#ये_गन्दगी_की_बन्दगी_का_कैसा_ दौर_है।
#यहाँ_लिखता_कोई_और_है_पढ़ता_और_ है।।
(शुचिता पसन्द करने वाले सभी मित्र इस पोस्ट को खुलकर व्हाट्सएप्प और फेस बुक पर शेयर करें,जिस से ऐसे अकवियों का भंडाफोड़ किया जा सके).
समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध।
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनके भी अपराध॥
(राष्ट्र कवि स्व.श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी)
प्रिय मित्रो,बहुत दिनों से ये सोच रहा था कि अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के मंचों पर जो खेल चल रहा है उसे आप तक पहुँचाने का प्रयास करूँ।
यहाँ एक बात और कहता हूँ सही बात उठाने से कुछ चोर अकवि आत्माएं परेशान हैं। हमें कुंठित बताते हैं तो कुंठित वो हैं जो चोरी की कविताएं पढ़ते हैं, अकवि हैं,केवल गायक हैं,नेताओं की चरण पादुकाएं उठाते है,गेट पास (तथाकथित कवयित्रियों) के माध्यम से कवि सम्मेलन पाते हैं।माँ सरस्वती के मंच से झूठ बोलते हैं।
हमारे बहुत से वरिष्ठ कवियों की कविताएं,मंचों पर मंच संचालन के अलावा भी कवि अपने काव्य पाठ के दौरान पढ़ रहे हैं,नई पीढ़ी के बहुत से कवि मित्रों को ये पता ही नहीं है कि वो जिस कवि की कविता पर वाह दादा – वाह दादा कर रहे हैं वो उस दादा की है ही नहीं,श्रोता भी ये सोचकर ताली बजा देते हैं कि मंच पर बैठे कवि जब ताली बजा रहे हैं तो चलो हम भी बजा ही देते हैं,फिर उस कवि को पूरा भरोसा हो जाता है कि ताली तो दूसरे कवि की कविता पर ही बजती है तो वह देश के 10 -15 कवियों की कविता सुनाता है कि चार पंक्तियाँ फलाने बड़े कवि की याद आती हैं फिर चार फलाने,फिर चार… की याद आती हैं।
जब आप किसी दूसरे कवि की कविता नाम लेकर या बिना नाम लेकर या फिर उधार लेकर पढ़ते हैं तो उस रचना के मूल कवि से कविता/कवि और श्रोताओं के मध्य होने वाले प्रथम मिलन की अनुभूति के अहसास के आनन्द के अधिकार को छीन लेते हैं और खुद को अकवि होने की उपाधि स्वत : प्राप्त कर लेते हैं साथ ही आप कवि मित्रों में ये सन्देश देते हैं कि आप के पास अपनी कविता से जमने लायक कविता है ही नहीं, मंच पर बैठे कवि इसलिए नहीं बोलते हैं क्यों कि कुछ ऐसे चाटुकारों ने नेताओं की चरण पादुकाएं अपने सिर पर उठाकर संयोजन हथिया लिये हैं,वो उन्हें इन मंचों से वंचित कर सकते है दूसरे की कविता सुनाने वाले अब केवल नाम के कवि ही रह गये हैं इसी कारण कविता की दो पंक्ति सुनाने के लिये 20 से 30 पंक्तियों का भाषण देते हैं और चोरी की कविताएं सुनाते हैं,इन भाषण बाजों ने कुछ ओजपूर्ण शब्द रट लिये हैं जिससे अपनी नकली विद्वता दिखा सकें।
मेरा पूरा विश्वास है कि दूसरे कवि की कविता,वो ही अपने काव्य-पाठ के दौरान पढ़ता है जो खुद कवि नहीं है यानी वो अकवि है।
स्वर्गीय कवियों/शायरों से लेकर वरिष्ठ कवियों और कुछ श्रेठ युवा कवियों की कविताएं जो कभी आराम नहीं करती हैं बल्कि एक रात में कई जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं भले ही उनका मूल लेखक घर पर आराम से सो रहा हो,तब भी वो पंक्तियाँ जागरण कर रही होती हैं उनमें से कुछ पंक्तियों का यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ –
श्री बालकवि बैरागी जी,मनासा
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आज मैंने सूर्य से बस जरा सा यूँ कहा।
आपके साम्राज्य में इतना अंधेरा क्यूँ रहा।।
तम तमाकर वो दहाड़ा मैं अकेला क्या करूँ।
तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ।
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो।
संग्राम ये घनघोर है कुछ मैं लडूं कुछ तुम लड़ो।।
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श्री दिनेश प्रभात जी,
भोपाल
आये हैं तो काटेंगे यह रात तुम्हारी बस्ती में।
चाहोगे तो कर लेंगे दो बात तुम्हारी बस्ती में।।
मन के सुने आँगन में यदि आज घटा बन छाओगे,
कर देंगे हम गीतों की बरसात तुम्हारी बस्ती में।।
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श्री रमेश सोज जी, उज्जैन
नया पाने की चाहत में पुराना छूट जाता है।
तुझे अपनाऊँ तो मुझसे जमाना रूठ जाता है।।
मोहब्बत लिखने पढ़ने में बहुत आसान है लेकिन,
मोहब्बत को निभाने में पसीना छूट जाता है।।
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डाँ.श्री कुँवर बैचेन जी,गाजियाबद
पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है।
पर तू जरा भी साथ दे तो और बात है॥
चलने को एक पाँव से भी चल रहे हैं लोग
पर दूसरा भी साथ दे तो और बात है ॥
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दोनों ही पक्ष आये हैं तैयारियों के साथ,
हम गर्दनों के साथ है वो आरियों के साथ ॥
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गमों की आँच पर आँसू उबालकर देखो।
बनेंगे रंग किसी पर भी डालकर देखो॥
तुम्हारे दिल की चुभन भी जरूर कम होगी,
किसी के पैर से काँटा निकालकर देखो ॥
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डाँ.शिवओम अम्बर जी,फर्रुखाबाद
या बदचलन हवाओं का रुख मोड़ देंगे हम।
या खुद को वाणी पुत्र कहना छोड़ देंगे हम॥
जिस दिन भी हिचकिचायेंगे लिखने में हकीकत।
कागज को फाड़ देंगे,कलम को तोड़ देंगे हम ॥
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श्री मदन मोहन समर जी,भोपाल
उनके गर्म खून के छींटे साहस की तहरीर बने।
वो जीते जी लोकतंत्र के मन्दिर की प्राचीर बने॥
आठ जवानों की कुर्बानी ने भारत का मान रखा।
अपनी लाशें बिछा नींव में ऊपर हिन्दुस्तान रखा॥
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शायर मोईन शादाब जी,दिल्ली
साँप जब तक आस्तीनों के न मारे जायेंगे।
हौसला कितना भी हो हम जंग हारे जायेंगे॥
दुश्मनों से तो निबट लेंगे हम अपने बाद में,
पहले घर के भेदियों के सर उतारे जायेंगे॥
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श्री तुफैल चतुर्वेदी जी,नोएडा
बुलंदी का नशा सिम्तों का जादू तोड़ देती है।
हवा उड़ते हुए पंक्षी के बाजू तोड़ देती है ॥
सियासी भेडियो थोड़ी बहुत गैरत जुरुरी है,
तवायफ तक किसी मौके पर घुँघरू तोड़ देती है ।।
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स्व.लोक कवि श्री मोहन मण्डेला जी,शाहपुरा
आँगणिये रजथान रे,दो वाता कलदार । अलगोजा खेतां बजे,रणखेतां तलवार ।।
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डाँ.श्री हरिओम पवार जी,मेरठ
हम कर्जा खाये बैठे है,गुरू गोविंद की कुर्बानी का।
हम क्या अहसान चुकायेंगे इनकी आँखों के पानी का ॥
हम इनकी गणना करते हैं आजादी के आधारों में।
जिनके आगे जिनके दो दो बेटे चिन गये दीवारों में ॥
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श्री राजबहादुर जी बिकल
शाहजहांपुर
प्रवाहित शांत नद में द्वेष का बिष घोल देते हैं।
मिले कंचन तुला तो ईमान तक को तौल देते है।।
विदेशी आँधियां जब द्वार पर दस्तक लगाती है।
यहीं के लोग उठकर सांकलों को खोल देते हैं।।
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श्री बलवीर सिंह जी “करुण”
अलवर
कुछ देशभक्ति के मंत्र वहाँ हमने जाकर बांचे तो हैं।
हम देशद्रोह के विषधर के फन पर चढ़कर नाचे तो हैं।।
आतंकवाद के अंधड़ को आगे बढ़ ललकारा तो है।
हल्का ही सही तमाचा पर उसके मुँह पर मारा तो है।।
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यूँ शीश झुकाकर मत बैठो आओ उठकर हुंकार भरो।
ये सारी राह तुम्हारी है आगे बढ़कर अधिकार करो।।शोषण का रावण ज़िन्दा है रामायण अभी अधूरी है।
हम हर खतरे से वाकिफ हैं सच कहना बहुत जरूरी है।।
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शायर कय्यूम नाशाद,कानपुर
तल्ख है कितना सुख से जीना पूछ न ये फनकारों से।
हम सब लोहा काट रहे हैं कागज की तलवारों से।।
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श्री हरवक्त सिंह पवार,लखीमपुर खीरी।
धरा बेच देंगे गगन बेच देंगे।
कली बेच देंगे चमन बेच देंगे।।
कलम के सिपाही अगर सो गये तो,
वतन के मसीहा वतन बेच देंगे।।
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डॉ. श्री सारस्वत मोहन मनीषी जी,दिल्ली
हमको पता न था सूरज बचकानी भाषा बोलेगा।
सिंहासन षण्डों जैसी बिरयानी भाषा बोलेगा।।
मौसम अपना होकर भी बेगानी भाषा बोलेगा।
जाने किस दिन लाल किला मर्दानी भाषा बोलेगा।।
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बछड़ा भूखा है बिल्ला खा रहा मलाई है।
कविता मन्दिर से चल कर कोठे तक आई है।
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बुलबुले सरिता नहीं होते।
चुलबुले सविता नहीं होते।
मंच की रक्षा करो कवियो!
चुटकुले कविता नहीं होते।
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डाँ.श्री धुर्वेंद्र भदौरिया जी, एटा
दादी का दुलार भूला,बाबू का प्यार भूला,
मोतियों की माला मेरी आज तक न लाया है।
होलिका के रंग ज्योतिपर्व की उमंग भूला,
राखियों का संग बार बार बिसराया है॥
सुन भाभी,भैया भुल्लकड है जन्म से ही,
अपने स्वभाव को ही आज फिर दोहराया है।
जाते समय मैया का आशीष लेना भूल गया,
आते समय रणथल में शीश छोड़ आया है ।।
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श्री देवी प्रसाद राही जी, कानपुर
हम तो क्या फकत वक्त के गुलदस्ते हैं,
जैसे इनको सजायें फिर उसे तोड़ भी दे।
जिस तरह प्यार के आवेश में कोई लड़की,
किसी बच्चे को जन्म दे और फिर उसे छोड़ भी दे।।
श्री जमुना प्रसाद उपाध्याय जी,फैजाबाद
नदी के घाट पर भी गर सियासी लोग बस जाएं,
तो प्यासे लोग भी दो बूँद पानी को तरस जाएं॥
गनीमत है मौसम पर हुकूमत चल नहीं सकती,
नहीं तो सारे बादल इनके खेतों में बरस जाएं॥
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स्व.कवि,डाँ.श्री उर्मिलेश जी,बदायूँ
बेवजह दिल पे कोई बोझ न भारी रखिये,
ज़िंदगी जंग है इस जंग को जारी रखिये।
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केसरिया हिन्दू हुआ,
हरा हुआ इस्लाम।
रंगों पर भी लिख दिया,
जाति धर्म का नाम ॥
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कल न बदला वो आज बदलेगा।
वक्त अपना मिजाज बदलेगा॥
आदमी की यहाँ तलाश करो,
आदमी ही समाज बदलेगा ॥
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श्री अर्जुन सिंह चाँद जी,झाँसी
लश्कर भी तुम्हारा है,सरदार तुम्हारा है।
तुम झूठ को सच लिख दो,अखबार तुम्हारा है॥
इस दौर के फरियादी जायें तो कहाँ जायें,
कानून तुम्हारा है दरबार तुम्हारा है।
सूरज की तपन तुमसे बर्दाश्त नहीं होगी,
इक मोम के पुतले सा किरदार तुम्हारा है ॥
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श्री माणिक वर्मा जी,हरदा
कायरता जिस चेहरे का श्रॄंगार करती है।
उस पर मक्खी तक बैठने से इनकार करती है।।
समय-समय की बात है समय-समय का योग।
लाखों में बिकने लगे दो कौड़ी के लोग ॥
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श्री विक्रान्त तोमर जी,मुरैना
खोजी कुत्ते को चोर ने रोटी डाली।
कुत्ते ने मुंह फिर लिया,
सिपाई ने उठा ली।
यहीं तक रहता तो गनीमत थी,
एक नेता आया उसने आधी बटा ली।।
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श्री नरेश श्रीवास्तव जी,मुरैना
सांझ के अखबार के होकर नहीं हैं।
नियंत्रक हैं व्यवस्था के, नौकर नहीं हैं।।
कोई ढपली की तरह बजाये तो बज नहीं सकते।
सूत्रधार हैं रंगमंच के जोकर नहीं हैं।।
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श्री अशोक शाहिल जी,मुज्जफरपुर
बुलंदियों पर पहुँचना कोई कमाल नहीं।
बुलंदियों पर ठहरना कमाल होता है ॥
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श्री चाँद शेरी जी,कोटा
मैं गीता बाइबल कुरआन रखता हूँ।
सभी धर्मों का मैं सम्मान रखता हूँ ॥
ये मेरे पुरखों की जागीर है लोगों,
मैं अपने दिल में हिन्दुस्तान रखता हूँ ॥
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श्री कुमार मनोज जी,इटावा
सो गया नसीब,माँग का गया सिंदूर और
नन्हे नौनिहालों की लंगोटियाँ चली गयीं ।
भाई की पढाई गई,बाप की दवाई गई
दोनों छोटी बेटियों की चोटियाँ चली गयीं ॥
कैसा विस्फोट था कि एक पल भी न लगा
पूरे जिस्म की ही कहीं बोटियाँ चली गयीं।
आप के लिए तो एक आदमी मरा हुजूर
किन्तु मेरे घर की तो रोटियाँ चली गयीं ॥
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श्री आशुतोष राणा, कवि,सुप्रसिद्धअभिनेता,गाडरवाड़ा (नरसिंहपुर)
क्या कहते हो मेरे भारत से चीनी टकराएंगे ?
चीनी को तो हम पानी में घोल घोल पी जाएंगे।।
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श्रीयुत श्रीप्रकाश पटेरिया
छतरपुर
सदा सबके लिये सुन्दर सुखद मौसम नहीं होता।
किसी बदलाव से अपना पराक्रम कम नहीं होता।।
सफलताओं के दरवाजे हैं हम खुद खोलने वाले।
कलम वे तोड़ते जिनकी कलम में दम नहीं होता।।
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डाँ.वागीश दिनकर जी,गाजियाबाद
युग की सुप्त शिराओं में कविता शोणित भरती है।
वह समाज मर जाता है जिसकी कविता डरती है ॥
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देश के सबसे छोटे रचनाकार और आपके भाई नरेश निर्भीक,कोटा की ये पंक्तियाँ भी नहीं छोड़ रहे है भाई लोग,
अब दुनियाँ ताकत देखेगी छप्पन इंची सीने की।
और हमारी भारत माँ के शीश
उठाकर जीने की ॥
सैनिक वो होता है जो हम सब की खातिर जीता है।
हम पीते हैं बिसलेरी वो हिम पिघलाकर पीता है॥
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चाहे जान भले ही जाये लेकिन कभी नहीं डरना।
ये वतन हमारा अपना है इसकी खातिर जीना मरना।।
वतन की खातिर जो पीढ़ी कुर्बानी से डर जाती है।
उसकी आज़ादी भी उसके जीते जी मर जाती है ॥
भ्रष्टाचार की इस आँधी को अब इक ऐसा झटका दो।
देश का धन जिसने लूटा हो उसको फाँसी लटका दो॥
(कोटा दशहरा 2008) से
नरेश निर्भीक
पूर्व सैनिक,भारतीय सेना
कोटा (राजस्थान)
मोबाइल-
08290884243 (whatsapp)
08005738676 (Jio)
09414487070