सुपरिचित कवयित्री मधु श्रीवास्तव की दो कविताएँ

1. नींद को आना न था
नींद को आना न था काली रात ढल रही।
जब जुबां खामोश थी अश्कों ने हाले दिल कही।
सपनों के फूल झर गये, झरे पात पात हैं।
अवाक् है हर कल्पना गीत मौन हो गये।
उल्लास के वे पल सभी हो गये अतीत हैं।
छूने फलक आतुर थी जो वो भावना भयभीत थी।
चमन भी तो सो गया सो गई है ममहर कली।
शीतल पवन बनकर उड़ूँ चाहूं जगा दूँ हर गली ।

2. जीवन धागे उलझे हैं
जीवन धागे उलझे हैं सुलझाते जाना है
अभिनय पूरा करके इस मंच से जाना है।
जो छूट गया पीछे आँसू न उन्हंे सींचे
पल-पल में दृश्य नया हर मोहपाश झूठे
अपनों को यहीं ढूंढो, नहीं कोई बेगाना है

रिश्ता जोड़ो सबसे मानवता के धागों से
हर फूल छटा बिखराये, हर कली भी घूंघट खोले,
उसकी पावन खुशबू रब तक पहुँचाना है
किस्मत का अंधेरा छँट जाये मेहनत की रौशनी से
नवल सृजन तब गाये मन वीणा के तारों स।
नश्वर तन मिला हमें जब सौरभ दे जाना है।

 

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