1.
मैं मंदिर का अहंकारी दीपक नहीं हूँ,
जो देव का सहारा लेकर सम्मानित हो जाए।
मैं अंधकार मिटाने वाली पथ प्रदर्शक मशाल भी नहीं हूँ,
सूर्य के जैसा साफ नहीं है,
उतना प्रताप भी नहीं है,
मैं जीवन की प्राथमिकता को अनुभव करता हूँ
केवल मैं चूल्हा हूँ।
भूख का समाधान जुटाता हूँ,
मैं जलता हूँ,
सदा भोजन पकाता हूँ,
मेरे मन में तुम्हारे लिए कितना प्रेम है,
इसका एकमात्र प्रमाण यह है कि
मैं कभी नहीं रुकता
मैं जूझता, मैं कभी नहीं टूटता,
तुम्हारे लिए जलता हूँ सदा,
तुम जलाए तो जला, तुम बुझाए तो बुझा,
मैं कोई प्रपंच ना चाहूँ,
मैं केवल भूख को पहचान कर समाधान चाहूँ,
रास्ते में, गली-कूचे में मैं जलता हूँ,
केवल तुम्हारे लिए
क्या करो परित्याग करो,
मेरी पवित्र आस्था स्वीकार करो।
केवल चूल्हा नहीं, मैं तृप्ति का मुक्ति द्वार हूँ।
मैं आज चुनौती देता हूँ,
मेरे बिना तुम जी न सकोगे।
मैं दीपक और मशाल से भी विशाल हूँ,
मेरी प्रणाली, मेरी शैली और प्राथमिकता को पहचानो।।
2.
स्निग्ध मलय मंदिर-सा आलय,
संकल्प शक्ति से रोके जो प्रलय,
मन में द्वंद्व नहीं, विवेक मंद नहीं,
वह पथ हो तेरा, वह व्रत हो तेरा,
स्तुति नहीं, कोई प्रस्तुति नहीं,
तुम्हारे चित्त की विकृति भी नहीं,
नत हो जाए स्वाभिमान,
त्यागकर ऐसी स्वीकृति भी नहीं,
शुभता में निवेदन-सी,
जागृति में चेतन-सी,
औचित्य में दिव्य-सी,
महाकाव्य जैसी वेदना नहीं,
कामना भी नहीं, जिसमे
तुच्छ मनोकामना भी नहीं,
आस्था के मध्य निर्वाह चेष्टा
और निष्ठा में जो पराकाष्ठा के समान कारण
जिसके अधीन नहीं भावना
सृजन भी पराधीन नहीं
मौलिक विचार लिए आंगन में
संध्या के दीप और दिए जैसे
जले वैसी-सी कन्या
छोटी सी मुनिया
जिसमे धैर्य और धारण है
वह तो उदाहरण है
मेरी बेटी और आपकी गुड़िया
हमारी तन्या हम सबकी तन्या।।
दोलन राय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र
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सम्पादक
चेतन आनंद
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