प्रतिभा पलायन क्यों… ज़रा सोचिए

देश के हित को सोचकर ही ,
हम सबको आगे बढ़ना है  
प्रतिभा पलायन नहीं निष्कर्ष, 
हिंदुस्तान में ही अपना सर्वस्व कायम रखना है 

लेखिका
नीरू मोहन ‘वागीश्वरी’

प्रतिभा संपन्न व्यक्ति ही किसी समाज या राष्ट्र की वास्तविक संपदा होती है| इन्हीं की दशा एवं दिशा पर देश का भविष्य निर्भर करता है अगर भारत के स्वर्णिम अतीत में देखे तो प्रतिभाओं की बहुलता के कारण ही भारत समृद्धि,खुशहाल और ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश था| प्रतिभाओं की आज भी पूर्व काल की तरह देश में कोई कमी नहीं है;किंतु उनकी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है,और चिंता का विषय है ‘ब्रेन ड्रेन’ यह कोई बीमारी नहीं है पर बीमारी से कम भी नहीं है|’ब्रेन ड्रेन’ का अर्थात प्रतिभा पलायन है| यह ऐसा रोग है जो देश के विकास को खाए जा रहा है;जिसके अंतर्गत देश के बुद्धिमान और अति कुशल व्यक्ति विदेशों में जाकर बस रहे हैं| संस्कृत में एक कहावत भी है- “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” परंतु आज के प्रतिभावान शायद इस सत्य से पूर्णता अनभिज्ञ है तभी तो प्रतिभाएँ अपना देश छोड़कर दूसरे देशों में जा बसने में अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं |अपने कुशल और प्रतिभावान संपन्न व्यक्तियों की हानि से विकासशील देश सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं | इसका मुख्य कारण यह है कि विकासशील देशों में बेहतर और अन्य सुविधाओं के रूप में होने वाला लाभ कम है|आज जरूरत है इस देश को वैज्ञानिक सोच को विकसित करने की | आज क्यों ? डॉक्टर से लेकर खगोल वैज्ञानिक या खगोल शास्त्री तक विश्व के दूसरे देशों की तरफ रुख करते हैं | अच्छी तनख्वाह, बेहतर शोध के अवसर, बेहतर रहन-सहन की लालसा में क्यों हमारी प्रतिभाएँ पलायन की बात सोचती हैं | क्या किसी ने कभी इस बात पर विचार किया है ? क्या हमारी सरकार निंद्रा अवस्था में है ?क्या वह नहीं जानती कि अगर देश के प्रतिभावान व्यक्ति विदेशों में अपनी सेवाएँ देंगे तो अपने देश की प्रगति में कैसे योगदान करेंगे ?बहुत से ऐसे सवाल हैं जिनके उत्तर शायद आज क्या कभी ना मिल पाए | भारत प्रतिभा से संपन्न राष्ट्र है पूरे विश्व को इसने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है और विश्व का हर राष्ट्र भारत के प्रतिभावान व्यक्तियों का, उनकी क्षमताओं का लोहा मानता है | आज कोई राष्ट्र अगर भारत के साथ अपने संबंध मधुर बनाना चाहता है तो उसके पीछे भारत की अपनी प्रतिभा क्षमता है | ऐसे तथ्य किसी राष्ट्र के परिपेक्ष में हो तो यह संभव ही नहीं कि वह राष्ट्र संपन्न और समृद्ध न हो| पर भारत के संदर्भ में यह सच्चाई किस हद तक सार्थक मानी जाएगी | आप एक ओर तो अपनी प्रतिभा का लोहा विश्व को मनवा रहे हैं वहीं दूसरी और देश की अपनी आंतरिक स्थिति सुदृढ़ नहीं है | आप अपने विकास के लिए दूसरे देश के आगे हाथ फैला रहे हैं |ऐसा क्यों ? प्रश्न तो बहुत हैं परंतु उत्तर सिर्फ एक है | प्रतिभाएँ धन के लालच में और कुछ सुविधाओं के लोभ में दूसरे देशों का रुख कर गए | इसके पीछे सिर्फ कोई एक पक्ष जिम्मेदार नहीं है | इसके पीछे इससे जुड़े सभी तंत्र जिम्मेदार माने जाएँगे| जिस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरु जी ने ऐसे सर्वश्रेष्ठ संस्थानों की आधारशिला रखी थी तो उस वक्त उनका सिर्फ एक ही लक्ष्य और उद्देश्य था कि किस प्रकार हम अपनी प्रतिभाओं को विकसित कर भारत को आत्मनिर्भर संपन्न राष्ट्र बनाया जाए पर आज हमारे प्रतिभावान शिक्षार्थी इन बातों को नहीं समझ पा रहे हैं | आज कहीं ना कहीं हमारी सरकार भी ऐसे छात्रों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के अनुकूल उचित संसाधन मुहैया नहीं कर पाई जिसका परिणाम प्रतिदिन भारत से प्रतिभा का पलायन होता है | इसका परिणाम यह हो रहा है कि भारत विकास की दौड़ में पीछे होता जा रहा है और उसकी प्रतिभा संपन्न लोगों का लाभ दूसरा देश उठा रहा है इससे भारत को लगभग हर वर्ष कई अरब डॉलर का नुकसान होता जा रहा है | कहा जाता है कि कोई भी राष्ट्र तभी सुपर पावर बन सकता है जब उसके पास अपनी वैज्ञानिक क्षमता हो | हम वैज्ञानिक उत्पाद से लेकर अस्त्र-शस्त्र तक पर लाखों डॉलर खर्च करते हैं पर जब बात आती है वैज्ञानिक खोज एवं शोध की उस पर खर्च करते हैं पूरे सुरक्षा खर्च का मात्र चार या पाँच प्रतिशत आज इस सोच को बदलने की जरूरत है | जरूरत है वैज्ञानिक खोज को विकसित करने कि | हमें अपनी प्रतिभाओं को उचित अवसर उपलब्ध कराने होंगे | शोध के लिए उचित वातावरण अवसर और स्थान उपलब्ध कराना होगा उनको प्रोत्साहित करना होगा सम्मान दे कर उचित पारिश्रमिक और बेहतर जीवन शैली देकर जिससे कि वह बाहर का रुख न करें | अपने देश अपनी मातृभूमि पर ही रहकर उसके विकास और समृद्धि के बारे में सोचें | अतः जो भी हो हमारे प्रतिभावान, बुद्धिजीवी और संपन्न लोग अपनी राष्ट्रीयता, अपनी देश सेवा का मान रखें | अगर हमें सुविधाएँ कम भी मिले तो हम कम-से-कम देश की प्रगति देश के स्वावलंबन की खातिर कुछ तो त्याग कर ही सकते हैं | शिक्षा की सार्थकता तभी मानी जाएगी जब वह अपने हित के साथ-साथ सामूहिक हित की बात करें | वहीं दूसरी तरफ हमारी सरकार को भी इस बात का ध्यान रखना है और प्रयास करना है कि हमारे शैक्षणिक प्रतिभावान लोगों को हर संभव सहायता मुहैया कराया जा सके तथा देश को विकास की राह पर अग्रणिय बनाया जा सके | राष्ट्र के विकास को गति देने के लिए प्रतिभाओं के पलायन को रोकना अति आवश्यक है इसके लिए उपयुक्त परिस्थितियां एवं वातावरण बनाना होगा |हमें उन बुद्धिजीवियों का पथ ग्रहण नहीं करना है जिन्होंने विदेशों में जाकर अपनी साख बनाई | पद और सम्मान ग्रहण किए | बेहतर अवसर और शोध कार्य को पूरा करने के लिए विदेशों का रुख किया | हमें डॉक्टर चंद्रशेखरवेंकटरमन, डॉक्टर होमी जहांगीर भामा ,डॉक्टर अब्दुल कलाम जैसी कई सम्मानित विभूतियों का अनुसरण करना है जिन्होंने इन्हीं साधन एवं सुविधाओं के बीच उल्लेखनीय उपलब्धियों से रष्ट्र को गौरवांवित किया है | अंत में मैं यही कहना-
विकास गर करना है,
देश का उच्च स्तर पर ।
विकसित इसे बनाना है,
गर चिरकाल तक ।
प्रतिभा को अपनी हमको,
करना होगा देश पर न्यौछावर । 
चकाचौंध को देख अन्य की,
नहीं करना है प्रतिभा पलायन । 
अपने ही इस देश में  रह कर,
देना है अपनी सेवा का
अंतिम क्षण तक ।।

News Reporter

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