सुपरिचित कवयित्री संगीता तनेजा की दो व्यंग्य कविताएँ

2019 का महाचुनाव आने वाला है,
जंगल के रिपोर्टर गिद्धों ने पेड़ों पर डेरा डाला है,
सीटों पर भेड़ियों, लोमड़ियों, शेरों का बोलबाला है,
2019 का महाचुनाव आने वाला है।
सहमे हुए मृग सोच रहे, इनके खिलाफ जो जाएँगे
कालेश्वर का ग्रास बन उदर में इनके जाएँगे।
उधर, गधों को न कोई चिंता है,
बनता है कोई तो बने राजा अपना क्या बिगड़ता बनता है।
कुत्ते-बिल्ली 6 बजे के शो में आ रहे,
बहस में जोरांे से भौंक-भौंक टी वी पर आ इतरा रहे।
भला जंगल की किसको चिंता है,
प्राणी तो ईश्वर की देन है,
कमजोर शक्तिशाली का ग्रास बने
ये तो साइन्स की फूड चेन है।
मगर कुछ दिनों से
जंगल का मौसम बदला है
हो रही है होड़ा-होड़ी, देखें कौन अधिक भला है।
शुद्ध शाकाहारी बन गेरुए कपड़ों मंे,
शेर ब्राह्मण बन घूम रहा है
गधा भी चश्मा लगाए, ट्वीटर पर बुद्धिजीवी से ट्वीट कर रहा है।
हाथी न कुछ आस लगा रहे,
चुपचाप पोलिंग बूथों पर ,
ईवीएम का बटन दबा रहे,
ऊपर वाला ही जाने,
जंगल का क्या होने वाला है?
हमको तो बस खबर इतनी कि
महाचुनाव होने वाला है, महाचुनाव होने वाला है।

आजादी के 71 वर्षों में तुमने बहुत पेट बढ़ाया है,
पीढ़ी दर पीढ़ी तुम्हारी संतानों ने धन मेरे देश का खाया है।
माना कल वक्त तुम्हारा था, पर आज हमारी बारी है,
अपनी भी सब पचाने की पूरी-पूरी तैयारी है।
मनमाने कदम उठाएंगे, मनचाहा टैक्स लगायेंगे,
पाँच वर्षों की इस अवधि में,
नाकों चने चबवायेंगे।
अब अवसर आया मुश्किल से,
हाथों से यूँ न जाने देंगे,
धरती के जर्रे-जर्रे पर रोम-रोम पर टैक्स लगा देंगे।
साँसों पर ऑक्सीजन टैक्स, पैरों पर धरा टैक्स होगा,
गर्भस्थ पर परपोषी टैक्स, नवजात पर पालन टैक्स होगा।
कर ही कर हो हर कार्य पर,
बिन कर कोई कुछ कर न सके,
जाए जो कोई दुनिया से तो,
बिन किये कफन भी पा न सके।

संगीता तनेजा, नोएडा

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