1-बेटियाँ
कभी बङे़ जूते पहन
तो कभी –
बड़ी बिन्दिया लगा
साङी पहन,
तो कभी –
चूङि़याँ सजा
बड़े होने के सपने,
देखा करती थी मैं…
माँ मेरी हरकतों को देख
रीझती थी मुझ पर…
जाने क्यों
अक्सर हँसते-हँसते
रोती थी मुझ पर…
बड़ी हो गई तो
जायेगी मुझे छोड़कर…
जागी हूँ रात-रात
तेरे संग,
तुझे सुलाने को
फिर जागूंगी रात-रात
तेरी यादें सजाने को…
पगली,
तू धीरे-धीरे बड़ी होना
तेरा-मेरा रिश्ता है एक-सा
पाला है मैंने, पर
तुझे कहीं और है महकना………
2-तुम्हारी चुप्पी
क्यों कभी तुम्हारा
सिर्फ-
मेरा हाल ही पूछ लेना
ऑक्सीजन की तरह लगता है…
क्यों कभी तुम्हारा
सिर्फ-
स्पर्श मेरे भी
जिं़दा होने के
एहसास जगा देता है..
क्यों कभी
एक साथ महसूस की हुई
चुप्पी भी
कुछ ऐसा कह जाती है
जिसे याद करके
ज़िन्दगी –
मायने बदल जाती है ….
मायने बदल जाती है …
अब एजुकेशन मिरर न्यूज पाॅर्टल में साहित्य काॅलम भी शुरू कर रहे हैं। इसमें स्थापित और नवोदित कवियों की रचनाओं को सचित्र प्रकाशित किया जाएगा। आप भी इसमें शामिल हो सकते हैं। अपनी दो कविताएँ और एक ताज़ातरीन फोटो हमें भेजिये। इसे न्यूज पाॅर्टल के अलावा फेसबुक पर बने हमारे एजुकेशन मिरर पेज समेत सोशल मीडिया पर प्रकाशित और प्रसारित किया जाएगा।
सम्पादक
चेतन आनंद
av.chetan2007@gmail.com
प्रगति जी की कविताएं बहुत उत्कृष्ट भाव लिए हुए है। मौन प्रेम की सार्थक अभिव्यक्ति। शुभकामनाएं।
हार्दिक आभार भूपल जी ?
बहुत बहुत आभार चेतनजी मेरी कविताएं प्रकाशित करने हेतु ?
Really a very emotional and hear touchy poems by Pragati Gupta Ji, I would like to see some more poems from PRAGATI JI.
Thanks sudeshji ?
Bhabhi harday ko chu lene wali kavitay. Mene apaki pehale wali rachnaý bhi padhi h .maa aur beti ka chitrañ to hubahu khud par vyatit hota h .proud of you.
बहुत आभार ?
हृदयस्पर्शी कविताएँ प्रगति जी । हार्दिक बधाई
Thanks navita
बेटियों की मनःदशा की सहज,सरल और मर्मस्पर्शी रचना एक उच्च कोटि का सृजन है।इसे पढ़कर एकदम से कोई बेटी इसमें अपने आप को खोजने लगेगी।सशक्त लेखनी की यही पहचान डॉ0 प्रगति गुप्ता जी निशानी है।
बहुत बधाई।