जाने-माने ग़ज़लकार अजय अज्ञात, फरीदाबाद की तीन चर्चित ग़ज़लें

 1-

क्या फल मिलेगा इसकी न चिंता किया करो
बस मन लगा के काम को करते रहा करो
रहते हो कामकाज में मसरूफ़ हर घड़ी
फुर्सत निकाल कर कभी हम से मिला करो
रहबर के भेष में हैं यहाँ राहजन बहुत 
दुनिया बहुत खराब है बच कर रहा करो
मुझ को नहीं सुहाता है हर वक़्त का मज़ाक
हर वक़्त यूं न बेतुकी बातें किया करो
हर मोड जिंदगी का नया इम्तेहान है
हो जाऊ कामयाब मैं ऐसी दुआ करो
करना जो चाहते हो इबादत खुदा की तुम
माँ बाप की हमेशा ही खिदमत किया करो
तुम खुद ग़ज़ल की एक मुकम्मल किताब हो
तन्हाइयों में गौर से खुद को पढ़ा करो
पल पल मे अपनी बात से मुकरो न तुम अजय 
अज्ञात अपनी बात पे कायम रहा करो

2-

दुआओं के असर को ख़ुद कभी यूँ आज़माना तुम
किसी के ज़ख़्म पर थोड़ा कभी मरहम लगाना तुम
समंदर में उतर जाना हुनर अपना दिखाना तुम
सफीने के बिना इस पार से उस पार जाना तुम
मसाइल से न घबरा कर कभी तुम ख़ुदकुशी करना
अंधेरों में उम्मीदों के चिरागों को जलाना तुम
मिलें रुस्वाइयां तुमको उठाये उँगलियाँ कोई
मुहब्बत का कभी ऐसा तमाशा मत बनाना तुम
कि जैसे छलनी हो कर भी बजे है बांसुरी मीठी
किसी भी हाल में रहना हमेशा मुस्कुराना तुम

3-

ज़ीस्त के सहरा में कुछ रोज़ तमाशे कर के
चल दिये जिस्म को मिट्टी के हवाले कर के
ज़िंदगी दाव तेरा चल न सकेगा कोई
मौत आएगी किसी रोज़ बहाने कर के
लौट जाता है यूँ ही रोज़ सियासी सूरज
चंद लोगों के दियारों में उजाले कर के
कामयाबी का ज़रा स्वाद जो चक्खा उसने
बढ़ गया आगे वो रिश्तों को किनारे कर के
मुझको बुझना है किसी रोज़ यक़ीनन, लेकिन
ज़ेहन के घोर अँधेरों में उजाले कर के
मेरा माज़ी है कि अज्ञात मेरा मुस्तक़बिल
कौन मुझ को ये बुलाता है इशारे कर के

News Reporter

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