1-
लेखनी! उठ जा अरी तू शंख बन जग को जगा दे।
मेरी इस भारत धरा को फिर से वृन्दावन बना दे।
छाँट दे बादल सभी तू अंधता के घिर रहे जो,
प्रीति जनमन रागिनी में पावनी गंगा बहा दे।
खोटी बसी मन भावना को हम करें मिलकर हवन,
जग का हर उपवन सजाकर मलयागिरि नंदन बना दे।
भेद कोई ना करे इस जगत के सब प्राणियों में,
जागरण का गीत गाकर नींद आंखों से भगा दे।
काट दे उन बेड़ियों को जो प्रगति बाधक बनी हैं,
सदियों से शापित उस प्रथा को समय की दासी बना दे।
2-
अंतर्मन में कोई शाश्वत दीप जले तो जानूँ।
निष्कंटक हो प्रेमरीत सद्भाव पले तो जानूँ।
ह्रदय जमी है बर्फशिला सी अवगुण की चट्टान,
कोई ऐसा सूर्य सौंप दो बर्फ गले तो जानूँ।
पग पग पर रावण के पहरे राम किनारे बैठे,
रक्तबीज से रावण उगते गर कुचले तो जानूँ।
एक तरफ गंगाजल बितरण एक तरफ मदिरासब है,
पान करें गंगाजल मदिरा हाथ मले तो जानूँ।
बस्ती बस्ती उग आये हैं नागफनी के विरवा,
आंगन आंगन तुलसी विरवा आज उगे तो जानूँ।
रजत तैयबपुरी-आगरा
गयाप्रसाद मौर्य रजत
प्रवक्ता -अंग्रेजी
एस पी भगत इण्टर कॉलेज
फरह मथुरा
संयोजक- राष्ट्रीय कवि संगम ब्रज प्रान्त उप्र