क्या करें क्या न करें
देश भक्त बनो, सरकार भक्त न बनो।
समाज सेवक बनो, जाति सेवक न बनो।
ध्येयनिष्ठ बनो, व्यक्तिनिष्ठ न बनो।
भक्त बनो पर, अन्धभक्त न बनो।
गुरु कहे जो करो, गुरु करे जो न करो।
बुराई से नफरत करो, बुरा करने वाले से न करो।
भलाई करो, फल की इच्छा न करो।
कर्म करो, फल की इच्छा न करो।
सम्बंध बनाओ, पर गिरोह न बनाओ।
दया करो, पर लोगों को अपने ऊपर आश्रित न बनाओ।
सच बोलो पर अप्रिय सच न बोलो।
विनम्र बनो, पर आत्मसम्मान न खाओ।
प्रेम करो, पर प्रेम में अन्धे न हो।
जल्दी करो, पर हड़बड़ी न करो।
पैसा कमाओ, पर पैसे के गुलाम न बनो।
स्त्री एवं बुजुर्गों का सम्मान करो।
पर कभी उनको अपने ऊपर हावी न होने दो।
बच्चों को प्यार करो, पर लाड़ में बिगड़ने न दो।
पुरुषार्थ करो और उसमें विश्वास करो, भाग्य में विश्वास न करो।
प्रयास करने पर जो मिल जाये,
उसे भगवान का प्रसाद समझकर-
आनन्द करो, जो न मिला उसको भाग्य समझो।
यदि सब कुछ करके भी सभी कुछ आपके विरुद्ध हो रहा है,
तो समझो या तो आपके विरुद्ध कोई षड्यंत्र-
कर रहा है, या यही आपका प्रारब्ध है।
गलत होने पर अपने करीबियों को न कोसो।
अपने आपको भी न कोसो, चुप हो जाओ।
थोड़ी देर में सबकुछ ठीक हो जायेगा।
यह थोड़ी देर की चुप्पी ही आपको बड़े अनिष्ट से-
बचायेगी, और मुसीबत में से निकलने का रास्ता सुझायेगी।
सजग रहो, समझदार बनो, होशियार बनो।
पर शक्की न बनो, और गफलत में न रहो।
आत्मविश्वासी बनो, स्वाभिमानी बनो, पर घमण्डी न बनो।
ज्यादा सुनो, कम बोलो, जब भी बोलो, सटीक एवं प्रभावशाली बोलो।
जीने के लिये खाओ, खाने के लिये न जिओ।
मिलनसार बनो, मित्रवत न बनो।
यदि मित्रवत हो जाओ फिर मित्रता निभाओ, बेवफाई न करो।
सामाजिक रीति-रिवाज एवं परम्पराओं को, हो तो-
कोशिश कर निभाओ, पर उनका अंधानुकरण न करो।
मुसीबत में काम आना अपना स्वभाव होना चाहिए।
पर अपनी एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों की कीमत पर नहीं।
सबको साथ लेकर चलो, सबका साथ निभाओ।
‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत निभाओ।
खुदगर्ज न बनो, स्वार्थ पर हमेशा अंकुश रखो।
उसे पूरा करने की जल्दबाजी न करो।
खाने की वस्तु हो, यश हो, पुरस्कार हो, खुशी हो,
उल्लास हो, उमंग हो, उपलिब्ध हो, मिल-बांटकर उपयोग करो।
ग़म हो, दुख हो, विशाद हो, कमी हो तो
अकेले उसका उपभोग करो,
किसी को उसका अहसास न होने दो।
प्रेम, ईश्वर, मान्यताएँ, सिद्धांत, रुचि, अरुचि,
व्यवहार, धन-दौलत हर एक की निजी वस्तु है,
उस पर कोई चर्चा, आरोप, प्रत्यारोप, टीका, टिप्पणी न करो।
अहसानमंद बनो, अहसान फरामोश न बनो।
किसी ने आपके लिए कुछ किया, उसको कभी न भूलो।
उसे कर्ज समझो, जब तक उसके लिये कुछ न कर दो, चैन न लो।
अच्छा करो, बुरा न करो, सबका भला करो।
किसी का न अहित सोचो, न अहित करो।
– डाॅ. अशोक कुमार गदिया
कुलाधिपति, मेवाड़ यूनिवर्सिटी
चित्तौड़गढ़, राजस्थान