ग़ज़ल-1
मिले तारीफ बस तुमको इसी निष्ठुर जमाने में
रहेगी भूमिका मेरी तुम्हे काबिल बनाने में
मुझे फुर्सत कहाँ बेटी! जिऊँ बचपन तुम्हारा मैं
लगी हूँ बस तुम्हारे ही लिये पैसा कमाने में
सुनो! सोने से पहले आज भी सांकल लगा लेना
लगेगा शाम को भी वक्त वापस लौट आने में
जलाये बल्ब तुम रखना रहेगी रौशनी घर में
करेगा ये मदद शायद तुम्हे जल्दी उठाने में
पिता माता बहन भाई सभी कुछ तुम मुझे समझो
कमी छोड़ी नहीं ‘उस सारथी’ ने सच बताने में
बिताना चाहती थी वक्त अपने आपमें ‘तारा ‘
समय बीता मगर दफ्तर से आने और जाने में
ग़ज़ल-2
जिससे कभी भी आज तक मतलब नहीं रहा
लेकिन हमेशा से मुझे अच्छा वही लगा
घर तक मेरे वो आ गये लेकिन चले गये
जैसे किसी के द्वार पर रुकती नहीं हवा
बोला नहीं वो आजतक चुप भी नहीं रहा
उसको सुना है ध्यान से मैंने तो इस दफा
डूबी उसी की नाव जो लहरों से डर गया
उतरा वही है पार जो तैराक बन गया
‘तारा’ किसी का दर्द तब अपना बनाइये
करती नहीं है जब असर लुकमान की दवा
धन्यवाद चेतन आनंद जी
swagat hai didi, vastav me dono ghazals bahut achhi hain.
बहुत ही उत्कृष्ट गजल हैं । हार्दिक बधाई आदरणीया तारा गुप्ता जी ।
बागीश शर्मा जी ,सीमा सिंह जी, तूलिका सेठ जी,उत्कर्ष गाफिल जी, प्रगीत कुअँर जी आप सभी का धन्यवाद 🙏
उम्दा गजल हार्दिक बधाईयाँ।