सुपरिचित कवयित्री मालविका हरिओम की कविता

इन किताबों में कुछ तो होता है 
ओस बनकर जो मन भिगोता है 
इल्म के एक-एक मोती को 
रूह की तार में पिरोता है 
कोई तो है जो ग़म सँजोता है 
इन किताबों में कुछ तो होता है 
ज़िन्दगी के हसीन पन्नों पर 
जब वो तारीख़ मुस्कुराती है 
तेरी यादों की तितलियों से सजी 
कोई किताब चली आती है 
दिल ये फिर जागता ना सोता है 
उसको सीने पे रख के रोता है 
इन किताबों में कुछ तो होता है 
इनके हर हर्फ़ में मुहब्बत है
चुप्पियों की सदाओ अज़मत है 
ख़्वाब हैं, आईनें हैं, मौसम हैं 
रंग हैं, बारिशें हैं, ख़ुद हम हैं
जीत है ज़िन्दगी की, हारें हैं 
ज़र्द पत्ते हैं और बहारें हैं 
सख़्त कोहेगराँ हैं पानी है 
इनमें ज़ुल्मों की भी कहानी है 
नफ़रतों का सियाह जंगल है 
सरफिरी ताक़तों का दंगल है 
खूँ है मज़दूर और किसानों का 
इनमें है सच कई फ़सानों का 
इनके लफ़्ज़ों में परिंदे चहकें 
इनकी ख़ुशबू से सुख़नवर महकें 
पास हों ये तो सुकूँ होता है 
दोस्त होने का गुमां होता है 
इन किताबों में कुछ तो होता है 
इश्क़ होता है ख़ुदा होता है 
इन किताबों में कुछ तो होता है 

News Reporter

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