सुपरिचित कवि डाॅ. राजीव पांडेय की माँ पर लिखी कविता बस पढ़ते रह जाओगे

माँ मेरे आस पास

रोम रोम रोमांचित करता, साँसो का आभास।
माँ मेरे आस पास। माँ मेरे आस पास।

कृष्ण सरीखा रुप बनाकर, मस्तक काला टीका।
नजर टोटके सभी बचाती, सीखा कहाँ  सलीका
खुशियों में खेले लाल लड़ैता ,दूर रहें संत्रास।

रात शयन के समय लोरिया,प्रातः मंगल गाती।
रोज प्रार्थना शाम आरती, सब कुछही सिखलाती
उसकी शिक्षा के कारण ही, है संस्कार का वास।

फ़टी पेंट में बार बार ही, उसने पैबंद लगाये।
सारी अभिलाषा पूरण कर, नूतन पंख सजाये।
आँसू अंदर अंदर रोये,  चेहरा नहीं  उदास।

कलम बुदक्का और पट्टिका, सुबह सुबह चमकाती।
चटनी संग दो रोटी देकर, स्कूल छोड़ने जाती।
मन्दिर मांगे रोज मनौती, हो बेटा कुछ खास।

काला कौआ काट खायेगा, इससे भी समझाया
इसीलिये मैं आज तलक भी, झूठ बोल ना पाया।
उसके आचरणों को ही माना भजन आरती रास।

तुलसी नीम का काढ़ा पीकर, भागे सारे रोग
आटे वाले पुए आज तक, लगते छप्पन भोग।
ऐसी माँ के चरणों का मैं, सदा रहूँ मैं दास।

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1 thought on “सुपरिचित कवि डाॅ. राजीव पांडेय की माँ पर लिखी कविता बस पढ़ते रह जाओगे

  1. *माँ की ममता*
    —————-

    सांसो की लड़ियां यूँही
    चलती रहे
    मेरी मां की ममता मुझे
    मिलती रहे।।

    फूल बन खिलती रहूँ मां के
    आंचल में
    मां की तस्वीर दिल में
    संवरती रहे।।

    लाई धरती पर मुझको
    दुलारा बहुत,
    मेरी धड़कन में पल-पल
    धड़कती रहे।।

    पूजती हूं जिनको मैं देवी
    समझ कर,
    मन मंदिर में वही मूरत
    बसती रहें।।

    सारे तीरथ व्रत सब अधूरे हैं
    लगे ,
    रज मां की चंदन माथ लगती
    रहे।।

    हौसला है मेरा, मेरी मां की
    दुँआ,
    मां की परछाई संग मेरे
    चलती रहे।।

    जिंदगी कच्चे धागों की एक
    डोर है
    “हेमा” निज” माँ”की लाडली
    बनी रहे!!

    हेमा श्रीवास्तव हेमाश्री।।
    प्रयाग उत्तर प्रदेश।
    वार्ता,-९४५४५९२३४६

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