वैचारिक शिखर के धारदार कवि अमिताभ ‘अशेष’ मेरठ की तेवर वाली कविताएँ

1-

झील में तुम ताल में तुम, हर घड़ी हर हाल में तुम 
तुम ही जड़ में चेतना में, तुम हृदय की वेदना में 
भूख सी तुम प्यास से तुम, एक मिलन की आस से तुम
तुम जमीं आकाश तुम हो, तुम ही धड़कन स्वांस तुम हो
तुम ध्वनी में मौन में तुम, हर जगह हर कोन में तुम 
व्योम के विस्तार में तुम, जीत में तुम हार में तुम 
रास्तों में, वादियों में, पर्वतों में, घाटियों में, 
फूल में और पत्तियों में, गाँव में और बस्तियों में 
तुम हवा में तुम ही जल में, समय के हर एक पल में 
बादलों के शोर में तुम, नृत्य करते मोर में तुम 
चाँद की ऊँचाइयों में, झील की गहराइयों में 
हर तरफ अब तुम ही तुम हो, ईश मेरे तुम ही तुम हो।

2-

जीत होती सत्य की, सबको यही कहते सुना है, 
पर हकीकत देख कर हर बार हमने सिर धुना है। 

चार फर्जी काम करके उनके घर में रौनकें हैं, 
देखियेगा आपके हाथों में केवल झुनझुना है। 

कान, आँखें, और जुबां को, खोलना मेरी खता थी, 
मेरे कातिल ने भी अब इल्जाम मुझ पर ही बुना है। 

मेरे घर की बात गर बाजार तक पहुंची तो तय है, 
सामने हंसता हो बेशक, है कोई जो भुनभुना है। 

मैं दिया हूँ मेरी नियती है कि मैं जलता रहूँगा , 
मत समझना ये कि मेरी आग को मैंने चुना है।

 

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सम्पादक
चेतन आनंद

av.chetan2007@gmail.com

 
News Reporter

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