सुपरिचित कवयित्री शैलजा सिंह, दिल्ली की दो शानदार कविताएँ

1-धरती होती बंजर है अब
इस बंजर में सपने जलते
अपने सारे ख्वाब पिघलते,
लोगों की छाया दिखती है
पीपल वाले प्रेत में !
गई जवानी सेंत में…

दिल्ली में तो रोज दिवाली
मगर देश की आंतें खाली
अपना खून पसीना रहता
उनके चेहरे पर है लाली,
हिरनी तड़प रही है कब से
राजा जी आखेट में !
गई जवानी सेंत में…. : 

महंगाई की मार बहुत है
होरी अब बीमार बहुत है
बुधिया की वह प्रसव वेदना
जैसा अब चित्कार बहुत है
झोपड़ियां है भूखी नंगी।।
कहीं जिंदा मछली प्लेट में।
गई जवानी सेंत में..

एक फूंक से बिखर रहे हैं
तिनके जैसा ही डर रहे हैं
संबिधान अब आंखे खोलो
गुंडे सारे निखर रहे हैं।
किस पर करें भरोसा अब 
जब गन्ना बदला बेंत में।
गई जवानी सेंत में…

2-पानी में पानी की मार पिया।।
ऐसे भी होता है प्यार पिया।।
मरते हैं लाखों हज़ार पिया।।
करते मगर बार बार पिया।।

चिड़िया ने पिंजरे को है चोंच मारी
पागल कबूतर है बैठा अटारी।।
आंखे हैं बनती कटार पिया।।
इनसे ही होता है प्यार पिया।
ऐसा ही होता….

बादल लड़ाता है फसलों से आंखें
खुलता है मन जैसे चिड़ियां की पाँखें
मोड़ रही नदिया है धार पिया।।
जोड़ें हम दो दुन्नी चार पिया।।

फूलों की घाटी में,सपनों की क्यारी।
झूल रहीं राधा झुलाते मुरारी।।
आओ मनाए  त्यौहार पिया।।
झूम उठे सारा संसार पिया।।

       

News Reporter

1 thought on “सुपरिचित कवयित्री शैलजा सिंह, दिल्ली की दो शानदार कविताएँ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *