युवा गीतकार  डा. सतीश वर्द्धन, पिलखुवा की दो खूबसूरत रचनाएँ

1-

गीत के रूप में , गुनगुनी धूप में ,  तेरी यादों को मैं गुनगुनाने लगा ।
आ रहा ना नजर ,मन के आँगन में पर बांसुरी सी कोई फिर बजाने लगा ।।

आगे पीछे तेरे आना जाना मेरा ,नीचे नीचे ही वो मुस्कुराना तेरा ।
मुझको कॉलिज में आते हुए देखकर , हौले हौले सखी को बताना तेरा ।
मेरा हर मित्र तब नाम लेकर तेरा , दिन प्रतिदिन मुझे फिर चिढ़ाने लगा ।

पंछी चाहत का मन में चहकने लगा , तुझसे मिलने को व्याकुल मैं रहने लगा ।
फिर लहू से कभी और कभी स्याही से , पुस्तकों पर तेरा नाम लिखने लगा ।
कर बहाना मैं कॉपी किताबों का फिर , घर तलक भी तेरे आने जाने लगा ।

झील जैसी लगी मुझको आँखे तेरी , थी गजल ही गजल मीठी बातें तेरी ।
चाँद तारों में भी तुम ही आये नजर , करवटों में कटी फिर तो रातें मेरी ।।
नींद आ भी गयी जो तनिक सी कभी , नाम लेकर तेरा बड़बड़ाने लगा ।   

2-
हारना ना पड़े जीत बन जाओ तुम ।
छोड़ना ना पड़े मीत बन जाओ तुम ।।
मेरी सांसो में तुम   ऐसे रहने लगो ।
गुनगुनाता फिरू गीत बन जाओ तुम।।

तुम कहानी नही  इक उपन्यास हो ।
पानी भी तुम नही पर मेरी प्यास हो ।
ये हकीकत है   कोई फ़साना नही ।
पास  मेरे नही  पर मेरे  पास  हो   ।।

जिंदगी भर जिसे मैं निभाता रहूँ ,
अब किसी पर्व की रीत बन जाओ तुम ।

तुम विधा तो बनी पर कहानी नही ।
तुम हवा तो बनी पर सुहानी नही ।।
अब तो मैं ही नही सारा जग ये कहे ।
तुम प्रेयसी बनी पर दिवानी नही ।।

राधा की कृष्ण से प्रीत है जिस तरह ,

मेरी ऐसी अमर प्रीत बन जाओ तुम ।

विष दिए जाओ तुम मैं पिये जाऊंगा ।
आखिरी साँस तक पर तुम्हे चाहूंगा ।।
डोर सांसों की अब  सौंपता हूँ तुम्हे ।
चाहोगे जब तलक  मैं  जिये जाऊंगा ।।

जीत कर भी जिसे जीत पाया न मैं ,
अब उसी जीत की जीत बन जाओ तुम ।।

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