आज के समय की बदलती आबोहवा पर करारा तमाचा है ’बांहों में आकाश’

समीक्षा

उपन्यास-बांहों में आकाश
लेखक- डाॅ. राजीव पांडेय
प्रकाशक-हर्फ मीडिया
मूल्य-दो सौ रुपए मात्र
जीवन बदलाव का नाम है, समयानुसार बड़ी स्वाभाविकता से जीवन में बदलाव आते हैं।ऋतुओं में बदलाव ,वातावरण में बदलाव ,तन और मन के मौसम में बदलाव —-यानी कि बदलाव वो महत्वपूर्ण अंग है जीवन का जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं हो सकती। लेकिन आज जिस प्रकार के बदलाव हो रहे हैं, उन्हें देखकर, महसूस करके हम असहज हो उठते हैं। ’बांहों में आकाश’ कहानी है इसी बदलाव के परिणाम की जिसे लेखक ने ऊपर-नीचे करते हुए भावनात्मक त्रिकोण बनाया है । इस त्रिकोण में तीन प्रमुख पात्रों को रेखांकित किया गया है। मोहित, शेखर और उनसे जुड़ी दिव्या जो उपन्यास की धुरी है। यूं तो उपन्यास भारत की पृष्ठभूमि पर आधारित है किंतु अमरीका की यात्रा भी कर आया है। जहां के तीन अमरीकी पात्र क्रमशः कैथरीन, फ्रीडा व डॉक्टर रिचर्डसन की भी नाटकीय एंट्री उपन्यास में है। उपन्यास बेशक अपने भीतर ’प्रेम कथा को समेटे हुए है’ किंतु मुझे लगता है कि कथा ’मूल रूप से एड्स की कारुणिक स्थिति पर तथा आज की सो काॅल्ड आधुनिकता पर एक व्यंग्य है, विवाह से पूर्व के रिश्ते पर एक प्रश्न चिह्न है।’ बहुत सारे उहापोहों के बीच से गुजरती हुई इस उपन्यास की कथा मन की भीतरी सतह को सहलाती हुई अंत में आज की जमीन पर आ खड़ी होती है व अनेक प्रश्नों के घेरे में पाठक को ला खड़ा करती है। यदि यह कहा जाये कि उपन्यास का अंत उसे नारी-विमर्श की सतह पर नाटकीय रूप में ला खड़ा करता है तो अनुचित न होगा। मुझे लगता है कि उपन्यास थोड़ी शीघ्रता में लिखा गया है ।यदि यह थोड़े धैर्य से लिखा जाता तो और अधिक प्रभावी बन पड़ता ।उपन्यास साहित्य की कृति से अधिक फिल्मी कृति महसूस होता है। उपन्यास की भाषा सरल,सहज है और शैली उपन्यासकार की व्यक्तिगत! कथा के विषय के चयन के लिए मैं डाॅ. पाण्डेय को साधुवाद देती हूं। आशा करती हूं उपन्यास ‘बांहों में आकाश’ लेखक को औपन्यासिक मंच पर एक नयी पहचान दिलाएगा।

डाॅ. प्रणव भारती
साहित्यकार, अहमदाबाद

 

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