज्ञानवर्द्धन किया। कवयित्री कल्पना कौशिक ने नारी को शक्ति का प्रतीक बताते हुए कहा-‘कमजोर नहीं हूं मैं कमजोर नहीं हूं मैं।’ पिलखुवा से पधारी युवा कवयित्री क्षमा पंडित ने कहा कि जीवन जब अन्त की छोर पर आ जाए फिर सोचना किस काम का, दुनिया की नफरत दुनिया को खा जाए फिर सोचना किस काम का। सुपरिचित कवि चेतन आनंद ने अपनी गजलों और गीतों से सबका मन मोहा। उन्हांेंने कहा कि ‘गरीबों के यहां जीने की लाचारी नहीं मिलती, मुसीबत लाख हों पर जिन्दगी भारी नहीं मिलती। हमें तो साफ कहने साफ सुनने की ही आदत है, हमारी शायरी में बात दरबारी नहीं मिलती।’ गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे कवि अनिल असीम ने ‘काटकर औरों की टांगें खुद लगा लेते हैं लोग, इस तरह भी इस शहर में कद बढ़ा लेते हैं लोग’ पंक्तियों से समाज के वर्तमान चलन पर तंज कसा। जिसे उपस्थित जनसमूह ने खूब दाद दी। काव्य गोष्ठी में इंदु शर्मा, चंद्रभानु मिश्र, कमलेश संजीदा, मधु श्रीवास्तव, तूलिका सेठ, गिरीश सारस्वत, संजीव शर्मा, माधुरी श्रीवास्तव, सीमा सिंह, दुर्गेश बजरंगी, डाॅ. राखी अग्रवाल, प्रदीप पुष्पेन्द्र, मयंक राजेश, डाॅ. वीणा मित्तल, सुधीर माथुर, राकेश सेठ आदि की कविताओं को भी खूब सराहना मिली। सफल संचालन मयंक राजेश ने किया। अंत में काव्य गोष्ठी की संयोजिका मधु श्रीवास्तव ने सभी का आभार व्यक्त किया।  
News Reporter

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

StatCounter - Free Web Tracker and Counter