युवा कवयित्री दीक्षा सविता की दो कविताएँ

पहली कविता-
आज बढ़ गया इस धरती पर देखो अत्याचार।
न ही रह गये संस्कार और न ही सद्व्यवहार।

सृष्टि की जननी को देखो खूब हैं लूट रहे।
करते न सम्मान इनका, इन पर हैं टूट रहे।
मचल गयी शक्ति मच जायेगी हाहाकार।

मर किसान है रहा मरता आम आदमी।
रक्षक बन बैठे भक्षक, करते सब बेरहमी।
बिगड़ गया जब दाता हो जाओगे बेकार।

इज्जत न ही रही यहाँ पर न ही कोई यार।
यहाँ किसी में देखो न ही रह गया है प्यार।
अहम् ईष्र्या में बैठे सब एकदम हो तैयार।

सत्ता की कुर्सी ने देखो सबको चूर किया।
आम आदमी को भी देखो इसने नूर किया।
पंजा, साइकिल, कमल में हो रही मारामार।

न देखो तुम बुरा यहाँ न ही बुरा तुम बोलो।
गर सुनाये कोई बुरा दिल उसका तुम खोलो।
हो जायेगा सबसे प्यारा भारत तब संसार।

दूसरी कविता-

हम गायेंगे-गायेंगे, वंदेमातरम-वंदेमातरम।
हम छायेंगे-छायेंगे….सारे जहान में हम।

हम भेद नहीं कोई रखते हैं।
हम किसी को भी न परखते हैं।
सब साथी हमारे और सबके साथी हैं हम…..साथी हैं हम।।

हम खून की होली न खेलेंगे।
हम मुख से ऐसा बोलेंगे।
तुम मिल जाओगे पलभर में होकर नरम….होकर नरम।।

हम सबका भारत प्यारा है।
हम सबका भारत न्यारा है।
सोने की चिड़िया वापस फिर लायेंगे हम….लायेंगे हम।।

वीरों की प्यारी धरती है।
तुम सबसे ये न डरती है।
अब न रख पायेगा कोई भी दूजा कदम….दूजा कदम।।

तेरी वो बगावत याद हमें।
हर एक शहादत याद हमें।
हर दिन को मनायेंगे जश्न-ए- आजादी हम….आजादी हम।।

हम भारत माँ के बच्चे हैं।
हम सबसे अच्छे-सच्चे हैं।
कर देंगे न्यौछावर अपने सातों जनम….सातों जनम।।

पता-पोस्ट-पिहानी, जिला-हरदोई, उत्तर प्रदेश, पिन कोड-241406

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