सुपरिचित कवयित्री नंदिनी श्रीवास्तव ‘हर्ष’ की तीन कविताएँ

1-

बिटिया घर की शान है , बिटिया ही संसार
दो दो कुल का बेटियां, करती बेड़ा पार!!
बिटिया तेरी हर खुशी, बसे हमारी जान
बाबा की तू लाडली, अम्मा की मुस्कान!!

2-

लाख पहरे लगाऊँ मैं जज्बात पर

आँख छलकें मिरी उनकी हर बात पर
गर यही प्यार है तो हुआ है मुझे
बात सारी टिकी इक मुलाकात पर
साथ उनका मिले बस यही थी दुआ
हिज़्र की हार हो वस्ल की रात पर
काश तम ये मिटे दूर हों फासले
लोग मरते यहाँ धर्म औ जात पर
आदमी आदमी का ही’ दुश्मन हुआ
है खुदा भी परेशान हालात पर!!

3-

मेघ पिघला धुली है धरा आज तो
ये गगन मौन क्यूँ है जरा आज तो
पारदर्शी सभी भाव मेरे हुऐ
ज़ख्म भी कुछ हुआ है हरा आज तो
साल दर साल मैं अनकही सी रही
नील से कंठ भी है भरा आज तो
मानती हूँ कि बनवास पूरा हुआ
मन परीक्षा अगन से डरा आज तो
बाँसुरी सी हमेशा मधुर ही बजी
आस भी राधिका का मरा आज तो
दोष मेरा न था, गर न तुम भी गलत
अश्रु दोनों के’ फिर क्यूँ झरा आज तो!!

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