काँच का घरौंदा
तुम सरस थे, सहज थे, कोमल थे।
अन्तर्मन में बहने वाले मीठे जलस्रोत थे।
मन में उमंग,
चाहत जगाने वाले
एक सच्चे पथ प्रदर्शक थे।
तुम थे विश्वास और आशा की किरण,
तुम थे कृत्यों को मूर्त रूप देने वाले मूर्तिकार,
तुम थे मन को लुभाने वाले मधुर गीत,
तुम थे चंचल मन में थिरकने वाला संगीत,
तुम पर आश्रित होकर
लम्बा जीवन खुशी से काटने का था सपना।
पर, यह कैसी आंधी चली, जिसमें
तुम बह गये, और
अपनी धारा बदलकर-
कहीं दूर अंधेरों में खो गये।
अब केवल खाली मन है,
उनमें कुछ सपने हैं,
और यादों को समेटकर
फिर से घरौंदा बनाने का लम्बा इन्तज़ार है।
अब अगर लौटो तो निश्छल मन के साथ;
पूरे संकल्पों, और
वादों के साथ।
ताकि
यह काँच का घरौंदा,
कोई पत्थर से न तोड़ पाये, और
सूरज की उजली किरण
उसमें अपना बसेरा कर सके।
गर्व का अहसास
मेरे मन के आंगन में खिलीं दो कली,
मन हिलोरे लेने लगा, प्रफुल्लित हो उठा,
सुकून और आनंद के साथ-साथ
मासूम कलियों की परवरिश की।
एक दिन कलियाँ खिलकर
फूल बन गईं, घर के आंगन-
को जैसे खुशियों और खुशबू से भर दिया।
पूरा घर भीनी-भीनी खुशबू से-
महकने लगा, चहकने लगा।
ऐसा लगा, जैसे वक़्त पंख लगाकर
उड़ने लगा,
मासूम और प्यारे फूलों को देखकर
उनकी किलकारियों से
आंगन गूंजने लगा,
मन अठखेलियाँ
करने लगा।
जीवन में एक उत्साह
एक उमंग का वातावरण हो गया
और…..यह आलम हो गया कि
सारी दुनिया उन्हीं की दुनिया में
सिमट कर रह गई; वक़्त के साथ
फूलों में निखार आया,
उनकी खुशबू से घर आंगन
औऱ़……जैसे सारी दुनिया महक उठी।
ऐसे रूप एवं गुण से सराबोर
फूलों ने जीवन महका दिया
दुख-सुख में सिर्फ उनके चेहरे,
उनकी खुशियों को देखकर ही सुकुन मिलने लगा,
और……अब तो यही तमन्ना है,
जैसे उन्होंने मेरा आंगन महकाया,
दूसरा आंगन भी उसी खुशबू से महकायें,
जैसे मेरे जीने का सहारा हैं
वैसे ही दूसरे आंगन में भी अपना स्थान बनायें,
मुझे गर्व है अब कलियों और फूलों पर
जिन्होंने उसी अन्दाज़ में
बगीचा महकाया,
जिसकी कल्पना
एक माली करता है।
हमें शान से जीने का सौभाग्य दिया,
समाज में सिर उठाने की एक वजह दी,
खुशियों से आंचल भर दिया।
ईश्वर से बस यही प्रार्थना है कि
वे खुश रहें, खुशहाल रहें, महकें, महकायें,
और सदैव चहकते रहें।
जुड़वाँ बेटियां बेहद सुखद अहसास ,मैंने भी महसूस किया है …बढ़िया