अखिल भारतीय साहित्य परिषद की कवि गोष्ठी आयोजित

खेतों में फसलें नहीं उगने लगे मकान
गाजियाबाद। अखिल भारतीय हिंदी साहित्य परिषद्, गाज़ियाबाद के तत्त्वाधान में भव्य कवि गोष्ठी सुखसागर फार्म हाउस में वरिष्ठ गीतकार वेदप्रकाश वेद की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई। कवि गोष्ठी में 32 रचनाकारों ने हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं पर आधारित अपनी कविताएं सुनाकर खूब समां बांधा। सुप्रसिद्ध कवि डाॅ. कुंअर बेचैन, नवगीतकार डा. योगेन्द्रदत्त शर्मा व गजलकारा उर्मिला माधव का विशेष सान्निध्य गोष्ठी का और नई ऊंचाइयों पर ले गया।
अखिल भारतीय हिंदी साहित्य परिषद् गाज़ियाबाद के संरक्षक अशोक श्रीवास्तव, महेश कुमार आहूजा व बीएल बत्रा अमित्र के संरक्षण में हुई इस कवि गोष्ठी का सफल संचालन परिषद के महासचिव चेतन आनंद ने किया। कमलेश संजीदा, मयंक राजेश, गिरीश सारस्वत संजू, ब्रजनंदन पचैरी, स्नेहलता भारती, सतीश बर्धन, भूपेन्द्र त्यागी, रामवीर आकाश, राजेन्द्र प्रसाद बंसल, राहुल जैन, श्वेताभ पाठक, सरोज त्यागी, उर्मिला माधव, जयप्रकाश मिश्र, वंदना कुंवर रायजादा, ब्रज अभिलाषी, राज चैतन्य, चरण शंकर प्रसून, आशीष प्रकाश सक्सेना, कल्पना कौशिक, बीएल बत्रा अमित्र, रोमी माथुर, मधु श्रीवास्तव, उत्कर्ष गाफिल, डा. तारा गुप्ता, चंद्रभानु मिश्र. चेतन आनंद, मीरा शलभ, डा. योगेन्द्र दत्त शर्मा, डा. कुँअर बेचैन एवं वेदप्रकाश वेद ने काव्य पाठ किया।
कवि गोष्ठी के प्रारम्भ से पहले दीप प्रज्ज्वलन एवं माँ वाणी के चित्र पर माल्यार्पण हुआ। इसके पश्चात रोमी माथुर ने सरस्वती वंदना की। पहले कवि के रूप में कमलेश संजीदा ने ‘एक बूढ़ी माँ’ शीर्षक से कविता सुनाई। शाहदरा से पधारे मयंक राजेश ने एक गजल पढी, जिसका यह शेर बहुत पसंद किया गया। ‘चाहतों को आज फिर से आजमाने आ गई/ याद तेरी अश्क ले फिर से रुलाने आ गई.’…। ब्रजनंदन पचैरी ने कुछ छंद सुनाये और फिर ‘पड़ गए अधरों पर छाले’ की ध्रुव पंक्ति के साथ एक पद सुनाया। स्नेहलता भारती ने माँ शीर्षक से एक कविता सुनाई जिसकी प्रथम पंक्ति थी—‘तेरी ममता से बढ़कर माँ कोई मन्नत नहीं होती। पिलखुआ से पधारे सतीशवर्धन ने भी माँ शीर्षक से ही कविता सुनाई। दिल्ली से पधारी उर्मिला माधव ने एक ग़ज़ल सुनाई। जिसका एक यह शेर बहुत ही पसंद किया गया-‘इक खनक आहों के हिस्से की भी है / उनको अब मैं खाने खाने रख रही हूँ.’…इस गजल के बाद उन्होंने तरन्नुम में एक और भी प्यारी गजल प्रस्तुत की—‘ दिल में कोई बात है और तुम नहीं./ आओ देखो रात है, और तुम नहीं। वंदना कुंवर रायजादा ने माँ पर दो दोहे सुनाये और एक ग़ज़ल भी सुनाई जो बहुत पसंद की गई —‘लोग हर पल तनाव देते हैं / अपने बनकर के घाव देते हैं / हम भंवर की भला क्या बात करें / अब तो तट भी घुमाव देते हैं। वरिष्ठ कवि श्री ब्रज अभिलाषी जी ने कुछ स्वतंत्र शेर सुनाये—‘ कोई पूछे तो क्यों पूछे कोई जाने तो क्यों जाने/ शहर में बेअदब लोगों से अपना राबता कम है। चरण शंकर प्रसून ने बहुत ही अच्छे शेर और फिर एक मुकम्मल ग़ज़ल सुनाई. ‘आँधियों की चैखटों में जड़ गया केवल धुआँ’… कानपुर के मूल निवासी आशीष प्रकाश सक्सेना ने चाय की कविता में संकेत की भाषा का इस्तेमाल करते हुए राजनीति पर कटाक्ष किये। उत्कर्ष गाफिल जी ने एक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल सुनाई-‘जो उसके दर्द से मंसूब हम नहीं होते/ तो फिर ये दायरे आँखों के नम नहीं होते.’…इसके बाद उन्होंने एक खूबसूरत नज़्म भी सुनाई. … डा. तारा गुप्ता ने भी बहुत ही अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत की—‘ क्यूँ लगा आज पूरी सदी मिल गई / चंद लम्हों की बेशक मुलाक़ात है / ज़िंदगी की तो हैं सैकड़ों जातियां / मौत की तो मगर एक ही जात है। चेतन आनंद ने अपने गुरु डा. कुँअर बेचैन के एक जुलाई को आने वाले जन्मदिन की बधाई देते हुए और उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए एक गीत सुनाया-‘तुमने क्या से क्या कर डाला, अपने बस की बात कहाँ थी / सूरज जैसा दिया उजाला, अपने बस की बात कहाँ थी.’…इस गीत को सुनकर डा. कुंअर बेचैन बहुत भावुक हो गए। संस्था की अध्यक्षा मीरा शलभ ने कुछ दोहे और गीत सुनाये. दोहे की इस पंक्ति को बहुत ही सराहा गया—‘ मैली मेरी चूनरी, उजला तेरा प्यार.’…इसी प्रकार एक अन्य दोहे की इस सार्थक पंक्ति पर भी सबने खूब दाद दी—‘ रिश्तों में बस रह गया केवल लोकाचार.’…उन्होंने एक गीत भी सुनाया जो बहुत ही सुन्दर था इस गीत का यह टुकडा तो बहुत ही पसंद किया गया-‘पाप पूछे पुण्य से तू कौन है। वरिष्ठ गीतकार डा.योगेन्द्र दत्त शर्मा जी ने कुछ दोहे और एक गीत प्रस्तुत किया। माँ को याद करते हुए उन्होंने यह दोहा पढ़ा.‘ नीलकंठ बोला कहीं, इतने बरसों बाद / फिर माँ का आँचल उड़ा, बचपन आया याद।’ वरिष्ठ कवि डाॅ. कुंअर बेचैन जी ने पहले संस्था को इतनी सुन्दर गोष्ठी कराने के लिए बधाई दी और फिर अपने दो दोहों से अपना कविता-पाठ शुरू किया. उनका यह दोहा बहुत ही पसंद क्या गया-‘सिसक सिसक गेहूं कहें, फफक फफककर धान, खेतों में फसलें नहीं, उगने लगे मकान.’…एक ग़ज़ल प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा-‘जो मन को साथ साथ लिए घूम रहा है / उलझन को साथ साथ लिए घूम रहा है.’….इसके बाद उन्होंने एक गीत भी सुनाया-‘ जिस तरफ़ भी उठीं दृष्टियाँ, दृश्य वे ही पुराने मिले / ज़िंदगी की कड़ी धूप में कांच के शामियाने मिले। अंत में गोष्ठी के अध्यक्ष वेदप्रकाश वेद ने पहले तो संस्था को धन्यवाद दिया और फिर एक दोहे से अपना काव्य-पाठ प्रारम्भ किया .एक दोहे की इस पंक्ति को बहुत पसंद किया गया-‘चिकना चिकना फर्श है, संभल संभल रख पाँव.’…फिर वेद जी ने एक गीत भी प्रस्तुत किया-‘ ताऊ जी , चाचा जी सुनना अच्छा लगता है। संस्था के संरक्षक बीएल बत्रा अमित्र ने सभी को धन्यवाद दिया। यह गोष्ठी भी पिछली गोष्ठियों की तरह बहुत सफल रही।

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